ना हो गर आशना नहीं होता
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता
तुम भी उस वक़्त याद आते हो
जब कोई आसरा नहीं होता
दिल में कितना सुकून होता है
जब कोई मुद्दवा नहीं होता
हो ना जब तक शिकार-ए-नाकामी
आदमी काम का नहीं होता
ज़िन्दगी थी शबाब तक "सीमाब"
अब कोई सानेहा नहीं होता
--सीमाब अकबराबादी
Source : http://www.urdupoetry.com/singers/JC284.html
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