करे दरिया ना पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे
{{मिस्मार=destroy}}
बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे
वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे
वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कूचा-ओ-बाज़ार मेरे
तुम अपना हाल-ए-महजूरी सुनाओ
मुझे तो खा गये आज़ार मेरे
{{हाल-ए-महजूरी=state of separation; आज़ार=illness/woes}}
जिन्हें समझा था जान_परवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न बर_दार मेरे
{{जान=life; परवर=protector/nourisher}}
{{कफ़न-बर_दार=shroud bearer}}
गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे
दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे
{{सर-ए-बाज़ार=in public}}
दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवायें ले उड़ी अशार मेरे
{{दरीचा=window; अशार=plural of sher (couplet)}}
--महाशर बदायूनी
http://urdupoetry.com/mahashar01.html
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Saturday, November 19, 2011
रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे
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waah...
ReplyDeletebehtareen...