Thursday, April 9, 2009

कभी याद बनके आ तो सही

कभी याद बनके आ तो सही
तू पहले मुझे भुला तो सही

फिर करना मेरे गमों का इलाज
सितम पहले अपने गिना तो सही

मिटा देना नाम हथेली से मेरा
पहले दिल से मुझे मिटा तो सही

क्या खबर लौट आये गुज़रा ज़माना
तू आवाज़ दे के बुला तो सही

छट जायेंगें बादल ग़मों के
एक बार दिल से मुस्कुरा तो सही

मिलेगा खुदा पत्थरों में भी
सजदे में सर को झुका तो सही

ना कर कोई वादा फिर से नया
वादे पुराने निभा तो सही

--अज्ञात

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