Monday, April 6, 2009

राज़ की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया

राज़ की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया
जाने क्यों रुसवाईयों का सिलसिला रहने दिया

उम्र भर मेरे साथ रहकर वो ना समझा दिल की बात
दो दिलों के दर्मियां इक फ़ासला रहने दिया

अपनी फ़ितरत वो बदल पाया न इसके बावजूद
खत्म की रंजिश मगर गिला रहने दिया

मैं समझता था खुशी देगी मुझे "सबीर" फ़रेब
इस लिये मैं ने ग़मों से राब्ता रहने दिया

--सबीर जलालबादी

राब्ता=Relationship

No comments:

Post a Comment