वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात
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वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात
Kahan dhoondte firte ho ishq ko tum ai bekhabar........
ye khud hi dhoond leta hai jise isko barbaad karna hota hai...
Unknown.....
चुभ गया आँख में किसी कांटे की तरह
जब भी किसी ख्वाब को पलकों पे सजाना चाहा
--अज्ञात
बदलते शहरों में मुकाम लिखेगा
बेटा बड़ा हो कर कोहराम लिखेगा
यकीन तुझे होगा जब आशिक तेरा
किसी और की हथेली पे तेरा नाम लिखेगा
--मानस भारद्वाज
न दिल का रोग था, न यादें थी, और न ही ये हिजर
तेरे प्यार से पहले की नींदें भी कमाल की थी
-अज्ञात
न गरज़ किसी से, न वास्ता
मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से, तेरी फ़िक्र से
तेरी याद से, तेरे नाम से
--अज्ञात
चलने को रास्ता नहीं होता
तब भी कुछ बुरा नहीं होता
सिर्फ तुमको भूल नहीं पाए
करने से वर्ना क्या नहीं होता
अपना गम पुराना नहीं होता
भले ही कभी नया नहीं होता
मेरी शायरी सब झूठी है
किस्सा सच्चा बयां नहीं होता
जो तूने हाँ कर दी होती
मेरा तब भी भला नहीं होता
सोचता हूँ रस्सी कहाँ होती
अगर मेरा गला नहीं होता
यार उनका क्या होता है ?
जिनका कभी बुरा नहीं होता
सुना है दिल ऐसा होता है
जिसमे कुछ खुरदुरा नहीं होता
दुनिया शायद और बुरी होती
जो तेरा गम जुडा नहीं होता
पर फिर मेरा क्या होता
अगर रास्ता मुडा नहीं होता
अब मुझे अच्छा नहीं लगता
जब मेरे साथ बुरा नहीं होता
तुझमे मुझमे फर्क नहीं होता
जो बाप का पैसा नहीं होता
होने को तो सब हो सकता था
पर तब क्या ऐसा नहीं होता ?
सब तेरे जैसे होते हैं
पर कोई तेरे जैसा नहीं होता
"मानस" ये तो हद है तेरी
चाँद कहने से तेरा नहीं होता
मानस भारद्वाज
जब प्यार नही है,तो भुला क्यो नही देते..
खत किस लिए रखे है, जला क्यो नही देते..
क्यो तुमने लिखा ,अपनी हथेली पे मेरा नाम..
मैं हर्फ़ ग़लत हू, तो मिटा क्यो नही देते..
किस वास्ते तडपते हो, मासूम मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर , पिला क्यो नही देते..
गर तुमको मुहब्बत है तो, आ जाओ मेरे घर
दीवार ज़माने की, गिरा क्यो नही देते..
मेरी मुहब्बत पे अगर, शक है तुम्हे तो
ए मेरे हमराज़, निगाहों से गिरा क्यो नही देते..
--अज्ञात
कितना इख्तियार था उसको अपनी इस चाहत पे "अजनबी"
इस लिए जब चाहा याद किया, जब चाहा भुला दिया
--अजनबी एक गुमनाम शायर
राहों पे नज़र रखना, होंटों पे दुआ रखना
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना
इस रात की शम्मा को इस तरह जलाए रखना
अपनी भी खबर रखना, उसका भी पता रखना
तन्हाई के मौसम में सायों की हुकूमत है
यादों के उजालों को सीने से लगा रखना
रातों को भटकने की देता है सज़ा मुझको
दुश्वार है पहलू में दिल तेरे बिना रखना
लोगों की निगाहों को पढ़ लेने की आदत है
हालात की तहरीरें चेहरे से बचा रखना
फूलों में रहे अगर दिल तो याद दिला देना
तन्हाई के लम्हों का हर ज़ख्म हरा रखना
एक बूँद भी अश्कों की दामन न भिगो पाए
गम उसकी अमानत है, पलकों पे सजा रखना
इस तरह कही उससे बरताव रहे अपना
वो भी न बुरा माने, दिल का भी कहा रखना
--कतील शिफाई
फिर उसी रहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकेँ, मगर शायद
जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त गौर कर, शायद
मुन्तज़िर जिन के हम रहे उन को
मिल गये और हम-सफ़र शायद
जो भी बिछ्डे हैँ कब मिले हैँ फ़राज़
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद
अहमद फ़राज़
सारी सारी रात सितारों से उसका ज़िक्र होता है
और उसको ये गिला है के हम याद नहीं करते
--अज्ञात
दिल लगी में वक़्त-ए -तन्हाई ऐसा भी आता है
कि रात चली जाती है मगर अँधेरे नहीं जाते
--अज्ञात
joojh rahe the pehle hi nafrato se...
aur idhar mohabbat ne bhi morcha khol dia....
amit harsh
मेरे ही हाथों पर मेरी तकदीर लिखी है
और मेरी ही तकदीर पे मेरा बस नहीं चलता
--अज्ञात
तुम्हारी याद किसी मुफ़लिस की पूँजी जैसी
जिसे हम साथ रखते हैं, जिसे हम रोज़ गिनते हैं
--अज्ञात
[मुफलिस=गरीब]
मुझे लिख कर कही महफूज़ कर लो दोस्तों
तुम्हारी यादाश्त से निकलता जा रहा हूँ मैं
--अज्ञात
उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे ,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे ?.
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ,
ये मुसाफिर तो कोई और ठिकाना चाहे .
एक बनफूल था इस शहर में वो भी ना रहा,
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे .
ज़िन्दगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा,
वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे .
हम अपने आप से कुछ इस तरह हुए रुखसत,
साँस को छोड़ दिया जिस तरफ जाना चाहे .
--Unknown...
रिवाज़ तो यही है दुनिया का..........मिल जाना....बिछड जाना
तुमसे ये कैसा रिश्ता है?? न मिलते हो...न बिछड़ते हो
--अज्ञात
इक तिरी याद का आलम कि बदलता ही नहीं
वरना वक़्त आने पे हर चीज़ बदल जाती है.
--अज्ञात
ख़ुश्बू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
माँगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
तुम छत पर नहीं आये मैं घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत लटका सावन कि घटाओं में
इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
फूलों की बदन वाली ख़ुश्बू सी अदाओं में
दुनिया की तरह वो भी हँसते हैं मुहब्बत पर
डूबे हुये रहते थे जो लोग वफ़ाओं में
--बशीर बद्र
मौसम बदल रहा है .. हवायें बदल रही है
वक़्त बदल रहा है ... वफ़ायें बदल रही है
असर दौर का .. मोहब्बत पर लाज़मी है
मर्ज़ मुस्तकिल है …. दवायें बदल रही है
--अमित हर्ष
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mausam badal rahaa hai .. hawaaye badal rahi hai
waqt badal rahaa hai …..… wafaaye badal rahi hai
asar daur ka ……..…. mohbbat pe laajimi hai
marz mustakil hai … dawaaye badal rahi hai
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* मुस्तकिल mustakil = स्थायी, शाश्वत, permanent, eternal
ना कोई ख्वाब ना कोई सहेली थी...
इस मोहब्बत में, मैं अकेली थी...
इश्क़ में तुम कहाँ के सच्चे थे...
जो अज़ीयत थी हम ने झेली थी...
याद अब कुछ नहीं रहा लेकिन...
एक दरिया था या हवेली थी...
जिस ने उलझा के रख दिया दिल को...
वो मुहब्बत थी या पहेली थी...
मैं ज़रा सी भी कम वफ़ा करती
तुम ने तो मेरी जान ले ली थी...
वक़्त के साँप खा गये उस को...
मेरे आँगन में ऐक चमेली थी...
इस शब-ए-गम में किस को बतलाऊं...
कितनी रोशन मेरी हथेली थी
--नोशी गिलानी
मुझे मिटटी के घर बनाने का शौक था
उसे आशियाने गिराने का शौक था
मैं खुद से रूठ जाता हूँ अक्सर इस लिए
मुझे रूठे हुए लोग मनाने का शौक था
उसे वादों की पासदारी पसंद न थी
लेकिन मुझे अहद निभाने का शौक था
मैं मसरूफ था तनहाइयों की तलाश में
उसे लोगों से मिलने मिलाने का शौक था
वो बेवफा थी इस में हैरत की बात क्या?
मुझे बेवफा से दिल लगाने का शौक था
--अज्ञात
http://www.freesms4.com/2010/04/27/mujhe-mitti-k-ghar-bananay-ka-shoq-tha/
पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफा के मुझे
जिसे क़रार ना आया कहीं भुला के मुझे
जूदाईयाँ हों तो ऐसी की उम्र भर ना मिले
फरेब तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे
मैं खुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गये आईना दिखा के मुझे
--अहमद फराज़
क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था तो था तुझी से मुझे
बेहिसी का भी अब नही एहसास
क्या हुआ तेरी बेरूख़ी से मुझे
मौत के आरज़ू भी कर देखूं
क्या उम्मीदें थी ज़िंदगी से मुझे
फिर किसी पर ना ऐतबार आए
यूँ उतरो ना अपने जी से मुझे
तेरा ग़म भी ना हो तो क्या जीना
कुछ तसल्ली है दर्द ही से मुझे
कर गये किस क़दर तबाह 'ज़िया'
दुश्मन, अंदाज़-ए-दोस्ती से मुझे
--जिया जलंधरी
दिल का अमीर मुक़द्दर का गरीब था
मिल के बिछडना मेरा नसीब था
घः के भी कुछ न कर सके
घर भी जलता रहा, समंदर भी करीब था
--अज्ञात
कुछ उम्र की पहली मंजिल थी
कुछ रास्ते थे अनजान बहुत
कुछ हम भी पागल थे लेकिन
कुछ वो भी थे नादान बहुत
कुछ उसने भी न समझाया
ये प्यार नहीं आसान बहुत
आखिर हमने भी खेल लिया
जिस खेल में था नुकसान बहुत
जब बिखर गए तो ये जाना
आते हैं यहाँ तूफ़ान बहुत
जब बिखर गए तो ये जाना
आते हैं यहाँ तूफ़ान बहुत
अब कोई नहीं जो अपना हो
मिलने को हैं इंसान बहुत
ऐ काश वो वापिस आ जाए
ये दिल है अब सुनसान बहुत
कुछ रात की काली स्याही थी
कुछ सपने थे वीरान बहुत
यूं पास कड़ी थी मंजिल पर
या रब भटका इंसान बहुत
--अज्ञात
निशां तक न मिलेंगे मेरी वफ़ा के उसे
के मैंने राह बदल दी है आजमा के उसे !
कभी न हर्फ़ कोई उसकी सादगी का खुला
वर्क वर्क पढ़ा मैंने दिल लगा के उसे !!
जो सब का हाल हुआ था वो मेरा हाल हुआ,
बनी न बात, कोई बात भी सुना के उसे !!
मुझे यकीन है वो लौट कर भी आएगा
मगर उदास हूँ अब रास्ता दिखा के उसे
--अज्ञात
वफ़ा की जंग मत लड़ना ये बेकार जाती है
ज़माना जीत जाता है.. मोहब्बत हार जाती है
हमारा तजकिरा छोडो, हम ऐसे लोग हैं जिनको
ज़माना कुछ नहीं कहता... जुदाई मार जाती है
--अज्ञात
na jaane auro ko kaisa lagta hoon main...
ye aarzoo hai ke bahar se dekh lu khud ko.
unknown..
मुझे पाना इतना मुश्किल तो न था
तीन लफ़्ज़ों के लिए कुछ मेहनत तो कर
--अज्ञात
बीती हुई ज़िंदगी की कुछ इतनी सी कहानी है
कुछ हम खुद बर्बाद हुए, कुछ उनकी मेहरबानी है
--अज्ञात
शाम के साये, जो सूरज को छुपाने निकले
हम दिए ले के, अंधेरों को मिटाने निकले
और तो कोई न था, जो जुर्म-ए-मोहब्बत करता,
एक हम ही थे, जो ये रस्म निभाने निकले
शहर में, दश्त में, सेहरा में भी तुझको पाया
ऐ गम-ए-यार, तेरे कितने ठिकाने निकले
--अज्ञात
जाते हुए उसने सिर्फ इतना कहा था मुझसे
ओ पागल ... अपनी ज़िंदगी जी लेना, वैसे प्यार अच्छा करते हो
--अज्ञात
दीवान-ए-गज़ल जिसकी मोहब्बत में लिखा था
वो शक्स किसी और की किस्मत में लिखा था
वो शेर कभी उसकी नज़र से नहीं गुज़रा
जो डूब के जज़्बात की शिद्दत में लिखा था
दुनिया में तो ऐसे कोई आसार नही थे
शायद तेरा मिलना भी क़यामत में लिखा था
तू मेरे लिए कैसे बदल सकता था खुद को
हरजाई ही रहना तेरी फितरत में लिखा था
--अज्ञात
Maut aaye to din phire shayad...
Zindagi ne to maar daala hai...
Unknown
बड़े सुकून से रुखसत तो कर दिया उसको
फिर उसके बाद मोहब्बत ने इंतहा कर दी
--अज्ञात
बेशक बहुत नाज़ है अपनों के रिश्तों पर, उनकी चाहत पर
एक दिन मेरी मौत पर आ कर सब कहेंगे -- कितनी देर और है ले जाने में
--अज्ञात
हज़ारों काम है मुझे मसरूफ रखते हैं
मगर वो शख्स ऐसा है के फिर भी याद आता है
--अज्ञात
दियो का कद घटाने के लिए रातें बड़ी करना ,
बड़े शेहरो में रहना हो तो बातें बड़ी करना
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सबको नहीं आता ,
किसी को छोड़ना हो तो फिर मुलाकातें बड़ी करना
--वसीम बरेलवी
प्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है
इक बादल से बड़ी आस लगा रखी है
तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं
इन चिरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है
तेरी बातों को छिपाना नहीं आता मुझको
तूने खुश्बू मेरे लहज़े में बसा रखी है
खुद को तन्हा ना समझो ए नये दीवानो
खाक हमने भी कई सहराओं की उड़ा रखी है
--इकबाल अशार
देखना है ये नफरत और किस मकाम तक पहुंचे
गोधरा से चले थे हम अक्षरधाम तक पहुंचे
तुझको भूल जाऊ या तुझे अपना लूं मैं
कोशिश है ये अफसाना किसी अंजाम तक पहुंचे
--सतलज राहत
तुझसे छुप छुप के रोये तो ये बात खुली
कहने को हम एक हैं, मगर दुःख अपना अपना
--अज्ञात
कोई करे तो करे याद कहाँ तक
आखिर सितम की हो फ़रियाद कहाँ तक
उम्र-ए-आरज़ू बहुत छोटी है मियाँ
करोगे इन बस्तियों को आबाद कहाँ तक
समंदर से गहरी थी हादसे की नीव
हम मकान की रखते बुनियाद कहाँ तक
वक्त की बंदिशें कुछ दुनिया के दायरे
कर सकोगे दिल को आज़ाद कहाँ तक
एक रोज तो दिल को भी भरना ही था
बेमजा ज़िंदगी देती हमको स्वाद कहाँ तक
अब मंजिलों की तलब नहीं है अनुज
देखना है चल सकेंगे उसके बाद कहाँ तक
--अनुज गुरुवंशी
मुस्कराहट जवाब में रखना
आंसुओं को नकाब में रखना
ज़िंदगी सिर्फ एक तेरी खातिर
रूह कब तक अज़ाब में रखना
मैंने ये तय नहीं किया अब तक
ज़िंदगी किस हिसाब में रखना
ठोकरें ज़ुल्मते सितम आंसू
सारी बातें हिसाब में रखना
मैंने अहमद फ़राज़ से सीखा
फूल ले कर किताब में रखना
जाम दुःख का हो चाहे सुख का हो
गर्क मुझको शराब में रखना
तुमको पहचानता नहीं कोई
फिर भी चेहरा नकाब में रखना
--अज्ञात
पहले तमन्ना तहसीन पाने की थी
सबसे अलग भीड़ में नज़र आने की थी
[तहसीन=praise/applause]
नए इन्कलाबों के नए कायदे थे
होड़ लगी उंगलियां उठाने की थी
[इन्कलाबी=revolutionary]
रौशनी का सबब तो बनना था हर किसी को
पर किसकी औकात सूरज सा जल पाने की थी
[सबब=cause/source]
यहाँ से तालीम पाने के बाद औरों की तरह
उसकी तमन्ना भी मुल्क छोड़ जाने की थी
जब हम अलग हैं तो औरों से मुकाबला क्यूं
शर्त खुद ही से आगे निकल जाने की थी
'मिश्रा' दुनिया को बता देते की मोहब्बत क्या है
गर तोड़ पाते जो बंदिश ज़माने की थी
--अभिषेक मिश्रा
हम से भुलाया ही नहीं जाता एक मुखलिस का प्यार
लोग जिगर वाले हैं जो रोज नया महबूब बना लेते हैं
--अज्ञात
http://www.freesms4.com/2010/07/27/log-jigar-walay-hain-jo/
मेरे टूटे हुए दिल में वो बसा है अब भी
लौट आओ के मेरे दिल में जगह है अब भी
उसको अपनी जफ़ाओ से शिकायत हो न हो
हमें तो अपनी वफाओं से गिला है अब भी
--अज्ञात
http://www.freesms4.com/2010/09/16/mere-toote-hue-dil-me-wo-basa-he-ab-bhi/
कभी जज्बों कभी ख़्वाबों की तिजारत कर के
दिल ने दुःख दर्द कमाए हैं मोहब्बत कर के
तुम जब आओगे तो महफूज़ मिलेंगे तुमको
हमने दफनाए हैं कुछ ख़्वाब अमानत कर के
इक ज़रा सी भूल हुई और उसे खो बैठे
हमने पाया था जिसे बरसो में इबादत कर के
--अज्ञात
Source : http://www.freesms4.com/2010/09/20/paya-tha-jisay-barson-me-ibadat-kar-k/
रेज़ा-ए-कांच की सूरत मैं बिखर जाता हूँ
मैं उसकी याद में जब हद से गुज़र जाता हूँ
अब गुरेज़ाँ है वो मिलने से जो कहता था कभी
तुमसे मिलते ही मैं कुछ और निखर जाता हूँ
रोज खाता हूँ उसको याद न करने की क़सम
रोज वादों से अपने ही मुकर जाता हूँ
मुझको तमाशा बना दिया है मोहब्बत ने उसकी
लोग कसते हैं ताने मैं जिधर जाता हूँ
हर मोड़ पे खाया है मोहब्बत में धोखा अर्श
अब कोई प्यार से पुकारे तो डर जाता हूँ
--अर्श
Source : http://www.freesms4.com/2010/09/25/main-us-ki-yad-mai-jb-had-se-guzar-jata-hun/
बड़ा मज़ा हो के महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो खुदा के लिए
[mahshar=The last day]
--अज्ञात
हजूम में था वो खुल कर न रो सका होगा
मगर यकीन है के सब भर न सो सका होगा
वो शक्स जिस को समझने में मुझको उम्र लगी
बिछड के मुझसे किसी का न हो सका होगा
लरजते हाथ, शिकस्त सी डोर आंसू की
वो खुश्क फूल कहाँ तक पिरो सका होगा
बहुत उजाड थे पाताल उसकी आँखों के
वो आंसूं से न दामन भिगो सका होगा
मेरे लिए वो कबीले को छोड़ कर आता
मुझे यकीन है ये उस से न हो सका होगा
--अज्ञात
Source : http://www.freesms4.com/2011/04/02/mujhe-yakeen-hai-yeh-us-se-na-ho-saka-hoga/
मोहब्बत का असर होगा, गलत फ़हमी में मत रहना
वो बदलेगा चलन अपना, गलत फ़हमी में मत रहना
तसल्ली भी उसे देना, ये मुमकिन है मैं लौट आऊं
मगर ये भी उसे कहना, गलत फ़हमी में मत रहना
तुम्हारा था, तुम्हारा हूं, तुम्हारा ही रहूंगा मैं
मेरे बारे में इस दरजा गलत फ़हमी में मत रहना
मोहब्बत का भरम टूटा है अब छुप छुप के रोते हो
तुम्हें मैंने कहा था ना गलत फ़हमी में मत रहना
बचा लेगा तुझे सेहरा की तपती धूप से तैमूर
किसी की याद का साया, गलत फ़हमी में मत रहना
तैमूर हसन
पेशतर इसके के कोई बात उछाली जाए
शहर से रस्म-ए-मोहब्बत ही निकाली जाए ?
एक दो दिन की जुदाई हो तो खामोश रहूँ
क्या ये अच्छा है के आदत ही बना ली जाए ?
एक दिन अमन का गहवाराह बनाएगी दुनिया
काश दिल से मेरे ये खाम खयाली जाए
[Khaam khayaali=Apprehension, Whim]
अब तो कब्रें भी मेरी जान नहीं हैं महफूज़
ये भी मुमकिन है के मय्यत ही उठा ली जाए
माल असबाब तो क्या बचेगा फरहात
इतना काफी है के इज्ज़त ही बचा ली जाए
[Maal asbaab : Load]
--फरहात अब्बास
महफ़िल लगी थी बद्दुआओं की, हमने भी दिल से कहा
उसे इश्क हो !! उसे इश्क हो !! उसे इश्क हो !! किसी बेवफा से
--अज्ञात
एक आरज़ू है पूरी परवरदिगार करे
मैं देर से जाऊं, वो मेरा इंतज़ार करे
--अज्ञात
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बदल समझता है
तू मुझसे दूर कैसी है मैं तुझसे दूर कैसा हूँ
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
प्यार एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं की मेरे आँखों में आंसू हैं
जो तू समझे तो मोती हैं, जो न समझे तो पानी है
समुन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है, मैं इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता
--डा कुमार विश्वास
दिल की दिल में ना रह जाये ये कहानी कह लो
चाहे दो हर्फ़ लिखो चाहे ज़बानी कह लो
मैंने मरने की दुआ माँगी वो पूरी ना हुई
बस इस को मेरे जीने की कहानी कह लो
सर_सर-ए-वक़्त उड़ा ले गई रूदाद-ए-हयात
वही अवराक़ जिन्हें अहद-ए-जवानी कह लो
[sar_sar-e-vaqt = winds of time; rudaad-e-hayaat = tale of life]
[avaraaq = pages; ahad-e-javaanii = youthful period]
तुम से कहने की ना थी बात मगर कह बैठा
अब इसे मेरी तबियत की रवानी कह लो
वही इक क़िस्सा ज़माने को मेरा याद रहा
वही इक बात जिसे आज पुरानी कह लो
हम पे जो गुज़री है बस उस को रक़म करते हैं
आप बीती कहो या मर्सियाख़्वानी कह लो
--अज्ञात
कायम है ज़माने में रिश्वतों के सिलसिले
तुम भी कुछ ले दे के मुझसे मोहब्बत कर लो
--अज्ञात
मेरे पीछे ये ज़माना पड़ जाये ..
जाने कब शहर से जाना पड़ जाये ..
तू किसी को भी अपना दिल दे दे ..
कही मुझको न चुराना पड़ जाये ..
छुड़ा के पीछा वो ये सोचती है
फिर से पीछे वो दीवाना पड़ जाये ..
आ भी जा के नया है इश्क मेरा ..
इससे पहले के पुराना पड़ जाये .
--सतलज राहत
तुम आँखों की बरसात बचाए हुए रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले
ये बात अलग है, हाथ कलम हो गए अपने
हम आपकी तस्वीर बनाना नहीं भूले
--सागर आज़मी
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद
मैं कैसे और किसी सिम्त मोड़ता हूँ खुद को
किसी की चाह न थी दिल में तेरी चाह के बाद
--कृष्ण बिहारी नूर
संग को तकिया बना कर, ख़्वाब को चादर कर के
जिस जगह थकता हूँ, पड़ा रहता हूँ बिस्तर कर के
अब किसी आन्झ का जादू नहीं चलता मुझपर
वो नज़र भूल गयी है, मुझे पत्थर कर के
यार लोगों ने बहुत रंज दिए थे मुझको
जा चुके हैं जो हिसाब बराबर कर के
उसको भी पड़ गया एक और ज़रूरी कोई काम
मैं भी घर पर न रहा वक़्त मुक़र्रर कर के
दिल की ख्वाहिश ही रही, पूछेंगे एक दिन उस से
किस को आबाद किया है मुझे बर्बाद कर के
--अज्ञात
कुछ 'दुश्मन' में हो जाए तब्दील .... तो बेहतर है
ये तादाद 'दोस्तों' की .. हमसे संभाली नहीं जाती
--अमित हर्ष
अपनी ज़िंदगी को इश्क में फनाह करते हैं
कुछ लोग आज भी इश्क बेवजाह करते हैं
मुझे चाहने वाले अक्सर रूठ जाते हैं मुझसे
हम सच बोलते हैं यही गुनाह करते हैं
अजीब दौर चला है सुना है कि अब लोग
इश्क किसी से करते हैं और किसी से निकाह करते हैं
--अभिषेक मिश्रा
प्यार का नश्शा , मोहब्बत की खुमारी देखे
जो भी देखे यहाँ .. मुझ पर तुझे तारी देखे
बस तेरे आरिज़_ओ_ रुखसार ही आते हैं नज़र
किसको फुर्सत जो यहाँ चोट हमारी देखे
मुझे भी शहर में छोटी सी सल्तनत दे दे
राह कब तक वो मेरी राजकुमारी देखे
--सतलज राहत
न तर्क होने के,न विचार होने के...!
दुखड़े कई है,बेरोजगार होने के...!!
प्रतिशद फैसला करे है जिंदगानी का..!
फायेदे मामूली है,होशियार होने के..!!
के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!
मसले तो बहुत है,तकरार होने के...!
गम-ए-रोजगार से निकल कर कहा जाये..!
करे है होसले परवरदिगार होने के..!!
अपने सितारे भी क्या कमजोर हुए ''बेदिल''..!
जाते रहे मोके नाम वार होने के...!!!
बेदिल शाहपुरी
सूरज , सितारे , चाँद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे
और शाखों जो टूट जाये वो पत्ते नही है हम
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे
--राहत इंदोरी
वो ही महसूस करते है तपिश दर्द-ए-दिल की फ़राज
जो अपने आप से बढ कर किसी से प्यार करते है
--अहमद फराज़
खुश हूँ तेरे बगैर ..... बताने से पहले
रो पड़ा था वो .... मुस्कुराने से पहले
हो न जायें जाया ... सब ‘एहसान’ तेरे
ज़रा सोच लेना .. तुम जताने से पहले
--अमित हर्ष
मान जाए ‘कल’ शायद पर .. ‘आज’ रहता है
वो इन दिनों .. कुछ हमसे ‘नाराज़’ रहता है
हर बात से उसकी ...... 'इत्तेफाक' रखता हूँ
इस बात पर भी उसे ....... 'ऐतराज' रहता है
--अमित हर्ष
एक एक लव्ज़ का मफ़हूम बदल रखा है
आज से हमने तेरा नाम गज़ल रखा है
और मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है
--राहत इंदोरी
अभी मसरूफ हूँ काफी, कभी फुरसत में सोचूंगा
के तुझको याद करने में, मैं क्या क्या भूल जाता हूँ
--अज्ञात
हम जा रहे हैं वहाँ, जहाँ दिल की कदर हो
बैठे रहो तुम अपनी अदाएं लिए हुए
--अज्ञात
हमारा तजकिरा छोडो, हम ऐसे लोग हैं जिन को
मोहब्बत कुछ नहीं कहती, वफायें मार जाती हैं
--अज्ञात
मोहब्बत नहीं है क़ैद मिलने या बिछड़ने की
ये इन खुदगर्ज़ लफ़्ज़ों से बहुत आगे की बात है
--अज्ञात
कितनी बदनाम है बाज़ार-ए-मोहब्बत में वफ़ा
लोग इस चीज़ के पास आ के चले जाते हैं
--अज्ञात
तुम्हारे पास नहीं तो फिर किसके पास है
वो टूटा हुआ दिल आखिर गया कहाँ..
--अज्ञात
तस्वीर यादों की .. रंगीन करता है
बारीकियों को और महीन करता है
महज़ हरक़तें .. ‘नागवार’ है थोड़ी
पर बातें वो ..... ‘जहीन’ करता है
--अमित हर्ष
[ज़हीन=serious/गहरी]
बड़ी तब्दीलियाँ आईं हैं अपने आप में लेकिन
तुझे याद करने की वो आदत नहीं गयी
--अज्ञात
न छेड़ किस्सा-ऐ-उल्फत. बड़ी लम्बी कहानी है,
मैं ज़माने से नहीं हारा. किसी की बात मानी है...!!
--अज्ञात
वो शख्स के जो मेरा अपना भी नहीं है
हो जाये किसी और का मुझे अच्छा नहीं लगता
--अज्ञात
रुखसत हुआ तो बात मेरी मान कर गया
जो था उसके पास वो मुझे दान कर गया
बिछड़ा कुछ इस अदा से के रुत ही बदल गयी
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
दिलचस्प वाक्य है की कल एक अज़ीज़ दोस्त
अपनी मुफाद पर मुझे कुर्बान कर गया
इतनी सुधर गयी है जुदाई में ज़िन्दगी
हाँ ! वो जफा से तो मुझ पे एहसान कर गया
मैं बात बात पर कहता था जिसको जान
वो शख्स आखिर आज मुझे बेजान कर गया
--खालिद शरीफ
समंदर जैसा बेक़रार कर के छोड़ दिया..
इश्क में उसको गिरफ्तार कर के छोड़ दिया ..
मौत अब आ ही जा तू साथ दवाई लेकर ..
ज़िन्दगी ने मुझे बीमार कर के छोड़ दिया ...
नसीब ने भी अजब खेल दिखाया के हमे ...
हर एक शय का तलबगार कर के छोड़ दिया ...
उम्र गुजरेगी उसकी भी ग़लतफ़हमी में ...
हमने भी इश्क का इज़हार कर के छोड़ दिया ...
प्यार में सबको ही मैंने सबक सिखाया है ...
तुझे भी कितना समझदार कर के छोड़ दिया ...
वो तो गलियों में दीवानी सी फिरा करती थी...
मैंने बस थोडा सा सिंगार कर के छोड़ दिया..
हाँ सच है प्यार कई बार भी हो सकता है ...
"सतलज" तुने क्यों एक बार कर के छोड़ दिया..
--सतलज राहत
दिल में फिर जैसे ज़लज़ले आये ...
ख्याल तेरे यूं चले आये.. ...
हमने छोड़ा नहीं तेरा दामन ...
कितने मौसम बुरे भले आये..
गुज़ारिश हो रही है लम्हों से ...
कोई तो साथ तुझे ले आये ....
जिनकी नियत में बस मोहब्बत थी. ..
उनकी किस्मत में फासले आये...
हैरान रह गई सारी दुनिया ....
खुदा के ऐसे फैसले आये...
बिछड़ते वक़्त बस यही गम है ....
हम बहुत दूर तक चले आये ...
शाम होते ही मेरी आँखों में ...
कितनी यादो के काफिले आये..
"सतलज" तुमको बहुत रोका था...
तुम नहीं माने , तुम चले आये......
--सतलज राहत
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है
भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है
आज क्या बात है के फूलों का
रन्ग तेरी हँसी से मिलता है
मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है
कारोबार-ए-जहाँ सँवरते हैं
होश जब बेख़ुदी से मिलता है
जिगर मोरादाबादी
मकानों के थे, या ज़मानो के थे
अजब फासले दरमियानों के थे
सफर यूं तो सब आसमानों थे
करीने मगर कैदखानों के थे
खुली आँख तो सामने कुछ न था
वो मंज़र तो सारे उड़ानों के थे
पकड़ना उन्हें कुछ ज़रूरी न था
परिंदे सभी आशियानो के थे
मुसाफिर की नज़रें बलंदी पे थीं
मगर रास्ते सब ढलानों के थे
उन्हें लूटने तुम कहाँ चल दिए
वो किरदार तो दास्तानो के थे
--शीन काफ नाजमी
खुद से कभी आँख मिलाना भी चाहिए
सोया हुआ ज़मीर जगाना भी चाहिए
कुछ न कहो तुम जुबां से, गर कह दिया
तो उसको निभाना भी चाहिए
बे-हिम्मती को पास फटकने न दो कभी
मायूसियों से दिल को बचाना भी चाहिए
इज्ज़त गयी तो मौत से बत्तर है ज़िंदगी
और इज्ज़त को जान दे के बचाना भी चाहिए
एक रोज इनक़लाब भी चुपके से आएगा
ये बात दोस्तों को बताना भी चाहिए
नफरत जला रही है तो इसका भी है इलाज
उल्फत का बीज दिल में लगाना भी चाहिए
जो ढूँढ़ते हैं सिर्फ बुराई हर एक में
आइना बन के उनको दिखाना भी चाहिए
मिर्ज़ा अमल का वक़्त है बातें तो हो चुकीं
कश्ती को अब भंवर से बचाना भी चाहिए
खुद से कभी आँख मिलाना भी चाहिए
सोया हुआ ज़मीर जगाना भी चाहिए
--इकबाल मिर्ज़ा
बना के छोड़ देते हैं अपने वजूद का आदि
कुछ लोग इस तरह भी मोहब्बतों का सिला देते हैं
--अज्ञात
ज़िंदगी से बारहा यूं भी निभाना पड़ गया
खुल के रोना चाहा था, मुस्कुराना पड़ गया
उनकी आँखें भी नयीं हैं, उनके सपने भी नए
अपने बच्चों के लिए मैं ही पुराना पड़ गया
--बशीर बद्र
अदब की हद में हूँ बे-अदब नहीं होता
तुम्हारा ताज़किरह अब रोज-ओ-शब नहीं होता
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूंही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
कई अमीरों की महरूमियाँ न पूछ के बस
गरीब होने का एहसास अब नहीं होता
मैं वालिदां को ये बात कैसे समझाऊं
मोहब्बत में हस्ब नसब नहीं होता
वहाँ के लोग बड़े दिल फरेब होते हैं
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता
मैं उस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूँ
जहाँ कभी भी खुदा गज़ब नहीं होता
--बशीर बद्र
एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये
या तो खुद ही बदल जाइए या ज़माना बदल दीजिये
अहल-ए-हिम्मत ने हर दौर मैं कोह* काटे हैं तकदीर के
हर तरफ रास्ते बंद हैं, ये बहाना बदल दीजिये
[कोह=पहाड़]
--मंज़र भोपाली
मुश्किल पहले, बाद में हल सोंचेगें
क्या कहना है .... ये कल सोंचेगें
प्यार किया मैंने ‘पुण्य’ समझकर
जो करें ‘पाप’ .. वो ‘फल’ सोंचेंगे
--अमित हर्ष
मुसाफिर के रास्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे
कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे हाथ शोलों पे चलते रहे
मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिए उसकी आँखों में जलते रहे
मोहब्बत, अदावत, वफ़ा बेरुखी
किराए के घर थे बदलते रहे
सुना है उन्हें भी हवा लग गयी
हवाओं का रुख जो बदलते रहे
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
--बशीर बद्र