Sunday, April 12, 2009

शजर के कद न मैं शाखों की लम्बाई से डरता हूँ

शजर के कद न मैं शाखों की लम्बाई से डरता हूँ
किसी पर्वत न मैं पर्वत की ऊँचाई से डरता हूँ
समंदर नापना भी चुटकियों का काम है लेकिन
तुम्हारी झील सी आंखों की गहराई से डरता हूँ
-अज्ञात

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