Thursday, November 15, 2012

आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना

राहों पे नज़र रखना, होंटों पे दुआ रखना
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना

इस रात की शम्मा को इस तरह जलाए रखना
अपनी भी खबर रखना, उसका भी पता रखना

तन्हाई के मौसम में सायों की हुकूमत है
यादों के उजालों को सीने से लगा रखना

रातों को भटकने की देता है सज़ा मुझको
दुश्वार है पहलू में दिल तेरे बिना रखना

लोगों की निगाहों को पढ़ लेने की आदत है
हालात की तहरीरें चेहरे से बचा रखना

फूलों में रहे अगर दिल तो याद दिला देना
तन्हाई के लम्हों का हर ज़ख्म हरा रखना

एक बूँद भी अश्कों की दामन न भिगो पाए
गम उसकी अमानत है, पलकों पे सजा रखना

इस तरह कही उससे बरताव रहे अपना
वो भी न बुरा माने, दिल का भी कहा रखना

--कतील शिफाई

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