मुस्कराहट जवाब में रखना
आंसुओं को नकाब में रखना
ज़िंदगी सिर्फ एक तेरी खातिर
रूह कब तक अज़ाब में रखना
मैंने ये तय नहीं किया अब तक
ज़िंदगी किस हिसाब में रखना
ठोकरें ज़ुल्मते सितम आंसू
सारी बातें हिसाब में रखना
मैंने अहमद फ़राज़ से सीखा
फूल ले कर किताब में रखना
जाम दुःख का हो चाहे सुख का हो
गर्क मुझको शराब में रखना
तुमको पहचानता नहीं कोई
फिर भी चेहरा नकाब में रखना
--अज्ञात
No comments:
Post a Comment