Friday, April 10, 2009

आंख से आंख मिला, बात बनाता क्यूं है

आंख से आंख मिला, बात बनाता क्यूं है
तू अगर मुझसे खफ़ा है तो छुपाता क्यूँ है

ग़ैर लगता है, ना अपनो की तरह मिलता है
तू ज़माने की तरह मुझे सताता क्यूँ है

वक़्त के साथ हालात बदल जाते हैं
ये हकीकत है मगर मुझे सुनाता क्यूँ है

एक मुद्दत से जहां काफ़िले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों पे चराग़ों को जलाता क्यूँ है

--सईद राही


Source : http://www.urdupoetry.com/srahi02.html

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