Saturday, November 19, 2011

रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे

करे दरिया ना पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे

{{मिस्मार=destroy}}

बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे

वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे

वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कूचा-ओ-बाज़ार मेरे

तुम अपना हाल-ए-महजूरी सुनाओ
मुझे तो खा गये आज़ार मेरे

{{हाल-ए-महजूरी=state of separation; आज़ार=illness/woes}}

जिन्हें समझा था जान_परवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न बर_दार मेरे

{{जान=life; परवर=protector/nourisher}}
{{कफ़न-बर_दार=shroud bearer}}

गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे

दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे

{{सर-ए-बाज़ार=in public}}

दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवायें ले उड़ी अशार मेरे

{{दरीचा=window; अशार=plural of sher (couplet)}}

--महाशर बदायूनी

http://urdupoetry.com/mahashar01.html

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