जन्नतें सारी फिर उधर निकले
फूल खिल जाये वो जिधर निकले
मुस्कुरा दे जो आसमां की तरफ
सब दुआओं में फिर असर निकलें
रात आती हैं उसकी ख्वाइश में
चाँद तारें भी रात भर निकलें
वो गुजर जाये जिस भी रस्ते से
महका महका सा वो सफ़र निकले
मंजिलें ढूँढती हैं खुद उसको
हर सफ़र बिन किये ही सर निकले
नाम लिख ले जो उसका कागज पर
वही दुनिया में सुखनवर निकले
दिन गुजर जाता हैं ये लम्हों में
उसके संग रात मुख़्तसर निकले.............Dr.Rohit "AYAAN"
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