Thursday, April 9, 2009

साथ छोड़ जाता है क्यूँ कोइ दो कदम चलने के बाद

साथ छोड़ जाता है क्यूँ कोइ दो कदम चलने के बाद
ख्वाब आखिर टूट ही जाते हैं आंखों में पलने के बाद

ग़ौर से देख ले चांद को टूटे तारे न देख
आलम ये फिर कहां होगा रात के ढलने के बाद

खाये हैं बड़ी फुरसत से धोखे यारों से हर दिन
खुश तो हुए होंगे मेरे दोस्त मुझे छलने के बाद

अंधेरों से कर ले दोस्ती अंधेरे ही होंगे साथ
बुझ जाती है शमा भी परवानों के जलने के बाद

आखिरी सफर पर निकल पड़ी है कुबूल कीजिये सलाम
राख भी ना हाथ आयेगी रूह के जलने के बाद

--अज्ञात

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