Wednesday, November 30, 2011

ऐसा नहीं के हम को मोहब्बत नहीं मिली

ऐसा नहीं के हम को मोहब्बत नहीं मिली
हाँ जैसे चाहते थे वो कुरबत नहीं मिली

मिलने को ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले
लेकिन तबीयत से तबीयत नहीं मिली

चेहरों के हर हुजूम में हम ढूँढ़ते रहे
सूरत नहीं मिली, कहीं सीरत नहीं मिली

वो यक-ब-यक मिला तो बहुत देर तक हमें
अलफ़ाज़ ढूँढने की भी मोहलत नहीं मिली

उसको गिला रहा के तवज्जो न दी उसे
लेकिन हमें खुद अपनी रफाक़त नहीं मिली

हर शक्स ज़िंदगी में बहुत देर से मिला
कोई भी चीज़ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं मिली

तुम ने तो कह दिया के मोहब्बत नहीं मिली
मुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिली

--अज्ञात

1 comment:

  1. अलफ़ाज़ -दर-अलफ़ाज़ खूबसूरत गज़ल!
    शुक्रिया !

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