ख्वाब में आ कर वो मेरी नींद उड़ाती थी बहुत
हर घड़ी वो देख कर मुस्कुराती थी बहुत
छोड़ ही देना पड़ा घबरा कर उसके शहर को
याद उसकी रात दिन मुझको रुलाती थी बहुत
अपनी बाहों में जब जा कर लेती थी रंजो आलम
आ के एक अन्दाज़ में मुझको हंसाती थी बहुत
अपने दिल की बात वो कभी मुझ से कहती न थी
दूसरों के प्यार के किस्से सुनाती थी बहुत
चाहती थी सिर्फ़ मेरी ही नज़र उस पर पड़े
गैरों की नज़रों से वो खुद को बचाती थी बहुत
दिन तो कट जाता था दोस्तो के साथ में
रात में लेकिन वो मुझको याद आती थी बहुत
--अज्ञात
बहुत बढिया रचना प्रेषित की है।बधाई।
ReplyDeleteखूबसूरत पोस्ट ..
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