Monday, January 9, 2012

ज़िंदगी से बारहा यूं भी निभाना पड़ गया

ज़िंदगी से बारहा यूं भी निभाना पड़ गया
खुल के रोना चाहा था, मुस्कुराना पड़ गया

उनकी आँखें भी नयीं हैं, उनके सपने भी नए
अपने बच्चों के लिए मैं ही पुराना पड़ गया

--बशीर बद्र

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