बेकरारी गयी, करार गया
तर्क-ए-इश्क और मुझको मार गया
वो जो आये तो खुश्क हो गए अश्क
आज गम का भी ऐतबार गया
हम न हंस ही सके, न ही रो सके
वो गए या हर इख्तियार गया
आप की जिद-ए-बे-महल से कलीम
सब की नज़रों का ऐतबार गया
आ गए वो तो अब ये रोना है
लुत्फ़-ए-गम, लुत्फ़-ए-इंतज़ार गया
किस मज़े से तेरे बगैर "खुमर"
बे जिए ज़िंदगी गुज़ार गया
--खुमार बरबनकवी
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