कोई करे तो करे याद कहाँ तक
आखिर सितम की हो फ़रियाद कहाँ तक
उम्र-ए-आरज़ू बहुत छोटी है मियाँ
करोगे इन बस्तियों को आबाद कहाँ तक
समंदर से गहरी थी हादसे की नीव
हम मकान की रखते बुनियाद कहाँ तक
वक्त की बंदिशें कुछ दुनिया के दायरे
कर सकोगे दिल को आज़ाद कहाँ तक
एक रोज तो दिल को भी भरना ही था
बेमजा ज़िंदगी देती हमको स्वाद कहाँ तक
अब मंजिलों की तलब नहीं है अनुज
देखना है चल सकेंगे उसके बाद कहाँ तक
--अनुज गुरुवंशी
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Saturday, June 16, 2012
कोई करे तो करे याद कहाँ तक
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