Thursday, April 30, 2009

अफसोस, दिल का हाल कोई पूछता नहीं

अफसोस, दिल का हाल कोई पूछता नहीं
सब यही कह रहे हैं तेरी सूरत बदल गयी
--अज्ञात

जिसकी कुरबत में करार बहुत है

जिसकी कुरबत में करार बहुत है,
उसका मिलना दुश्वार बहुत है

जो मेरे हाथो की लकीरो मे नही,
उस शख्स से हमे प्यार बहुत है

इश्क़ क दर्द को हमें सहना ही है,
एक शख्स पे हमे एतबार बहुत है

जिसको मेरे घर का रास्ता नही मालूम,
उसका दिल को इंतज़ार बहुत है

जबसे गया है वो हमे छोड़ कर,
तब से आँखे अश्क़-बार बहुत है

--अज्ञात

कल ही हमने बाँटे थे दुनिया को उजाले

कल ही हमने बाँटे थे दुनिया को उजाले
आज हमारे ही घर में रौशनी का मातम है
--अज्ञात

हुस्न वालों को क्या ज़रूरत है संवरने की फराज़

हुस्न वालों को क्या ज़रूरत है संवरने की फराज़
वो तो सादगी में भी कयामत की अदा रखते हैं
--अहमद फराज़

करने और न करने में बस इतना सा है फासला

करने और न करने में बस इतना सा है फासला
कर गये तो करतब और गिर गये तो हादसा
--अज्ञात

Wednesday, April 29, 2009

न चाहते थे मगर वजूद में आना पड़ा हमें

न चाहते थे मगर वजूद में आना पड़ा हमें
खतायें थीं किसी की, सर झुकाना पड़ा हमें

जिस्म से खेलकर मेरे दरिंदे बरी हो गये
तोहमतों को मगर उम्र भर उठाना पड़ा हमें

रस्मों के नाम पर कभी, जुल्मों के नाम पर
सुलगती आग में खुद को जाना पड़ा हमें

दुआओं के शहर में भी तू नहीं था मेरे मौला,
हर बार वहाँ से खाली हाथ आना पड़ा हमें

फिर कोई बेटी न पैदा हो तेरी ज़मीन पर,
ये सोचकर शम-ए-हयात बुझाना पड़ा हमें

इस पेट के लिये तो कभी बच्चों के वास्ते,
जहाँ पे जाना पाप है, ’दर्द’ जाना पड़ा हमें।

--दिनेश 'दर्द'

इक फुरसत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन

इक फुरसत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौंसले परवर-दिगार के
--फैज़ अहमद फैज़

तुमसे मुमकिन हो तो बालों में सजा लो मुझको

तुमसे मुमकिन हो तो बालों में सजा लो मुझको
शाख से टूटने वाला हूँ, सम्भालो मुझको

मोम के ढेर को हल्की सी तमाज़त भी बहुत
हो अकेले तो किसी शक्ल में ढालो मुझको

तुमसे न टूटेगा इस शब की स्याही का तिलिस्म
मैने पहले ही कहा था कि जला लो मुझको

कल वो मांझी भी था, पतवार भी था, कश्ती भी
आज एक एक से कहता है, बचा लो मुझको

रात मुझसे मेरी तहरीर ने चुपके से कहा
कल की बोसीदा किताबों में छुपा लो मुझको

--अमीर कज़लबाश

तमाज़त=आंच
बोसीदा=पुरानी

Tuesday, April 28, 2009

वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन

वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले, एक तेरे जाने के बाद
--मुमताज़ रशिद

एक ही दर हो तो सजदों में सुकून मिलता है

एक ही दर हो तो सजदों में सुकून मिलता है
भटक जाते हैं वो लोग, जिनके कईँ खुदा होते हैँ
--अज्ञात

भूले हैं उन्हें राफ्ता राफ्ता मुद्दतों में हम

भूले हैं उन्हें राफ्ता राफ्ता मुद्दतों में हम
किश्तों में खुदकुशी का मज़ा हम से पूछिये
--खुमर बरबनकवी


Source : http://www.urdupoetry.com/khumar04.html

Monday, April 27, 2009

अम्न का जो पैग़ाम सुनाने वाले हैं

अम्न का जो पैग़ाम सुनाने वाले हैं
गलियों गलियों आग लगाने वाले हैं

तुम ले जाओ नेज़ा खंजर और तलवार
हम मकतल में सर ले जाने वाले हैं

ज़ुल्म के काले बादल से डरना कैसा
ये मौसम तो आने जाने वाले हैं

बीमारों का अब तो खुदा ही हाफिज़ है
सारे मसीहा ज़हर पिलाने वाले हैं

जान बचाने वाले तो सब हैं लेकिन
अब कितने इमान बचाने वाले हैं

हम को उन वालियों की निसबत हासिल है
दश्त को जो गुल्ज़ार बनाने वाले हैं

भूखा रह के साइल को खैरात जो दे
हम भी माजिद उसी घराने वाले हैं

--माजिद दियोबंदी

अगर वो आसमानों में बुलाये तो चले जाना

अगर वो आसमानों में बुलाये तो चले जाना
मोहब्बत करने वाले फासले देखा नहीँ करते
--वसीम बरेलवी

दिल तोड़ के वो बोले के मुस्कुराओ

दिल तोड़ के वो बोले के मुस्कुराओ
मैं मुस्कुरा दिया, सवाल उसकी खुशी का था
मैने खोया वो जो मेरा था ही नहीँ
उसने खोया वो जो सिर्फ़ उसी का था
--अज्ञात

उसका खत पाते ही मैखाने की याद आती है

उसका खत पाते ही मैखाने की याद आती है
कहीँ मुझको भी न बना दे शराबी कागज़
--अज्ञात

Saturday, April 25, 2009

ख्वाब में आ कर वो मेरी नींद उड़ाती थी बहुत

ख्वाब में आ कर वो मेरी नींद उड़ाती थी बहुत
हर घड़ी वो देख कर मुस्कुराती थी बहुत

छोड़ ही देना पड़ा घबरा कर उसके शहर को
याद उसकी रात दिन मुझको रुलाती थी बहुत

अपनी बाहों में जब जा कर लेती थी रंजो आलम
आ के एक अन्दाज़ में मुझको हंसाती थी बहुत

अपने दिल की बात वो कभी मुझ से कहती न थी
दूसरों के प्यार के किस्से सुनाती थी बहुत

चाहती थी सिर्फ़ मेरी ही नज़र उस पर पड़े
गैरों की नज़रों से वो खुद को बचाती थी बहुत

दिन तो कट जाता था दोस्तो के साथ में
रात में लेकिन वो मुझको याद आती थी बहुत

--अज्ञात

खेतों का हरापन मैं कहाँ देख रहा हूँ

खेतों का हरापन मैं कहाँ देख रहा हूँ
मैं रेल के इंजन का धुआँ देख रहा हूँ

फुरसत है कहाँ आपके बागात में टहलूँ
मैं अपने उजड़ने का समाँ देख रहा हूँ

खंजर जो गवाही है मेरे कत्ल की, उस पर
अपनी ही उंगलियों के निशाँ देख रहा हूँ

सब आपकी आंखों से जहाँ देख रहे हैं
मैं आपकी आंखों में जहाँ देख रहा हूँ

वो सोच में बैठे हैं निशाना हो कहाँ पर
मैं टूटे हुए तीर कमाँ देख रहा हूँ

मालूम है तकरीर लिखा लाये हैं किस से
मैं उनका ज़रा तर्ज़-ए-बयाँ देख रहा हूँ

जो मैने खरीदा था कभी बेच कर खुद को
नीलामी में बिकता वो मकाँ देख रहा हूँ

तू ढूँढ रही होगी कहाँ मुझको क़यामत
मैं कब से तेरी राह यहाँ देख रहा हूँ

टोका जो उन्होंने कि कहो देख ली दुनिया
मैने भी कहा हस के की हाँ देख रहा हूँ

बूढ़ी हुई उम्मीद तो क्या फिर भी लड़ूँगा
मैं अपने इरादे को जवाँ देख रहा हूँ

जिस राह से जाना है नयी पीढ़ी को राही
उस राह में एक अन्धा कुआँ देख रहा हूँ

--बाल स्वरूप राही

Friday, April 24, 2009

ये और बात है, के तारूफ ना हो सका

ये और बात है, के तारूफ ना हो सका
हम ज़िन्दगी के साथ बड़ी देर तक चले
--अज्ञात

कुसूर नहीं इसमें कुछ भी तुम्हारा फराज़

कुसूर नहीं इसमें कुछ भी तुम्हारा फराज़
हमारी चाहत ही इतनी थी, कि तुम्हें गुरूर हो गया
--अहमद फराज़

बस दे कंडक्टर वांग हो गयी है ज़िन्दगी

बस दे कंडक्टर वांग हो गयी है ज़िन्दगी
सफर वी रोज़ दा, ते जाणा वी किथे नहीं
--हरवरिन्द्र सिंह

Thursday, April 23, 2009

मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा

मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा
वो खुदाओं के शहर में आदमी बन कर रहा

ज़िन्दगी से दोस्ती का ये सिला उसको मिला
ज़िन्दगी भर दोस्तों में अजनबी बन कर रहा

उसकी दुनिया का अंधेरा सोच कर तो देखिए
वो जो अंधों की गली में रौशनी बन कर रहा

सनसनी के सौदेबाज़ों से लड़ा जो उम्र-भर
हश्र ये खुद एक दिन वो सनसनी बन कर रहा

एक अंधी दौड़ की अगुआई को बेचैन सब
जब तलक बीनाई थी मैं आखिरी बन कर रहा

--संजय ग्रोवर

Wednesday, April 22, 2009

कमरे को नयी आब-ओ-हवा क्यों नहीं देते

कमरे को नयी आब-ओ-हवा क्यों नहीं देते
इन बूढ़े कलंडरों को हटा क्यों नहीं देते

इक शक्स गुलेलों को यहाँ बेच रहा है
ये राज़ परिंदों को बता क्यों नहीं देते

अलमारी में रख आओ गये वक़्त की एलबम
जो बीत गया उसको भुला क्यों नहीं देते

ए तेज़ हवा ! तू भला समझेगी कहाँ तक
हम तुझको चरागों का पता क्यों नहीं देते

पोशाक मेरी आपसे शफाक है ज़्यादा
ये मेरी खता है तो सज़ा क्यों नहीं देते

हम खानाबदोशों के नहीं होते ठिकाने
मत पूछ कि हम घर का पता क्यों नहीं देते

--ज्ञान प्रकाश विवेक

Monday, April 20, 2009

किन लव्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसीली बात लिखूं

किन लव्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं
शेर की मैं तहज़ीब निभाऊँ या अपने हालात लिखूं
--जावेद अख्तर

Sunday, April 19, 2009

अंधेरा मांगने आया था रौशनी की भीख

अंधेरा मांगने आया था रौशनी की भीख
हम अपना घर ना जलाते तो क्या करते
--नज़ीर बनारसी

उस शक्स के ग़म का कोई अन्दाज़ा लगाये

उस शक्स के ग़म का कोई अन्दाज़ा लगाये
जिसको कभी रोते हुए देखा न किसी ने
--अज्ञात

दबा के चल दिये सब कब्र में दुआ न सलाम

दबा के चल दिये सब कब्र में दुआ न सलाम
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
--क़मर जलालवी

Saturday, April 18, 2009

ये बेवफा ज़िन्दगी भी तुम्हारे नाम करते हैं फराज़

ये बेवफा ज़िन्दगी भी तुम्हारे नाम करते हैं फराज़
सुना है खूब बनती है, बेवफा से बेवफा की
--अहमद फराज़

शिकायतें तो मुझे मौसम-ए-बहार से है

शिकायतें तो मुझे मौसम-ए-बहार से है
खिज़ान तो फूलने फलने के बाद आता है
--मुनव्वर राणा

उम्र भर जलता रहा दिल, और खामोशी के साथ

उम्र भर जलता रहा दिल, और खामोशी के साथ
शम्मा को इक रात की शोज़-ए-दिली पे नाज़ था
--अज्ञात

Friday, April 17, 2009

उसे बारिशों ने चुरा लिया के वो बादलों का मकीन था

उसे बारिशों ने चुरा लिया के वो बादलों का मकीन था
कभी मुड़ कर ये भी तु देखता के मेरा वजूद ज़मीन था

बस यही इक सच थ और उसके बाद सारी तोहमतें झूठ हैं
मेरे दिल को पूरा यकीन है, वो मुहब्बतों का आमीन था

उसे शौक था के किसी जज़ीरे पे उसके नाम का फूल हो
मुझे प्यार करना सिखा गया, मेरा दोस्त कितना ज़हीन था

कभी साहिलों पे फिरेंगें तो उसे सीपियां ही बतायेंगी
मेरी आंख में जो सिमट गया, वो ही अश्क सब से हसीन था

--अज्ञात

मकीन=Resident/Tenant

किस कदर ज़ुल्म ढाया करते हो

किस कदर ज़ुल्म ढाया करते हो
ये जो तुम भूल जाया करते हो

किस का अब हाथ रख कर सीने पर
दिल की धड़कन सुनाया करते हो

हम जहां चाय पीने जाते थे
क्या वहां अब भी जाया करते हो

कौन है अब के जिस के चेहरे पर
अपनी पलको का साया करते हो

क्यों मेरे दिल मे रख नहीं देते
किस लिये ग़म उठाया करते हो

फोन पर गीत जो सुनाते थे
अब वो किस को सुनाया करते हो

आखिरी खत में उसने लिखा था
तुम मुझे बहुत याद आया करते हो

--अज्ञात

इस झूठी नगरी में हम ने यही हमेशा देखा है

इस झूठी नगरी में हम ने यही हमेशा देखा है
सच्ची बात बताने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं
--अज्ञात

Thursday, April 16, 2009

नहीं है हमारा हाल कुछ तुम्हारे हाल से अलग

नहीं है हमारा हाल कुछ तुम्हारे हाल से अलग
बस फर्क इतना है के तुम याद करते हो, और हम भूल नहीं पाते
--अज्ञात

दिल के दरिया मे उतर के तो देखो

दिल के दरिया मे उतर के तो देखो
तुम मोहब्बत मुझे कर के तो देखो

फिर तुम्हें मेरी तलब हो शायद
तुम कभी मुझ से बिछड़ के तो देखो

इश्क़ का सागर है बहुत गहरा
तुम डूब कर उभर के तो देखो

दुनिया फिर लगने लगी है दिलकश
उसे तुम मेरी नज़र से तो देखो

प्यार कहते हैं किसे, ज़रा तुम
मेरी बाहों में बिखर के तो देखो

मेरे ग़म महसूस करना हो तो
मेरी राहों से गुज़र के तो देखो

--अज्ञात

Wednesday, April 15, 2009

ये बनाते हैं कभी रंक कभी राजा तुम्हें

ये बनाते हैं कभी रंक कभी राजा तुम्हें
ख्वाब तो ख़्वाब हैं ख़्वाबों पे भरोसा न करो
--दरवेश भारती

Tuesday, April 14, 2009

वो मुझको छोड़ न देता, तो और क्या करता

वो मुझको छोड़ न देता, तो और क्या करता
मैं वो किताब हूँ, जिसके कईं वर्क ना रहे
--मुनव्वर राणा

जो बात मैं कह नहीं सकता

जो बात मैं कह नहीं सकता, वो फर्ज़ कर लिया करता हूँ
चलो मैं फर्ज़ करता हूं, मुझे तुमसे मोहब्बत है
--अज्ञात

Sunday, April 12, 2009

शजर के कद न मैं शाखों की लम्बाई से डरता हूँ

शजर के कद न मैं शाखों की लम्बाई से डरता हूँ
किसी पर्वत न मैं पर्वत की ऊँचाई से डरता हूँ
समंदर नापना भी चुटकियों का काम है लेकिन
तुम्हारी झील सी आंखों की गहराई से डरता हूँ
-अज्ञात

अपनी अपनी आना को भुलाया जा सकता था

अपनी अपनी आना को भुलाया जा सकता था
शायद सारा शहर बचाया जा सकता था
सब से बड़ी रुकावट तेरी मायूसी थी
वरना सारा खेल उल्टाया जा सकता था
--अज्ञात

आशना होते हुए भी आशना कोई नहीं

आशना होते हुए भी आशना कोई नहीं
जानते सब हैं मुझे पहचानता कोई नहीं
मुख्तसर लव्ज़ों में है ये अब मिजाज़-ए-दोस्ती
राब्ता बेशक है सब से, वास्ता कोई नहीं
--अज्ञात

यूँ तर्क-ए-मोहब्बत तेरा ईमान हो शायद

यूँ तर्क-ए-मोहब्बत तेरा ईमान हो शायद
तेरे सीने में भी कोई तूफान हो शायद
मत मुझे आज़मा इतना के दम निकल जाये
मेरे वजूद में तेरी भी जान हो शायद
--अज्ञात

कुछ लोग भूल कर भी भुलाये नहीं जाते

कुछ लोग भूल कर भी भुलाये नहीं जाते
ऐतबार इतना, के आज़माये नहीं जाते
हो जाते हैं दिलों पर कुछ इस तरह मुसल्लत
के नक्श उनके चाह कर भी मिटाये नहीं जाते
--अज्ञात

मेरे दिल का मेरे चेहरे से गज़ब का समझौता है

मेरे दिल का मेरे चेहरे से गज़ब का समझौता है
ये अन्दर कुछ नहीं कहता, वो बाहर कुछ नहीं कहता
--अज्ञात

सोचती थी माँ, अफसर बनेगा मेरा लाल

सोचती थी माँ, अफसर बनेगा मेरा लाल
भूखा बच्चा आज रद्दी में किताबें देगा
--अज्ञात

मैं ना कहती थी, चाहत में उजड़ जायेगा

मैं ना कहती थी, चाहत में उजड़ जायेगा
तू बड़ी देर के बाद ए दिल-ए-नादान समझा
--अज्ञात

रात गहरी थी, डर भी सकते थे

रात गहरी थी, डर भी सकते थे
हम जो कहते थे, कर भी सकते थे
तुम जो बिछड़े, तो ये भी नहीं सोचा
हम तो पागल थे मर भी सकते थे
--अज्ञात

तेरी चाहत में हम ज़माना भूल गये

तेरी चाहत में हम ज़माना भूल गये
तेरे बाद किसी को अपनाना भूल गये

फिर लगा सारा जहां वीराना हमको
जैसे चमन में फूल खिलाना भूल गये

तुम से मोहब्बत है बताया सारे जहां को
ये ही बात तुम को बताना भूल गये

हमने मिटा दिया जहां भी लिखा था नाम तेरा
मगर अपने दिल से मिटाना भूल गये

वो जुदा हुए हम से मुस्कुराते हुए
मगर अपनी पलको से आंसू हटाना भूल गये

--अज्ञात

मेरे कूचे में कदम आप जो आ कर रखते

मेरे कूचे में कदम आप जो आ कर रखते
हम भी राहों में दिल-ओ-जान बिछा कर रखते

तुम अगर इतनी इजाज़त हमें दे देते कभी
तेरी तस्वीर को हम दिल में सजा कर रखते

काश इज़हार-ए-वफ़ा कर दिया होता हम ने
यूँ ना जज़बात को हम दिल में दबा कर रखते

हमें मालूम जो होता तेरी साज़िश का कभी
हम रक़ीबों से भी कुछ बात बना कर रखते

मेरे इस दिल की तड़प तुम ने जो समझी होती
तुम कभी यूँ ना मुझे दूर हटा कर रखते

मिल ही जाती जो खबर गर तेरे आने की हमें
हम तेरे वास्ते कुछ सांस बचा कर रखते

इन सज़ाओं का तो मालूम नही था वरना
रोज़-ए-मेहशर के लिये करम कमा कर रखते

काश हम होते सुखनवार कभी असीम जैसे
अपने शेरों से दर-ओ-बाम हिला कर रखते

--असीम कौमी

कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं

कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं
मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं

कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में
सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं

--अज्ञात

Saturday, April 11, 2009

ज़िन्दगी को सताना सीख लिया है मैने

ज़िन्दगी को सताना सीख लिया है मैने
दर्द में भी खिलखिलाना सीख लिया है मैने

डर मुझे अब तो नहीं लगता है अंधेरों से
रात में दिल जलाना सीख लिया है मैने

ज़िन्दगी में मेरी वो आने को राज़ी न थी
सपनों में ही उसे बुलाना सीख लिया है मैने

दिल की बातें जो बयान करती हैं निगाहें मेरी
अब नज़र को चुराना सीख लिया है मैने

साथ मझधार पर छोड़ा है मेरा लोगों ने
मौज पर घर बसाना सीख लिया है मैने

फलसफा कैसा ये किसमत का मेरी है कि
हसरतों को भी लुटाना सीख लिया है मैने

--अज्ञात

कुछ राज़ ऐसे भी हैं मेरे दिल के निहान खाने में

कुछ राज़ ऐसे भी हैं मेरे दिल के निहान खाने में
लुत्फ जिनका न समझने में है, और न समझाने में
--अज्ञात

निहान=Hidden, Buried

रोये हैं बहुत तब ज़रा करार मिला है

रोये हैं बहुत तब ज़रा करार मिला है
इस जहां में किसे भला सच्चा प्यार मिला है

गुज़र रही है ज़िन्दगी इम्तिहान के दौर से
एक ख्त्म हुआ तो दूसरा तैयार मिला है

मेरे दामन को खुशियों का नहीं मलाल
ग़म का खज़ाना जो इसको बेशुमार मिला है

वो कमनसीब हैं जिन्हें महबूब मिल गया
मैं खुशनसीब हूं मुझे इंतज़ार मिला है

ग़म नहीं मुझे के दुश्मन हुआ ये ज़माना
जब दोस्त हाथों में लिये तलवार मिला है

सब कुछ खुदा ने तुम को भला कैसे दे दिया
मुझे तो उसके दर से सिर्फ़ इनकार मिला है

--अज्ञात

तुम्हारे खत में नया इक सलाम किसका था

तुम्हारे खत में नया इक सलाम किसका था
न था रक़ीब तो आखिर वो नाम किसका था?
--अज्ञात

यूं तो तेरी नज़रों का गुनाह नहीं पर

यूं तो तेरी नज़रों का गुनाह नहीं पर
अगर मैं डूब जाऊँ इन में तो खता किसकी
--अज्ञात

ज़िन्दगी तुझ से तो कोई भी कीमत न लगी अपनी

ज़िन्दगी तुझ से तो कोई भी कीमत न लगी अपनी
मौत आयेगी तो कर जायेगी महंगा हमको
--अज्ञात

Friday, April 10, 2009

वो अश्क बन के मेरे चश्म-ए-तर में रहता है

वो अश्क बन के मेरे चश्म-ए-तर में रहता है
अजीब शख्स है पानी के घर में रहता है
--अज्ञात
चश्म-ए-तर=आँखें/आँख

कितने परवाने जले राज ये पाने के लिए

कितने परवाने जले राज़ ये पाने के लिए
शमा जलने के लिए है या जलाने के लिए

रोने वाले तुझे रोने का सलीका ही नहीं
अश्क पीने के लिए है या बहाने के लिए

--अज्ञात

आंख से आंख मिला, बात बनाता क्यूं है

आंख से आंख मिला, बात बनाता क्यूं है
तू अगर मुझसे खफ़ा है तो छुपाता क्यूँ है

ग़ैर लगता है, ना अपनो की तरह मिलता है
तू ज़माने की तरह मुझे सताता क्यूँ है

वक़्त के साथ हालात बदल जाते हैं
ये हकीकत है मगर मुझे सुनाता क्यूँ है

एक मुद्दत से जहां काफ़िले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों पे चराग़ों को जलाता क्यूँ है

--सईद राही


Source : http://www.urdupoetry.com/srahi02.html

Thursday, April 9, 2009

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी
आप से तुम, तुम से तू होने लगी
--दाग देहलवी

आपसी रिश्तों में अब उलझन नहीं है

आपसी रिश्तों में अब उलझन नहीं है
दुशमनी है पर कोई दुश्मन नहीं है

क्यूं उठाये उंगलियां कोई किसी पर
बेदाग कोई भी यहां दामन नहीं है

है फलक तक रौशनी ही रौशनी
दिल मगर कोई यहां रौशन नहीं है

किस तरह घुटनों के बल बचपन चलेगा
अब किसी घर में कहीं आंगन नहीं है

खौफ मुझको बिजलियओं का हर्ष क्यूं हो
मेरी दुनिया में कोई गुलशन नहीं है

--हर्ष

साथ छोड़ जाता है क्यूँ कोइ दो कदम चलने के बाद

साथ छोड़ जाता है क्यूँ कोइ दो कदम चलने के बाद
ख्वाब आखिर टूट ही जाते हैं आंखों में पलने के बाद

ग़ौर से देख ले चांद को टूटे तारे न देख
आलम ये फिर कहां होगा रात के ढलने के बाद

खाये हैं बड़ी फुरसत से धोखे यारों से हर दिन
खुश तो हुए होंगे मेरे दोस्त मुझे छलने के बाद

अंधेरों से कर ले दोस्ती अंधेरे ही होंगे साथ
बुझ जाती है शमा भी परवानों के जलने के बाद

आखिरी सफर पर निकल पड़ी है कुबूल कीजिये सलाम
राख भी ना हाथ आयेगी रूह के जलने के बाद

--अज्ञात

कभी याद बनके आ तो सही

कभी याद बनके आ तो सही
तू पहले मुझे भुला तो सही

फिर करना मेरे गमों का इलाज
सितम पहले अपने गिना तो सही

मिटा देना नाम हथेली से मेरा
पहले दिल से मुझे मिटा तो सही

क्या खबर लौट आये गुज़रा ज़माना
तू आवाज़ दे के बुला तो सही

छट जायेंगें बादल ग़मों के
एक बार दिल से मुस्कुरा तो सही

मिलेगा खुदा पत्थरों में भी
सजदे में सर को झुका तो सही

ना कर कोई वादा फिर से नया
वादे पुराने निभा तो सही

--अज्ञात

तुम्हारी प्यास का अंदाज़ भी अलग है फराज़

तुम्हारी प्यास का अंदाज़ भी अलग है फराज़
कभी दरियाओं को ठुकराते हो, कभी आंसू तक पी जाते हो
--अहमद फ़राज़

तू किसी और के लिये होगा समंदर-ए-इश्क़

तू किसी और के लिये होगा समंदर-ए-इश्क़
हम तो हर रोज़ तेरे साहिल से प्यासे गुज़र जाते हैं
--अज्ञात

Tuesday, April 7, 2009

घर से निकलो नाम पता जेब में रखकर


घर से निकलो नाम पता जेब में रखकर
हादसे चेहरे की पहचान मिटा देते हैं
--अज्ञात

Monday, April 6, 2009

राज़ की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया

राज़ की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया
जाने क्यों रुसवाईयों का सिलसिला रहने दिया

उम्र भर मेरे साथ रहकर वो ना समझा दिल की बात
दो दिलों के दर्मियां इक फ़ासला रहने दिया

अपनी फ़ितरत वो बदल पाया न इसके बावजूद
खत्म की रंजिश मगर गिला रहने दिया

मैं समझता था खुशी देगी मुझे "सबीर" फ़रेब
इस लिये मैं ने ग़मों से राब्ता रहने दिया

--सबीर जलालबादी

राब्ता=Relationship

शहर की गलियों में जब वो निकलते हैं बेनकाब

शहर की गलियों में जब वो निकलते हैं बेनकाब
accident में मरने वालों की तादात बढ़ जाती है
--अज्ञात

अब तो ये भी याद नहीं, फर्क था कितना दोनो में

अब तो ये भी याद नहीं, फर्क था कितना दोनो में
उसकी बातें याद रही, उसका लहज़ा भूल गया
--मुमताज़ रशिद

Sunday, April 5, 2009

वो क्या जानेंगें बे-धड़क दिल मे बस जाने का मज़ा

वो क्या जानेंगें बे-धड़क दिल मे बस जाने का मज़ा
वो तो ख्वाब में भी आते हैं दस्तक दे कर
--अज्ञात

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।

यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
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लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith

है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

--राम प्रसाद बिसमिल

तुम्हें है शौक अगर बिजलियां गिराने का

तुम्हें है शौक अगर बिजलियां गिराने का
हमारा काम भी है आशियां बनाने का

भला वो कैसे समंदर के पार उतरेगा
नफस नफस जिन्हें खदशा है डूब जाने का

सुना है आप हैं माहिर हवा चलाने में
मगर हमें भी हुनर है दिये जलाने का

--मजिद दियोबंदी (Majid Deobandi)

इंसान की ख्वाहिशों की कोई इंतहा नही

इंसान की ख्वाहिशों की कोई इंतहा नही
दो गज़ ज़मीन भी चाहिये दो गज़ कफन के बाद
--कैफी आज़मी

तूफान कर रहा था मेरे अज़्म का तवाफ

तूफान कर रहा था मेरे अज़्म का तवाफ
दुनिया समझ रही थी कश्ती भंवर में है
--अलामा इक़बाल

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये
--बशीर बद्र

वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में

वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता
--निदा फ़ाज़ली

थोड़ी बहुत मुहब्बत से काम नहीं चलता ऐ दोस्त

थोड़ी बहुत मुहब्बत से काम नहीं चलता ऐ दोस्त
ये वो मामला है जिसमें या सब कुछ या कुछ भी नहीं
--फिराक़

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से भी कम दी है ज़मीन

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से भी कम दी है ज़मीन
पांव फैलाऊँ तो दीवार से सर लगता है
--बशीर बद्र

शायद मुझे निकाल के पछता रहे हो आप

शायद मुझे निकाल के पछता रहे हो आप
महफिल में इस खयाल से फ़िर आ गया हूँ मैं
--हमीद अदम

तड़पूंगा उम्र भर दिल-ए-मरहूम के लिए

तड़पूंगा उम्र भर दिल-ए-मरहूम के लिए
कम्बख्त नामुराद लड़कपन का यार था
-- बेखुद देहलवी


Source : http://www.urdupoetry.com/bekhud04.html

मुकम्मल गर मेरे प्यार का अफसाना हो जाता

मुकम्मल गर मेरे प्यार का अफसाना हो जाता
एक और आशिक से महरुम ये ज़माना हो जाता
--आलोक मेहता

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी, के चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसको अपना ना सके, जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
--निदा फ़ाज़ली

मुझे शक़ नही है उसकी मोहब्बत पे

मुझे शक़ नही है उसकी मोहब्बत पे
हां मगर मुझ से ही करती तो और बात थी
--अजीत त्रिपाठी

इक मुद्दत से मेरी मां सोई नही है तबिश

इक मुद्दत से मेरी मां सोई नही है तबिश
मैने एक बार कहा था मुझे डर लगता है
--तबिश

ग़ालिब न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़

ग़ालिब न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बगैर
--मिरज़ा ग़ालिब

रहता सुखन से नाम क़यामत तलक ए ज़ौक

रहता सुखन से नाम क़यामत तलक ए ज़ौक
औलाद से तो क्या, येही दो पुश्त, चार पुश्त
-- ज़ौक

सब चाहतें हैं मुझे, पर मेरा कोई नहीं

सब चाहतें हैं मुझे, पर मेरा कोई नहीं
मैं इस शहर में उर्दू की तरह हूँ
--बशीर बद्र

रोयेंगें देख कर वो बिस्तर की शिकन को


रोयेंगें देख कर वो बिस्तर की शिकन को
वो हाल लिख चला यूँ करवट बदल बदल कर
--क़मर जलालवी

कल और आयेंगें नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले

कल और आयेंगें नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझ से बेहतर कहने वाले, तुम से बेहतर सुनने वाले
--साहिर लुधियानवी

सामने है उसे लोग बुरा कहते हैं

सामने है उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा ही नही, उसको लोग खुदा कहते हैं
--सुदर्शन फाकिर

Saturday, April 4, 2009

कौन करता है वफाओं के तकाज़े तुम से

कौन करता है वफाओं के तकाज़े तुम से
हम तो एक झूठी तसल्ली के तलबगार हैं बस
--अज्ञात

काश ! सूरत आप की इतनी प्यारी ना होती

काश ! सूरत आप की इतनी प्यारी ना होती
काश ! आप से मुलाकात हमारी ना होती
काश ! तुम्हें सपनों में ही देख लेते
आज मुलाकात को इतनी बेकरारी न होती
--अज्ञात

तेरी एक मुस्कान से जगमगाये ये जहां

तेरी एक मुस्कान से जगमगाये ये जहां
तू यूँ उदास रह कर अंधेरा न फैला
--अज्ञात

ये ज़मीन की फितरत है, के हर चीज़ को जज़्ब कर लेती है फराज़

ये ज़मीन की फितरत है, के हर चीज़ को जज़्ब कर लेती है फराज़
वरना मेरे आंसुओं का एक अलग समंदर होता
--अहमद फराज़

हम न रहें भी तो हमारी यादें वफ़ा करेंगी तुम से फराज़

हम न रहें भी तो हमारी यादें वफ़ा करेंगी तुम से फराज़
ये न समझना के तुम्हें चाहा था बस दो दिन के लिये
--अहमद फराज़

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसान पाये हैं

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसान पाये हैं
तुम शहर-ए-मोहब्बत कहते हो, हम जान बचा कर आये हैं
--सुदर्शन फाकिर

रुकवा देना मेरा जनाज़ा ग़ालिब जब उनका घर आये

रुकवा देना मेरा जनाज़ा ग़ालिब जब उनका घर आये
शायद वो झांक ले खिड़की से, और मेरा दिल धड़क जाये
--मिरज़ा ग़ालिब

मिट चले मेरी उम्मीदों के हर्फ़ मगर

मिट चले मेरी उम्मीदों के हर्फ़ मगर
आज तक तेरे खतों से तेरी खुश्बू न गयी
--अख्तर शिरानी

तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शक्स

तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शक्स
उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नही
--क़तील शिफ़ाई


Source : http://www.urdupoetry.com/qateel16.html

पत्थर के जिगर वालो, ग़म में वो रवानी है

पत्थर के जिगर वालो, ग़म में वो रवानी है
खुद राह बना लेगा, बहता हुआ पानी है
--बशीर बद्र

हमें भी दोस्तों से काम आ पड़ा यानी

हमें भी दोस्तों से काम आ पड़ा यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया
-- हरीचंद अख्तर

ये इनायतें गज़ब की, ये बला की मेहरबानी

ये इनायतें गज़ब की, ये बला की मेहरबानी
मेरी खैरियत भी पूछी, किसी और की ज़बानी
--नज़ीर बनारसी

Friday, April 3, 2009

तेरी हुस्न-परस्ती में अल्फाज़ कम पड़ रहे थे

तेरी हुस्न-परस्ती में अल्फाज़ कम पड़ रहे थे
फिर तेरी आंखों में जो देखा मैने गज़ल पढ़ दी
--अज्ञात

Thursday, April 2, 2009

न कायम करना कोई राय हमारे बारे में,

तुम मेरे बारे में कोई राय न कायम करना
मेरा वक्त बदलेगा, तुम्हारी राय बदल जायेगी

--निदा फाजली

कमज़र्फ नहीं इतना के मांग के पी लूं

कमज़र्फ नहीं इतना के मांग के पी लूं
मगर ऐसा भी नहीं के मुझे प्यास नहीं
--अज्ञात

Wednesday, April 1, 2009

हाल-ए-दिल कह के जब लौटे

हाल-ए-दिल कह के जब लौटे
उनसे कहने की बात याद आई
--खुमर बरबनकवी