Wednesday, April 29, 2009

तुमसे मुमकिन हो तो बालों में सजा लो मुझको

तुमसे मुमकिन हो तो बालों में सजा लो मुझको
शाख से टूटने वाला हूँ, सम्भालो मुझको

मोम के ढेर को हल्की सी तमाज़त भी बहुत
हो अकेले तो किसी शक्ल में ढालो मुझको

तुमसे न टूटेगा इस शब की स्याही का तिलिस्म
मैने पहले ही कहा था कि जला लो मुझको

कल वो मांझी भी था, पतवार भी था, कश्ती भी
आज एक एक से कहता है, बचा लो मुझको

रात मुझसे मेरी तहरीर ने चुपके से कहा
कल की बोसीदा किताबों में छुपा लो मुझको

--अमीर कज़लबाश

तमाज़त=आंच
बोसीदा=पुरानी

1 comment:

  1. this is one of my fav ghazal...

    aawaz to deta hai bahut door se lekin.
    kabhi rasta to apne tak aane ka mujhe de..
    by ameer kajalbaksh

    dost if u have this ghazal too plz send it to me
    sonuiitd@gmail.com

    amit

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