कुछ उम्र की पहली मंजिल थी
कुछ रास्ते थे अनजान बहुत
कुछ हम भी पागल थे लेकिन
कुछ वो भी थे नादान बहुत
कुछ उसने भी न समझाया
ये प्यार नहीं आसान बहुत
आखिर हमने भी खेल लिया
जिस खेल में था नुकसान बहुत
जब बिखर गए तो ये जाना
आते हैं यहाँ तूफ़ान बहुत
जब बिखर गए तो ये जाना
आते हैं यहाँ तूफ़ान बहुत
अब कोई नहीं जो अपना हो
मिलने को हैं इंसान बहुत
ऐ काश वो वापिस आ जाए
ये दिल है अब सुनसान बहुत
कुछ रात की काली स्याही थी
कुछ सपने थे वीरान बहुत
यूं पास कड़ी थी मंजिल पर
या रब भटका इंसान बहुत
--अज्ञात
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Friday, October 5, 2012
ae kaash ke vo vaapis aa jaaye
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