ना कोई ख्वाब ना कोई सहेली थी...
इस मोहब्बत में, मैं अकेली थी...
इश्क़ में तुम कहाँ के सच्चे थे...
जो अज़ीयत थी हम ने झेली थी...
याद अब कुछ नहीं रहा लेकिन...
एक दरिया था या हवेली थी...
जिस ने उलझा के रख दिया दिल को...
वो मुहब्बत थी या पहेली थी...
मैं ज़रा सी भी कम वफ़ा करती
तुम ने तो मेरी जान ले ली थी...
वक़्त के साँप खा गये उस को...
मेरे आँगन में ऐक चमेली थी...
इस शब-ए-गम में किस को बतलाऊं...
कितनी रोशन मेरी हथेली थी
--नोशी गिलानी
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Wednesday, October 24, 2012
इस मोहब्बत में, मैं अकेली थी...
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Nici noshi ji
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