Wednesday, April 29, 2009

इक फुरसत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन

इक फुरसत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौंसले परवर-दिगार के
--फैज़ अहमद फैज़

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