Wednesday, October 17, 2012

कुछ तसल्ली है दर्द ही से मुझे

क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था तो था तुझी से मुझे

बेहिसी का भी अब नही एहसास
क्या हुआ तेरी बेरूख़ी से मुझे

मौत के आरज़ू भी कर देखूं
क्या उम्मीदें थी ज़िंदगी से मुझे

फिर किसी पर ना ऐतबार आए
यूँ उतरो ना अपने जी से मुझे

तेरा ग़म भी ना हो तो क्या जीना
कुछ तसल्ली है दर्द ही से मुझे

कर गये किस क़दर तबाह 'ज़िया'
दुश्मन, अंदाज़-ए-दोस्ती से मुझे

--जिया जलंधरी

No comments:

Post a Comment