Sunday, January 8, 2012

उदास होने का कोई सबब नहीं होता

अदब की हद में हूँ बे-अदब नहीं होता
तुम्हारा ताज़किरह अब रोज-ओ-शब नहीं होता

कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूंही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता

कई अमीरों की महरूमियाँ न पूछ के बस
गरीब होने का एहसास अब नहीं होता

मैं वालिदां को ये बात कैसे समझाऊं
मोहब्बत में हस्ब नसब नहीं होता

वहाँ के लोग बड़े दिल फरेब होते हैं
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता

मैं उस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूँ
जहाँ कभी भी खुदा गज़ब नहीं होता

--बशीर बद्र

1 comment:

  1. वाह वाह जनाब क्या खूब कहा है

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