फरेब दे दे इश्क़ मे मुझे पागल कर दे
एक अधूरी सी कहानी है मुकम्मल कर दे
नही औकात के सोचों को लफ़्ज़ों मे ढालूं
मेरे खुदा मेरे अहसास को ग़ज़ल कर दे
तू मेरे वास्ते बहाए तो अज़ीम खुदा
तेरी आँखो के हर आँसू को गंगाजल कर दे
उसी ने सोच के सब मुश्किले बनाई हैं
वो अगर चाहे तो सब मुश्किलो का हल कर दे
मैं जो भी चाहू ज़िंदगी मे उससे पा के रहूँ
मेरे खुदा मुझे इस बात पे अटल कर दे
यकीन रख वो हक़ीकत मे मुझको ढूँढेगी
उसके ख्वाबो मे ज़रा सा मेरा दखल कर दे
बात अच्छी है के हर बात मान जाता है
वो ज़िद पे आए तो हर बात मे खलल कर दे
'सतलज' ये पहली मुलाकात बहुत अच्छी थी
उसके होंठो की हर इक बात को ग़ज़ल कर दे
-सतलज राहत
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Monday, July 11, 2011
एक अधूरी सी कहानी है मुकम्मल कर दे
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योगेश जी दो वस्तुएं एक दूसरे को इस लिए परस्पर अपनी अपनी और खींचती है क्योंकि दोनों के बीच एक फील्ड कण (परिकल्पित कण )ग्रेविटोंन का आदान प्रदान होता है .यह विनिमय इतना द्रुत गामी है इसके चित्र भी नहीं लिए जा सकते .इलेक्त्रों प्रोटोन भी परस्पर सिर्फ इसलिए आकर्षित नहीं करते ,की विपरीत आवेश लिए हैं बल्कि इनके बीच भी एक फील्ड पार्तिकिल का विनिमय चलता है .फोटोंन का .इसलिए गुरुत्व इस आयोजना से अलग नहीं है .विज्ञान में कार्य -कारन सम्बन्ध मौजूद हैं .रामचरित मानस के दोहों ,सोरठों, चौपाई की तरह इसकी व्याख्या नहीं है .सिद्धान्तिक गवेश्नाएं हैं प्रमाण हैं .
ReplyDeleteफरेब दे दे इश्क में मुझे पागल करदे ,
ReplyDeleteएक अधूरी सी कहानी मुकम्मिल करदे .
नहीं औकात के सोचों को लफ्जों में ढालूँ ,
मेरे खुदा मेरे एहसास को ग़ज़ल करदे .
(मेरे खुदा मेरे एल्फाज़ को ग़ज़ल कर दे ).
सहज राहत जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हर अश- आर अपनी और खींचे है गुरुत्व की अदृश्य डोर सा .बधाई .