Saturday, July 9, 2011

झूठी तोहमत लगाए जा रहा है

झूठी तोहमत लगाए जा रहा है
यही गम मुझको खाए जा रहा है

मुझे यादें जलाए जा रही हैं
मुझे बादल भीगाए जा रहा है

तेरे आने की कुछ उम्मीद नही
तेरा ख्याल आए जा रहा है

धूप मे ही करेगा याद मुझको
अभी वो साए साए जा रहा है

मुझसे कुछ ख़ैरियत भी पूछ मेरी
अपने किस्से सुनाए जा रहा है

मेरा ये है, के मैं वही पे हूँ
वक़्त का ये है, जाए जा रहा है

गहरा ज़ख़्म है कोई दिल मे
मुसलसल मुस्कुराए जा रहा है

इतने नखरे कहा उठाने थे
कितने नखरे उठाए जा रहा है

छुपाना याद नही है उसको
बड़ी बातें बनाए जा रहा है

वही तुझको बुलाना भूल गया
तो तू क्या बिन बुलाए जा रहा है

मेरी सोचो मे आने लग गया है
मेरी नींदें चुराए जा रहा है

मुझे बस तुझसे यही कहना है
ये कैसे दिन दिखाए जा रहा है

मैं कोई अपने काम आ ना सका
खुदा भी आज़माए जा रहा है

'सतलज' मार रहा है खुद को
अपना लिखा मिटाए जा रहा है!!!

--सतलज राहत

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