Saturday, June 16, 2012

कोई करे तो करे याद कहाँ तक

कोई करे तो करे याद कहाँ तक
आखिर सितम की हो फ़रियाद कहाँ तक

उम्र-ए-आरज़ू बहुत छोटी है मियाँ
करोगे इन बस्तियों को आबाद कहाँ तक

समंदर से गहरी थी हादसे की नीव
हम मकान की रखते बुनियाद कहाँ तक

वक्त की बंदिशें कुछ दुनिया के दायरे
कर सकोगे दिल को आज़ाद कहाँ तक

एक रोज तो दिल को भी भरना ही था
बेमजा ज़िंदगी देती हमको स्वाद कहाँ तक

अब मंजिलों की तलब नहीं है अनुज
देखना है चल सकेंगे उसके बाद कहाँ तक

--अनुज गुरुवंशी

1 comment:

  1. u cant imagine how much i love ur blog and the gems u pick up for posting.

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