Friday, October 5, 2012

ae kaash ke vo vaapis aa jaaye

कुछ उम्र की पहली मंजिल थी
कुछ रास्ते थे अनजान बहुत

कुछ हम भी पागल थे लेकिन
कुछ वो भी थे नादान बहुत

कुछ उसने भी न समझाया
ये प्यार नहीं आसान बहुत

आखिर हमने भी खेल लिया
जिस खेल में था नुकसान बहुत

जब बिखर गए तो ये जाना
आते हैं यहाँ तूफ़ान बहुत

जब बिखर गए तो ये जाना
आते हैं यहाँ तूफ़ान बहुत

अब कोई नहीं जो अपना हो
मिलने को हैं इंसान बहुत

ऐ काश वो वापिस आ जाए
ये दिल है अब सुनसान बहुत

कुछ रात की काली स्याही थी
कुछ सपने थे वीरान बहुत

यूं पास कड़ी थी मंजिल पर
या रब भटका इंसान बहुत

--अज्ञात

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