Thursday, April 23, 2009

मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा

मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा
वो खुदाओं के शहर में आदमी बन कर रहा

ज़िन्दगी से दोस्ती का ये सिला उसको मिला
ज़िन्दगी भर दोस्तों में अजनबी बन कर रहा

उसकी दुनिया का अंधेरा सोच कर तो देखिए
वो जो अंधों की गली में रौशनी बन कर रहा

सनसनी के सौदेबाज़ों से लड़ा जो उम्र-भर
हश्र ये खुद एक दिन वो सनसनी बन कर रहा

एक अंधी दौड़ की अगुआई को बेचैन सब
जब तलक बीनाई थी मैं आखिरी बन कर रहा

--संजय ग्रोवर

4 comments:

  1. नमस्कार,
    इसे आप हमारी टिप्पणी समझें या फिर स्वार्थ। यह एक रचनात्मक ब्लाग शब्दकार के लिए किया जा रहा प्रचार है। इस बहाने आपकी लेखन क्षमता से भी परिचित हो सके। हम आपसे आशा करते हैं कि आप इस बात को अन्यथा नहीं लेंगे कि हमने आपकी पोस्ट पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की।
    आपसे अनुरोध है कि आप एक बार रचनात्मक ब्लाग शब्दकार को देखे। यदि आपको ऐसा लगे कि इस ब्लाग में अपनी रचनायें प्रकाशित कर सहयोग प्रदान करना चाहिए तो आप अवश्य ही रचनायें प्रेषित करें। आपके ऐसा करने से हमें असीम प्रसन्नता होगी तथा जो कदम अकेले उठाया है उसे आप सब लोगों का सहयोग मिलने से बल मिलेगा साथ ही हमें भी प्रोत्साहन प्राप्त होगा। रचनायें आप shabdkar@gmail.com पर भेजिएगा।
    सहयोग करने के लिए अग्रिम आभार।
    कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
    शब्दकाररायटोक्रेट कुमारेन्द्र

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  2. धुँआधार लेखनी
    जबरदस्त गजल
    सर शेर दिल में उतारते हुए
    बहुत बेह्तारीएँ काफिया निर्वहन

    वीनस केसरी

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  3. bahut hi badhiya gajal,aisa laga ki man ke taron ko kisi ne jhnkrit kar diya ho
    dusari rachna ke intazar me aapka.......
    mera desh mera gaon

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  4. सजंय जी,बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।

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