Thursday, November 24, 2011

मानो मेरी बात, ज़माना ठीक नहीं

सबको दिल का हाल सुनाना ठीक नहीं
मानो मेरी बात, ज़माना ठीक नहीं

अपना तो जनमों का नाता है जानम
लोगों की बातों में आना ठीक नहीं

इज्ज़त से खाओ तो रोटी रोटी है,
ज़िल्लत का ये आब-ओ-दाना ठीक नहीं
[आब-ओ-दाना=Water and food]

लपटें तेरे घर तक भी तो आयेंगी
मेरे घर को आग लगाना ठीक नहीं

उससे कहो सजदे नामरहम होते हैं
वक्त-ए-दुआ यादों में आना ठीक नहीं
[नामरहम=impure]

दिल को मेरे ज़ख्मों से छलनी करके
वो कहते हैं यार निशाना ठीक नहीं

जितना पीयो उतनी प्यास बढ़ाता है
साकी तेरा ये पैमाना ठीक नहीं

हर इक दर्द गम-ए-जाना से हल्का है,
दुनिया वालों का गम-खाना ठीक नहीं
[गम-खाना =house of sorrows]

छोडो यारा दर्द के किस्से, उसकी बात,
उसको कलम की नोक पे लाना ठीक नहीं

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