आपसी रिश्तों में अब उलझन नहीं है
दुशमनी है पर कोई दुश्मन नहीं है
क्यूं उठाये उंगलियां कोई किसी पर
बेदाग कोई भी यहां दामन नहीं है
है फलक तक रौशनी ही रौशनी
दिल मगर कोई यहां रौशन नहीं है
किस तरह घुटनों के बल बचपन चलेगा
अब किसी घर में कहीं आंगन नहीं है
खौफ मुझको बिजलियओं का हर्ष क्यूं हो
मेरी दुनिया में कोई गुलशन नहीं है
--हर्ष
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