पेशतर इसके के कोई बात उछाली जाए
शहर से रस्म-ए-मोहब्बत ही निकाली जाए ?
एक दो दिन की जुदाई हो तो खामोश रहूँ
क्या ये अच्छा है के आदत ही बना ली जाए ?
एक दिन अमन का गहवाराह बनाएगी दुनिया
काश दिल से मेरे ये खाम खयाली जाए
[Khaam khayaali=Apprehension, Whim]
अब तो कब्रें भी मेरी जान नहीं हैं महफूज़
ये भी मुमकिन है के मय्यत ही उठा ली जाए
माल असबाब तो क्या बचेगा फरहात
इतना काफी है के इज्ज़त ही बचा ली जाए
[Maal asbaab : Load]
--फरहात अब्बास
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Saturday, June 9, 2012
क्या ये अच्छा है के आदत ही बना ली जाए ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment