वो मुझ से बिछड़ कर अब तक रोया नहीं फराज़
कोई तो है हमदर्द जो उसे रोने नहीं देता
--अहमद फराज़
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Tuesday, March 31, 2009
मुनव्वर माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
मुनव्वर माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती
--मुनव्वर राणा
जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती
--मुनव्वर राणा
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फलक
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फलक
मुझको मेरी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
--मुनव्वर राणा
मुझको मेरी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
--मुनव्वर राणा
Monday, March 30, 2009
क्यूँ न गुरूर करें अपने आप पे
क्यूँ न गुरूर करें अपने आप पे
मुझे उस ने चाहा जिसके चाहने वाले हज़ारों थे
--अज्ञात
मुझे उस ने चाहा जिसके चाहने वाले हज़ारों थे
--अज्ञात
किसी की आंख से सपने चुरा कर कुछ नहीं मिलता
किसी की आंख से सपने चुरा कर कुछ नहीं मिलता
मंदिरों से चिरागों को बुझा कर कुछ नहीं मिलता
कोई एक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है
हज़ारों ख्वाब आंखों में सजा कर कुछ नहीं मिलता
सुकून उनको नहीं मिलता कभी परदेस भी जा कर
जिन्हें अपने वतन से दिल लगा कर कुछ नहीं मिलता
इसे कहना के पलकों पर ना टांगे ख्वाबों की झालर
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता
ये अच्छा है के आपस का भ्रम ना टूटने पाये
कभी कभी दोस्तों को आज़मा कर कुछ नहीं मिलता
अमल की सूखती रग में ज़रा सा खून शामिल कर
मेरे हमदम फकत बातें बना कर कुछ नहीं मिलता
मुझे अक्सर सितारों से ये आवाज़ आती है
किसी के हिज्र में नींदें गंवा कर कुछ नहीं मिलता
जिगर हो जायेगा छलनी ये आंखें खून रोयेंगी
वैसे बेफ़ैज़ लोगों से निभा कर कुछ नहीं मिलता
--अज्ञात
हिज्र=जुदाई
बेफ़ैज़=That Which Does Not Yield Anything, Unyielding
मंदिरों से चिरागों को बुझा कर कुछ नहीं मिलता
कोई एक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है
हज़ारों ख्वाब आंखों में सजा कर कुछ नहीं मिलता
सुकून उनको नहीं मिलता कभी परदेस भी जा कर
जिन्हें अपने वतन से दिल लगा कर कुछ नहीं मिलता
इसे कहना के पलकों पर ना टांगे ख्वाबों की झालर
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता
ये अच्छा है के आपस का भ्रम ना टूटने पाये
कभी कभी दोस्तों को आज़मा कर कुछ नहीं मिलता
अमल की सूखती रग में ज़रा सा खून शामिल कर
मेरे हमदम फकत बातें बना कर कुछ नहीं मिलता
मुझे अक्सर सितारों से ये आवाज़ आती है
किसी के हिज्र में नींदें गंवा कर कुछ नहीं मिलता
जिगर हो जायेगा छलनी ये आंखें खून रोयेंगी
वैसे बेफ़ैज़ लोगों से निभा कर कुछ नहीं मिलता
--अज्ञात
हिज्र=जुदाई
बेफ़ैज़=That Which Does Not Yield Anything, Unyielding
है प्यार उनको हम से, इतना तो यकीन है हमें
है प्यार उनको हम से, इतना तो यकीन है हमें
वो इंकार भी करते हैं, तो आंखें साथ नहीं देती
--अज्ञात
वो इंकार भी करते हैं, तो आंखें साथ नहीं देती
--अज्ञात
जो कहा मैने कि प्यार आता है मुझको तुम पर
जो कहा मैने कि प्यार आता है मुझको तुम पर
हंस के कहने लगे और आपको आता क्या है
--अकबर अलाहबादी
हंस के कहने लगे और आपको आता क्या है
--अकबर अलाहबादी
नहीं आती तो उनकी याद अरसे तक नहीं आती
नहीं आती तो याद उनकी महीनों भर नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
--हसरत मोहनी
Source : http://www.urdupoetry.com/hasrat02.html
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
--हसरत मोहनी
Source : http://www.urdupoetry.com/hasrat02.html
Sunday, March 29, 2009
रुक गया आंख से बहता हुआ दरिया कैसे
रुक गया आंख से बहता हुआ दरिया कैसे
ग़म का तूफान तो बहुत तेज़ था, ठहरा कैसे
हर घड़ी तेरे खयालों में घिरा रहता हूं
मिलना चाहूँ तो मिलूं खुद से तनहा कैसे
मुझ से जब तर्क-ए-तालुक का किया अहद तो फ़िर
मुड़ के मेरी तरफ आपने देखा कैसे
मुझ को खुद पर ही भरोसा नहीं होने पाता
लोग कर लेते हैं ग़ैरों पर भरोसा कैसे
दोस्तो शुक्र करो, मुझसे मुलाकात हुई
ये ना पूछो कि लुटी है मेरी दुनिया कैसे
देखी होटों की हंसी ज़ख्म ना देखे दिल के
आप दुनिया की तरह खा गये धोखा कैसे
और भी अहल-ए-खिरद अहल-ए-जुनून थे मौजूद
लुट गये हम ही तेरी बज़्म में तनहा कैसे
इस जनम में तो कभी मैं न इधर से गुज़रा
तेरी राहों में मेरे नक्श-ए-कफ-ए-पा कैसे
ज़ुल्फें चेहरे से हटा लो, कि हटा दूं मैं खुद
नूर के होते हुए इतना अंधेरा कैसे
--कृष्ण बिहारी नूर
tark-e-taalluk=sambandh todna
ahad=waada
ahal-e-khirad=intelligent
ahal-e-zunoon=deewaane
bazm=mahfil,sabhaa
naqsh-e-cuff-e-paa=pairon ke nishaan
ग़म का तूफान तो बहुत तेज़ था, ठहरा कैसे
हर घड़ी तेरे खयालों में घिरा रहता हूं
मिलना चाहूँ तो मिलूं खुद से तनहा कैसे
मुझ से जब तर्क-ए-तालुक का किया अहद तो फ़िर
मुड़ के मेरी तरफ आपने देखा कैसे
मुझ को खुद पर ही भरोसा नहीं होने पाता
लोग कर लेते हैं ग़ैरों पर भरोसा कैसे
दोस्तो शुक्र करो, मुझसे मुलाकात हुई
ये ना पूछो कि लुटी है मेरी दुनिया कैसे
देखी होटों की हंसी ज़ख्म ना देखे दिल के
आप दुनिया की तरह खा गये धोखा कैसे
और भी अहल-ए-खिरद अहल-ए-जुनून थे मौजूद
लुट गये हम ही तेरी बज़्म में तनहा कैसे
इस जनम में तो कभी मैं न इधर से गुज़रा
तेरी राहों में मेरे नक्श-ए-कफ-ए-पा कैसे
ज़ुल्फें चेहरे से हटा लो, कि हटा दूं मैं खुद
नूर के होते हुए इतना अंधेरा कैसे
--कृष्ण बिहारी नूर
tark-e-taalluk=sambandh todna
ahad=waada
ahal-e-khirad=intelligent
ahal-e-zunoon=deewaane
bazm=mahfil,sabhaa
naqsh-e-cuff-e-paa=pairon ke nishaan
समझते थे, मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने
समझते थे, मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
कोई तितली हमारे पास आती भी तो क्या आती
सजाये उम्र भर कागज़ के फूल और पत्तियां हमने
यूं ही घुट घुट के मर जाना हमें मंज़ूर था लेकिन
किसी कमज़र्फ पर ज़ाहिर ना की मजबूरियां हमने
हम उस महफिल में बस एक बार सच बोले थे ए वाली
ज़ुबान पर उम्र भर महसूस की चिंगारियां हमने
--वाली आसी
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
कोई तितली हमारे पास आती भी तो क्या आती
सजाये उम्र भर कागज़ के फूल और पत्तियां हमने
यूं ही घुट घुट के मर जाना हमें मंज़ूर था लेकिन
किसी कमज़र्फ पर ज़ाहिर ना की मजबूरियां हमने
हम उस महफिल में बस एक बार सच बोले थे ए वाली
ज़ुबान पर उम्र भर महसूस की चिंगारियां हमने
--वाली आसी
मेरे सुनहरे ख्वाब की ताबीर बन कर आ
मेरे सुनहरे ख्वाब की ताबीर बन कर आ
तू भी तो कभी मेरी तकदीर बन कर आ
--अज्ञात
तू भी तो कभी मेरी तकदीर बन कर आ
--अज्ञात
ये इनायतें गज़ब की, ये बला की मेहरबानी
ये इनायतें गज़ब की, ये बला की मेहरबानी
मेरी खैरियत भी पूछी, किसी और की ज़बानी
मेरा ग़म रुला चुका है तुझे बिखरी ज़ुल्फ वाले
ये घटा बता रही है, कि बरस चुका है पानी
तेरा हुस्न सो रहा था, मेरी छेड़ ने जगाया
वो निगाह मैने डाली कि संवर गयी जवानी
मेरी बेज़ुबान आंखों से गिरे हैं चन्द कतरे
वो समझ सके तो आंसू, न समझ सके तो पानी
--नज़ीर बनारसी
*********************************
इस गज़ल को जगजीत सिंह ने भी गाया है
मेरी खैरियत भी पूछी, किसी और की ज़बानी
मेरा ग़म रुला चुका है तुझे बिखरी ज़ुल्फ वाले
ये घटा बता रही है, कि बरस चुका है पानी
तेरा हुस्न सो रहा था, मेरी छेड़ ने जगाया
वो निगाह मैने डाली कि संवर गयी जवानी
मेरी बेज़ुबान आंखों से गिरे हैं चन्द कतरे
वो समझ सके तो आंसू, न समझ सके तो पानी
--नज़ीर बनारसी
*********************************
इस गज़ल को जगजीत सिंह ने भी गाया है
आयेगा लिखते लिखते ही लिखने का फ़न उन्हें
आयेगा लिखते लिखते ही लिखने का फ़न उन्हें
बच्चे खराब करते हैं कुछ कापियां ज़रूर
--अज्ञात
बच्चे खराब करते हैं कुछ कापियां ज़रूर
--अज्ञात
इस अंजुमन में सभी थे नज़र बचाये हुए
anjuman=Gathering, Meeting, Society
इस अंजुमन में सभी थे नज़र बचाये हुए
एक मेरा वजूद मेरे दोस्तो पे भारी था
--अज्ञात
तुझे घाटा न होने देंगें कारोबार-ए-उल्फत में
तुझे घाटा ना होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में
हम अपने सर तेरा ऎ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं
--फ़िराक़ गोरखपुरी
हम अपने सर तेरा ऎ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं
--फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ौर से देख तुझे दरिया में मिल जायेगी
ग़ौर से देख तुझे दरिया में मिल जायेगी
मेरे बहते हुए अश्कों की खबर पानी में
--कुंवर बेचैन
मेरे बहते हुए अश्कों की खबर पानी में
--कुंवर बेचैन
उस पार अब तो कोई तेरा मुन्तज़िर नहीं
उस पार अब तो कोई तेरा मुन्तज़िर नहीं
कच्चे घड़े पर तैर कर जाना फिज़ूल है
--अंजुम रहबर
कच्चे घड़े पर तैर कर जाना फिज़ूल है
--अंजुम रहबर
बिक जायें बाज़ार में हम भी, लेकिन उस से क्या होगा
बिक जायें बाज़ार में हम भी, लेकिन उस से क्या होगा
जिस कीमत पर तुम मिलते हो, उतने कहाँ है अपने दाम
--ग़ुलज़ार
जिस कीमत पर तुम मिलते हो, उतने कहाँ है अपने दाम
--ग़ुलज़ार
ये न थी किसमत कि विसाल-ए-यार होता
ये न थी किसमत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता
--मिरज़ा ग़ालिब
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता
--मिरज़ा ग़ालिब
दुश्मनी जम कर करो पर ये गुंजाइश रहे
दुश्मनी जम कर करो पर ये गुंजाइश रहे
जब भी हम दोस्त बनें तो शर्मिंदा न हों
--निदा फाज़ली
जब भी हम दोस्त बनें तो शर्मिंदा न हों
--निदा फाज़ली
तुम पूछो और मैं न बताऊँ, ऐसे तो कोई हालात नहीं
तुम पूछो और मैं न बताऊँ, ऐसे तो कोई हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है, और तो कोई बात नहीं
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel18.html
एक ज़रा सा दिल टूटा है, और तो कोई बात नहीं
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel18.html
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख से ही न टपका तो फ़िर लहू क्या है
--मिरज़ा ग़ालिब
जब आँख से ही न टपका तो फ़िर लहू क्या है
--मिरज़ा ग़ालिब
तुम उनके वादे का ज़िक्र उनसे क्यों करो ग़ालिब
तुम उनके वादे का ज़िक्र उनसे क्यों करो ग़ालिब
ये क्या कि तुम कहो, और वो कहें याद नहीं
--मिरज़ा ग़ालिब
ये क्या कि तुम कहो, और वो कहें याद नहीं
--मिरज़ा ग़ालिब
अच्छा सा कोई मौसम, तनहा सा कोई आलम
अच्छा सा कोई मौसम, तनहा सा कोई आलम
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है
--निदा फ़ाज़ली
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है
--निदा फ़ाज़ली
हम इंतज़ार करेंगे क़यामत तक
हम इंतज़ार करेंगे क़यामत तक
खुदा करे कि क़यामत हो और तू आये
--साहिर लुधियानवी
खुदा करे कि क़यामत हो और तू आये
--साहिर लुधियानवी
अब जिसके जी में आये वही रौशनी पाये
अब जिसके जी में आये वही रौशनी पाये
हमने तो दिल जला के सरे आम रख दिया
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel29.html
हमने तो दिल जला के सरे आम रख दिया
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel29.html
तुम मुझे कभी दिल कभी आंखो से पुकारो ग़ालिब
तुम मुझे कभी दिल कभी आंखो से पुकारो ग़ालिब
ये होंठो का तकल्लुफ़ तो ज़माने के लिये है
--मिरज़ा ग़ालिब
ये होंठो का तकल्लुफ़ तो ज़माने के लिये है
--मिरज़ा ग़ालिब
क्यूँ बक्श दिया मुझ से गुनाहगार को मौला
मुनसिफ़=Judge
क्यूँ बक्श दिया मुझ से गुनाहगार को मौला
मुनसिफ़ तो किसी से रियायत नही करता
--क़तील शिफ़ाई
क्यूँ बक्श दिया मुझ से गुनाहगार को मौला
मुनसिफ़ तो किसी से रियायत नही करता
--क़तील शिफ़ाई
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग्दार में
--बहादुर शाह ज़फ़र
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग्दार में
--बहादुर शाह ज़फ़र
इंसान, और देखे बगैर, उसको मान ले
इंसान, और देखे बगैर, उसको मान ले
इक खौफ़ का बशर ने खुदा नाम रख दिया
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel29.html
इक खौफ़ का बशर ने खुदा नाम रख दिया
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel29.html
आँखों में जो भर लोगे तो कांटों से चुभेंगें
आँखों में जो भर लोगे तो कांटों से चुभेंगें
ये ख्वाब तो हैं पल्कों पे सजाने के लिये
--जान निसार अख्तर
Source : http://www.urdupoetry.com/jna03.html
ये ख्वाब तो हैं पल्कों पे सजाने के लिये
--जान निसार अख्तर
Source : http://www.urdupoetry.com/jna03.html
जान देने का कहा मैने तो हंस कर बोले
जान देने का कहा मैने तो हंस कर बोले
तुम सलामत रहो हर रोज़ के मरने वाले
--अमीर
तुम सलामत रहो हर रोज़ के मरने वाले
--अमीर
दबा के चल दिये सब कब्र में, दुआ न सलाम
दबा के चल दिये सब कब्र में, दुआ न सलाम
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
--क़मर जलालवी
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
--क़मर जलालवी
इस इनायत की नज़र से देखने का शुक्रिया
इस इनायत की नज़र से देखने का शुक्रिया
मुझे सब कुछ मिल गया, तेरा गया कुछ भी नहीं
--अज्ञात
मुझे सब कुछ मिल गया, तेरा गया कुछ भी नहीं
--अज्ञात
सलीका ही नहीं उसे महसूस करने का
सलीका ही नहीं उसे महसूस करने का
जो कहता है, खुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
--वसीम बरेलवी
जो कहता है, खुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
--वसीम बरेलवी
वो मेरा सब कुछ था, बस मुकद्दर नहीं फराज़
वो मेरा सब कुछ था, बस मुकद्दर नहीं फराज़
काश वो मेरा कुछ नहीं बस मुकद्दर होता
--अहमद फराज़
काश वो मेरा कुछ नहीं बस मुकद्दर होता
--अहमद फराज़
तुम्हारा नाम किसी अजनबी के लब पर था
तुम्हारा नाम किसी अजनबी के लब पर था
ज़रा सी बात थी, दिल को मगर लगी है बहुत
--अज्ञात
ज़रा सी बात थी, दिल को मगर लगी है बहुत
--अज्ञात
कोई दोस्त है, न रकीब है
कोई दोस्त है, न रकीब है
तेरा शहर कितना अजीब है
वो जो इश्क़ था जुनून था
ये जो हिज्र है नसीब है
--अज्ञात
तेरा शहर कितना अजीब है
वो जो इश्क़ था जुनून था
ये जो हिज्र है नसीब है
--अज्ञात
Saturday, March 28, 2009
तोहमतें तो लगती रही रोज़ नई नई हम पर फराज़
तोहमतें तो लगती रही रोज़ नई नई हम पर फराज़
पर जो सब से हसीन इल्ज़ाम था, वो तेरा ही नाम था
--अहमद फराज़
पर जो सब से हसीन इल्ज़ाम था, वो तेरा ही नाम था
--अहमद फराज़
चूमते हैं कभी लब को, कभी रुखसारों को तुम्हारे
चूमते हैं कभी लब को, कभी रुखसारों को तुम्हारे
तुमने अपनी ज़ुल्फों को बहुत सर पे चढ़ा रखा है
--अज्ञात
तुमने अपनी ज़ुल्फों को बहुत सर पे चढ़ा रखा है
--अज्ञात
न जा की आखिरी हिचकी को ज़रा गौर से सुन
न जा की आखिरी हिचकी को ज़रा गौर से सुन
ज़िन्दगी भर का खुलासा इसी आवाज़ में है
--अज्ञात
ज़िन्दगी भर का खुलासा इसी आवाज़ में है
--अज्ञात
बहुत बेबाक आंखों में तालुक टिक नहीं पाता
बहुत बेबाक आंखों में तालुक टिक नहीं पाता
मोहब्बत में कशिश के लिये शर्माना ज़रूरी है
--वसीम बरेलवी
मोहब्बत में कशिश के लिये शर्माना ज़रूरी है
--वसीम बरेलवी
वक्त के साथ बदलता है मुकद्दर भी
वक्त के साथ बदलता है मुकद्दर भी
तुम्हे कुछ भी बदलना है तो पहले अपनी सोच बदलो
--अज्ञात
तुम्हे कुछ भी बदलना है तो पहले अपनी सोच बदलो
--अज्ञात
ग़म बयान करने का कोई और तरीका इजाद कर
ग़म बयान करने का कोई और तरीका इजाद कर
तेरी आंखों का पानी तो पुराना हो गया
--अज्ञात
तेरी आंखों का पानी तो पुराना हो गया
--अज्ञात
जा हमेशा के लिये मुझे छोड़ कर जाने वाले
जा हमेशा के लिये मुझे छोड़ कर जाने वाले
तुझसे हर लम्हा बिछड़ने का डर तो खत्म हुआ
--वसीम बरेलवी
तुझसे हर लम्हा बिछड़ने का डर तो खत्म हुआ
--वसीम बरेलवी
तेरे वादे पर जिये हम तो ये जान झूठ जाना
तेरे वादे पर जिये हम तो ये जान झूठ जाना
के खुशी से मर ना जाते अगर ऐतबार होता
--मिरज़ा ग़ालिब
के खुशी से मर ना जाते अगर ऐतबार होता
--मिरज़ा ग़ालिब
नज़र से नज़र कर रही हो बात जहां
नज़र से नज़र कर रही हो बात जहां
क्यों बेवजह लब करें शिरकत वहां अपनी
--अज्ञात
क्यों बेवजह लब करें शिरकत वहां अपनी
--अज्ञात
उलझता रहता हूँ यूँ तुम्हारी यादों से
उलझता रहता हूँ यूँ तुम्हारी यादों से
के जैसे बच्चे के हाथों में ऊन आ जाये
--मुनव्वर राणा
के जैसे बच्चे के हाथों में ऊन आ जाये
--मुनव्वर राणा
कोई तालुक ना था, तो खफा क्यों होते
कोई तालुक ना था, तो खफा क्यों होते
बेरूखी उनकी मोहब्बत का पता देती है
--अज्ञात
बेरूखी उनकी मोहब्बत का पता देती है
--अज्ञात
अहल-ए-महफिल में नदामत से झुकेंगी पलकें
अहल-ए-महफिल = लोगों की महफिल
नदामत=Guilt, Regret, Repentance
अहल-ए-महफिल में नदामत से झुकेंगी पलकें
सरफिरे जब भी बज़्म में हिसाब मांगेंगें
--अज्ञात
तुम साथ थी हमारे, तुम पास थी हमारे
तुम साथ थी हमारे, तुम पास थी हमारे
वो ज़िन्दगी का एक दिन, या ज़िन्दगी थी एक दिन
--अज्ञात
वो ज़िन्दगी का एक दिन, या ज़िन्दगी थी एक दिन
--अज्ञात
लिखा है क्या लकीरों में, क्या होगा अन्जाम पता नहीं
लिखा है क्या लकीरों में, क्या होगा अन्जाम पता नहीं
हम दिल दे चुके उनको, जिनको खुदा ने दिल दिया नहीं
--अज्ञात
हम दिल दे चुके उनको, जिनको खुदा ने दिल दिया नहीं
--अज्ञात
उसका किरदार परख लेना यकीन से पहले
उसका किरदार परख लेना यकीन से पहले
मेरे बारे में जो तुमसे बुरा कहता होगा
--अज्ञात
मेरे बारे में जो तुमसे बुरा कहता होगा
--अज्ञात
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं
सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं
चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊं
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊं
शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं
--मुनव्वर राणा
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं
सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं
चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊं
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊं
शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं
--मुनव्वर राणा
Friday, March 27, 2009
कभी उफ़्फ़ कभी हाय, कभी हम फरियाद करते हैं
कभी उफ़्फ़ कभी हाय, कभी हम फरियाद करते हैं
वो नहीं मिले, जिन्हें हम याद करते हैं
--मेजर ध्यान चन्द पिल्ले
वो नहीं मिले, जिन्हें हम याद करते हैं
--मेजर ध्यान चन्द पिल्ले
फराज़ खुश हो के एहसान उस सितमगर के
फराज़ खुश हो के एहसान उस सितमगर के
जो तुझ पर हैं वो किसी और पर न थे ऐसे
--अहमद फराज़
जो तुझ पर हैं वो किसी और पर न थे ऐसे
--अहमद फराज़
कभी फराज़ से आ कर मिलो जो वक्त मिले
कभी फराज़ से आ कर मिलो जो वक्त मिले
ये शक्स खूब है अशार के इलावा भी
--अहमद फराज़
ये शक्स खूब है अशार के इलावा भी
--अहमद फराज़
अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़
अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़
इक उम्र हो गयी उसकी याद क नशा करते करते
--अहमद फराज़
इक उम्र हो गयी उसकी याद क नशा करते करते
--अहमद फराज़
रात हो, दिन हो, गफलत हो के बेदारी हो
रात हो, दिन हो, गफलत हो के बेदारी हो
उसको देखा तो नहीं उसको सोचा है बहुत
--कृष्ण बिहारी नूर
उसको देखा तो नहीं उसको सोचा है बहुत
--कृष्ण बिहारी नूर
Sunday, March 22, 2009
जाने किस बात की शिकायत है उनको मुझसे
जाने किस बात की शिकायत है उनको मुझसे
नाम तक जिनका नहीं है मेरे अफसाने में
--अज्ञात
नाम तक जिनका नहीं है मेरे अफसाने में
--अज्ञात
अपनी तखलीक से वो खुद अयां करता है
तखलीक=creation
अयां=clear,evident
अपनी तखलीक से वो खुद अयां करता है
उसकी कुदरत का इशारा है तुम्हारा चेहरा
--अज्ञात
मेरे बगैर कैसे गुज़री होगी उसकी कल की रात
मेरे बगैर कैसे गुज़री होगी उसकी कल की रात
उसकी आंख का फैला काजल सारी कहानी सुनाता है
--अज्ञात
उसकी आंख का फैला काजल सारी कहानी सुनाता है
--अज्ञात
वो बता रहा था बहुत दूर का सफर
वो बता रहा था बहुत दूर का सफर
ज़ंजीर खींच कर जो मुसाफिर उतर गया
--मिदाहतुल अख्तर
ज़ंजीर खींच कर जो मुसाफिर उतर गया
--मिदाहतुल अख्तर
ये धुंआ कम हो, तो पहचान मुमकिन हो शायद
ये धुंआ कम हो, तो पहचान मुमकिन हो शायद
यूँ तो वो जलता हुआ अपना ही घर लगता है
--एजाज़ आज़र
यूँ तो वो जलता हुआ अपना ही घर लगता है
--एजाज़ आज़र
मेरे मरने के बाद मेरी कहानी लिखना
मेरे मरने के बाद मेरी कहानी लिखना
कैसे बरबाद हुई मेरी जवानी लिखना
ये भी लिखना उसे इंतज़ार था बहुत
आखिरी सांसों की हुई जब रवानी लिखना
--अज्ञात
कैसे बरबाद हुई मेरी जवानी लिखना
ये भी लिखना उसे इंतज़ार था बहुत
आखिरी सांसों की हुई जब रवानी लिखना
--अज्ञात
गवाह चाह रहे थे वो मेरी बेगुनाही का
गवाह चाह रहे थे वो मेरी बेगुनाही का
ज़ुबान से कह न सका कुछ खुदा गवाह के बाद
--कृष्ण बिहारी नूर
ज़ुबान से कह न सका कुछ खुदा गवाह के बाद
--कृष्ण बिहारी नूर
तरसा था जिस वजूद की कुरबत को उम्र भर
तरसा था जिस वजूद की कुरबत को उम्र भर
वो मिल गया तो और भी तन्हाई बढ़ गयी
--अज्ञात
वो मिल गया तो और भी तन्हाई बढ़ गयी
--अज्ञात
मैं ये समझा था, कि खत्म मेरी दास्तां हुई
मैं ये समझा था, कि खत्म मेरी दास्तां हुई
वो बिछड़ कर और भी लम्बी कहानी कर गया
--अज्ञात
वो बिछड़ कर और भी लम्बी कहानी कर गया
--अज्ञात
कहाँ से नींद चुरा कर लाऊं उसकी आँखों में भर दूं
कहाँ से नींद चुरा कर लाऊं उसकी आँखों में भर दूं,
कि माँ जाग रही थी कल भी मेरे सो जाने के बाद...
-स्वीट 'जज्बाती'
कि माँ जाग रही थी कल भी मेरे सो जाने के बाद...
-स्वीट 'जज्बाती'
Saturday, March 21, 2009
खुद को चुनते हुए दिन सारा गुज़र जाता है फ़राज़
खुद को चुनते हुए दिन सारा गुज़र जाता है फ़राज़
फ़िर हवा शाम की चलती है तो बिखर जाते हैं
--अहमद फराज़
फ़िर हवा शाम की चलती है तो बिखर जाते हैं
--अहमद फराज़
अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था
मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था
वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था
मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था
--अहमद फराज़
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था
मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था
वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था
मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था
--अहमद फराज़
ज़िक्र बेवफाओं का रात था सर-ए-महफिल
ज़िक्र बेवफाओं का रात था सर-ए-महफिल
झुक गया हमारा सर जब तुम्हारा नाम आया
--अज्ञात
झुक गया हमारा सर जब तुम्हारा नाम आया
--अज्ञात
तड़पते हुए सहरा से जो बिन बरसे गुज़र जाये
तड़पते हुए सहरा से जो बिन बरसे गुज़र जाये
इतनी भी मग़रूर ना कोई सावन की घटा हो
--अज्ञात
इतनी भी मग़रूर ना कोई सावन की घटा हो
--अज्ञात
मैं उस वक्त से डरता हूँ, जब कोई पूछ न ले
मैं उस वक्त से डरता हूँ, जब कोई पूछ न ले
ये गर ज़ब्त का आंसू है तो टपका कैसे
--अज्ञात
ये गर ज़ब्त का आंसू है तो टपका कैसे
--अज्ञात
खुद शाख-ए-गुल को टूटते देखा है आंख से
खुद शाख-ए-गुल को टूटते देखा है आंख से
किस दर्जा हौंसला अभी बूढ़े शजर में है
--मुनव्वर राणा
किस दर्जा हौंसला अभी बूढ़े शजर में है
--मुनव्वर राणा
मोहब्बत तो वो पहली ही मोहब्बत थी फराज़
मोहब्बत तो वो पहली ही मोहब्बत थी फराज़
इसके बाद तो हर शक्स में ढूँढा उस को
--अहमद फराज़
इसके बाद तो हर शक्स में ढूँढा उस को
--अहमद फराज़
Friday, March 20, 2009
सूखी शाखों पर तो हमने लहू छिड़का था फ़राज़
सूखी शाखों पर तो हमने लहू छिड़का था फ़राज़
कलियां अब भी न खिलती तो कयामत होती
--अहमद फराज़
कलियां अब भी न खिलती तो कयामत होती
--अहमद फराज़
मोहब्बत की परस्तिश के लिये एक रात ही काफी है फराज़
मोहब्बत की परस्तिश के लिये एक रात ही काफी है फराज़
सुबह तक जो ज़िन्दा रह जाये वो परवाना नहीं होता
--अहमद फराज़
सुबह तक जो ज़िन्दा रह जाये वो परवाना नहीं होता
--अहमद फराज़
उसका मिलना ही मुक्कद्दर में न था फ़राज़
उसका मिलना ही मुक्कद्दर में न था फ़राज़
वरना क्या कुछ नहीं खोया हमने उसे पाने के लिये
--अहमद फराज़
वरना क्या कुछ नहीं खोया हमने उसे पाने के लिये
--अहमद फराज़
कुछ इसलिये भी तुम से मोहब्बत है फ़राज़
कुछ इसलिये भी तुम से मोहब्बत है फ़राज़
मेरा तो कोई नहीं है तुम्हारा तो कोई हो
--अहमद फराज़
मेरा तो कोई नहीं है तुम्हारा तो कोई हो
--अहमद फराज़
डूबने वाला था, और साहिल पे चेहरों का हुजूम
डूबने वाला था, और साहिल पे चेहरों का हुजूम
पल की मोहलत थी, मैं किसको आंख भर के देखता
--अहमद फराज़
पल की मोहलत थी, मैं किसको आंख भर के देखता
--अहमद फराज़
अजब लुत्फ आ रहा था दीदार-ए-दिल्लगी का फराज़
अजब लुत्फ आ रहा था दीदार-ए-दिल्लगी का फराज़
के नज़रें भी मुझ पर थीं और परदा भी मुझ से था
--अहमद फराज़
के नज़रें भी मुझ पर थीं और परदा भी मुझ से था
--अहमद फराज़
Thursday, March 19, 2009
मेरे जज़्बात से वाकिफ है मेरा कलाम फराज़
मेरे जज़्बात से वाकिफ है मेरा कलाम फराज़
मैं प्यार लिखूं तो नाम तेरा लिखा जाता है
--अहमद फराज़
मैं प्यार लिखूं तो नाम तेरा लिखा जाता है
--अहमद फराज़
तखलीक आसमान पे वो मेरे लिये हुआ है फराज़
तखलीक=creation
तखलीक आसमान पे वो मेरे लिये हुआ है फराज़
माना के इस ज़मीन पे वो मेरा नहीं है
--अहमद फराज़
Saturday, March 14, 2009
वो मुझ तक आने की राह चाहता है
वो मुझ तक आने की राह चाहता है
लेकिन मेरी मोहब्बत का गवाह चाहता है
खुद तो है बदलते मौसम की तरह
लेकिन मेरे इश्क़ की इंतहा चाहता है
--अज्ञात
लेकिन मेरी मोहब्बत का गवाह चाहता है
खुद तो है बदलते मौसम की तरह
लेकिन मेरे इश्क़ की इंतहा चाहता है
--अज्ञात
वो रुसवा ना हो, इस लिये रुसवाई पसंद है
वो रुसवा ना हो, इस लिये रुसवाई पसंद है
दर्द से वाबस्ता जुदाई पसंद है
कल जो मेरे साथ को ज़िन्दगी समझती थी
आज वो कहती है मुझे तनहाई पसंद है
--अज्ञात
दर्द से वाबस्ता जुदाई पसंद है
कल जो मेरे साथ को ज़िन्दगी समझती थी
आज वो कहती है मुझे तनहाई पसंद है
--अज्ञात
वक्त गुज़रा तो ये मलाल हुआ
वक्त गुज़रा तो ये मलाल हुआ
खत्म एक ज़िन्दगी का साल हुआ
कितनी शिद्दत से कोई याद आया
आज जीना बड़ा मुहाल हुआ
सोच के झील में गिरा पत्थर
बेसबब मुन्तशिर खयाल हुआ
लोग देखे बहुत मगर जाना
कोई तेरी कहां मिसाल हुआ
--अज्ञात
खत्म एक ज़िन्दगी का साल हुआ
कितनी शिद्दत से कोई याद आया
आज जीना बड़ा मुहाल हुआ
सोच के झील में गिरा पत्थर
बेसबब मुन्तशिर खयाल हुआ
लोग देखे बहुत मगर जाना
कोई तेरी कहां मिसाल हुआ
--अज्ञात
खिंचे खिंचे से रहते हो
खिंचे खिंचे से रहते हो, क्यों
खिंचे खिंचे से रहते हो, ध्यान किसका है
ज़रा बताओ तो ये इम्तेहान किसका है
हमें भुला दो मगर ये तो याद ही होगा
हमें भुला दो मगर ये तो याद ही होगा
नई सड़क पे पुराना मकान किसका है
--अल्ताफ राजा
खिंचे खिंचे से रहते हो, ध्यान किसका है
ज़रा बताओ तो ये इम्तेहान किसका है
हमें भुला दो मगर ये तो याद ही होगा
हमें भुला दो मगर ये तो याद ही होगा
नई सड़क पे पुराना मकान किसका है
--अल्ताफ राजा
ये कैसी शर्त लगाई है मेरी आंखों ने
ये कैसी शर्त लगाई है मेरी आंखों ने
तुझको सोचना छोड़ूँ तो नींद आयेगी
--अज्ञात
तुझको सोचना छोड़ूँ तो नींद आयेगी
--अज्ञात
नहीं बसता तेरे बाद कोई दिल के वीरान आंगन में
नहीं बसता तेरे बाद कोई दिल के वीरान आंगन में
हज़ार बार लगाई है, फरोख्त की तख्ती मैं ने
--अज्ञात
हज़ार बार लगाई है, फरोख्त की तख्ती मैं ने
--अज्ञात
आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती
आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती
आंसू हैं कि सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं
--मुनव्वर राणा
आंसू हैं कि सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं
--मुनव्वर राणा
मुख्तसर तो वैसे ही ना थी कैद-ए-हयात
मुख्तसर तो वैसे ही ना थी कैद-ए-हयात
और मियाद बढ़ा दी शब-ए-तनहाई ने
--अज्ञात
मुख्तसर=छोटी
हयात=ज़िन्दगी
शब=रात
और मियाद बढ़ा दी शब-ए-तनहाई ने
--अज्ञात
मुख्तसर=छोटी
हयात=ज़िन्दगी
शब=रात
वो नाम लिखते हुए
वो नाम लिखते हुए, रोये तो ज़रूर होंगे ए कासिद
यहां आंसू गिरे होंगे जहां तहरीर बिगड़ी है
--कासिद
तहरीर=लिखावट
यहां आंसू गिरे होंगे जहां तहरीर बिगड़ी है
--कासिद
तहरीर=लिखावट
सिर्फ़ हाथों को न देखो, कभी आंखें भी पढ़ो
सिर्फ़ हाथों को न देखो, कभी आंखें भी पढ़ो
कुछ सवाली बड़े खुद्दार हुआ करते हैं
--अज्ञात
कुछ सवाली बड़े खुद्दार हुआ करते हैं
--अज्ञात
jab kabhii chaahe andhero me ujaale usne
जब कभी चाहे अंधेरों में उजाले उसने
कर दिया घर मेरा शोलों के हवाले उसने
उस पे खुल जाती मेरे शौक की शिद्दत सारी
देखे होते जो मेरे पांव के छाले उसने
जिसका हर ऐब ज़माने से छुपाया मैने
मेरे किस्से सर-ए-बाज़ार उछाले उसने
जब उसे मेरी मोहब्बत पर भरोसा ही ना था
क्यों दिये मेरी वफाओं के हवाले उसने
एक मेरा हाथ ही ना थामा उसने फराज़
वरना गिरते हुए तो कितने ही संभाले उसने
--अहमद फराज़
कर दिया घर मेरा शोलों के हवाले उसने
उस पे खुल जाती मेरे शौक की शिद्दत सारी
देखे होते जो मेरे पांव के छाले उसने
जिसका हर ऐब ज़माने से छुपाया मैने
मेरे किस्से सर-ए-बाज़ार उछाले उसने
जब उसे मेरी मोहब्बत पर भरोसा ही ना था
क्यों दिये मेरी वफाओं के हवाले उसने
एक मेरा हाथ ही ना थामा उसने फराज़
वरना गिरते हुए तो कितने ही संभाले उसने
--अहमद फराज़
Wednesday, March 11, 2009
baad marne ke bhii usne chhoRa na
बाद मरने के भी उसने छोड़ा न दिल जलाना फ़राज़
रोज़ फ़ेंक जाती है फूल साथ वाली कब्र पर
--अहमद फराज़
रोज़ फ़ेंक जाती है फूल साथ वाली कब्र पर
--अहमद फराज़
aarzu-e-safar ka jab hamane iraadaa kiyaa
आरज़ू-ए-सफर का जब हमने इरादा किया
तो साथ चलने का उसने भी वादा किया
कुछ उसको रास ना आई वफा की बातें
कुछ ऐतबार हमने भी ज़्यादा किया
--अज्ञात
तो साथ चलने का उसने भी वादा किया
कुछ उसको रास ना आई वफा की बातें
कुछ ऐतबार हमने भी ज़्यादा किया
--अज्ञात
ज़िन्दगी तो अपने ही कदमों पे चलती है
ज़िन्दगी तो अपने ही कदमों पे चलती है फ़राज़
ग़ैरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं
--अहमद फराज़
ग़ैरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं
--अहमद फराज़
jo bhii bichhRe hain kab mile hain...
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं फ़राज़
फ़िर भी तू इंतज़ार कर शायद
--अहमद फराज़
फ़िर भी तू इंतज़ार कर शायद
--अहमद फराज़
vo jiske paas rahta tha
वो जिसके पास रहता था दोस्तों का हुजूम
सुना है फ़राज़ कल रात एहसास-ए-तनहाई से मर गया
--अहमद फराज़
सुना है फ़राज़ कल रात एहसास-ए-तनहाई से मर गया
--अहमद फराज़
vo apne faayde kii khaatir
वो अपने फायदे की खातिर फिर आ मिले थे हम से फ़राज़
हम नादां समझे के हमारी दुआओं में असर है
--अहमद फराज़
हम नादां समझे के हमारी दुआओं में असर है
--अहमद फराज़
mujhe tum rooh me basaa lo
मुझे तुम रूह में बसा लो तो अच्छा है फ़राज़
दिल-ओ-जान के रिश्ते अक्सर टूट जाया करते हैं
--अहमद फराज़
दिल-ओ-जान के रिश्ते अक्सर टूट जाया करते हैं
--अहमद फराज़
ab niind se kaho,
अब नींद से कहो हम से सुलह कर ले फ़राज़
वो दूर चला गया है जिसके लिये हम जागा करते थे
--अहमद फराज़
वो दूर चला गया है जिसके लिये हम जागा करते थे
--अहमद फराज़
ham to aagaaz-e-mohabbat me.n luT gaye FARAZ
हम तो आगाज़-ए-मोहब्बत में लुट गये फ़राज़
लोग कहते हैं अन्जाम बुरा होता है
--अहमद फराज़
लोग कहते हैं अन्जाम बुरा होता है
--अहमद फराज़
yahi thi maut jo bichhaR kar hamne dekhi hai FARAZ
यही थी मौत जो बिछड़ कर हमने देखी है फराज़
ज़िन्दगी तो वही थी, जो तेरी महफिल में गुज़र गयी
--अहमद फराज़
ज़िन्दगी तो वही थी, जो तेरी महफिल में गुज़र गयी
--अहमद फराज़
barf ho jayega lahoo jab mere dil ka
बर्फ हो जायेगा लहू जब मेरे दिल का
तब जा के वो मौजों को रवानी देगा
ये सोच कर नहीं बोया ख्वाबों का दर्खत
के कौन जंगल में लगे पेड़ को पानी देगा
--अज्ञात
तब जा के वो मौजों को रवानी देगा
ये सोच कर नहीं बोया ख्वाबों का दर्खत
के कौन जंगल में लगे पेड़ को पानी देगा
--अज्ञात
main to teri yaado ke charaago.n ko jalane me raha
मैं तो यादों के चरागों को जलाने में रहा
दिल की दहलीज़ को अश्कों से सजाने में रहा
मुड़ गई वो तो सिक्कों की खनक सुन कर
मैं ग़रीबी की लकीरों को मिटाने में रहा
--अज्ञात
दिल की दहलीज़ को अश्कों से सजाने में रहा
मुड़ गई वो तो सिक्कों की खनक सुन कर
मैं ग़रीबी की लकीरों को मिटाने में रहा
--अज्ञात
unse door rahne ka mashvara bhii likhaa hai
उनसे दूर रहने का मश्वरा भी लिखा है
साथ ही दोस्ती का वास्ता भी लिखा है
उसने ये भी लिखा है कि मेरे घर न आना
साथ ही घर का रास्ता भी लिखा है
--अज्ञात
साथ ही दोस्ती का वास्ता भी लिखा है
उसने ये भी लिखा है कि मेरे घर न आना
साथ ही घर का रास्ता भी लिखा है
--अज्ञात
ye jo hai hukm ki mere paas na aaye koii
ये जो है हुक्म कि मेरे पास न आये कोई
इस लिये रुठ रहे हैं के मनाये कोई
ताक में है निगाह-ए-शोख खुदा करे
सामने से मेरे बचता हुआ जाए कोई
हर अल्फाक-ओ-ज़मीं को बताया भी तो क्या
बात वो है जो तेरे दिल की बताये कोई
अपने दाग को मुंह भी न लगाया अफसोस
उस को रखता था कलेजे से लगाये कोई
हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे खत भेजा
आप की तरह से मेहमां बुलाये कोई
-- दाग देहलवी
इस लिये रुठ रहे हैं के मनाये कोई
ताक में है निगाह-ए-शोख खुदा करे
सामने से मेरे बचता हुआ जाए कोई
हर अल्फाक-ओ-ज़मीं को बताया भी तो क्या
बात वो है जो तेरे दिल की बताये कोई
अपने दाग को मुंह भी न लगाया अफसोस
उस को रखता था कलेजे से लगाये कोई
हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे खत भेजा
आप की तरह से मेहमां बुलाये कोई
-- दाग देहलवी
kitna pyaar diya hai use, par mila kuchh bhi nahin
कितना प्यार दिया है उसे पर मिला कुछ भी नहीं
इतनी गहरी चाहत का हासिल-ओ-हुसूल कुछ भी नहीं
वो हम से खफ़ा थे तो जान निकल गई थी हमारी
हम उनसे खफा हैं तो उनको मलाल कुछ भी नहीं
इस कदर दुख दिये हैं न जाने किस ख़ता पर
पर हम भी सब्र कर गये और किया सवाल कुछ भी नहीं
उसकी खुशी में हसने वाले खास हैं उसके लिये
दुख में उसके साथ, हमारी मिसाल कुछ भी नहीं
--अज्ञात
इतनी गहरी चाहत का हासिल-ओ-हुसूल कुछ भी नहीं
वो हम से खफ़ा थे तो जान निकल गई थी हमारी
हम उनसे खफा हैं तो उनको मलाल कुछ भी नहीं
इस कदर दुख दिये हैं न जाने किस ख़ता पर
पर हम भी सब्र कर गये और किया सवाल कुछ भी नहीं
उसकी खुशी में हसने वाले खास हैं उसके लिये
दुख में उसके साथ, हमारी मिसाल कुछ भी नहीं
--अज्ञात
roye hain bahut tab ja ke karaar mila hai
रोए है बहुत तब जा के करार मिला है
इस जहाँ में किसे भला सच्चा प्यार मिला है
गुज़र रहीं है जिन्दगी इम्तिहान के दौर से
एक खत्म हुआ तो दूसरा तैयार मिला है
मेरे दामन को खुशियों का नहीं मलाल
गम का खज़ाना जो इसको बेशुमार मिला है
वो कमनसीब है जिन्हे महबूब मिल गया
मैं खुशनसीब हू¡ मुझे इंतज़ार मिला है
गम नहीं मुझे दुश्मन हुआ ये ज़माना
जब दोस्त हाथों में लिये तलवार मिला है
सब कुछ खुदा ने तुम को भला कैसे दे दिया
मुझे तो उसके दर से सिर्फ इन्कार मिला है
--अज्ञात
इस जहाँ में किसे भला सच्चा प्यार मिला है
गुज़र रहीं है जिन्दगी इम्तिहान के दौर से
एक खत्म हुआ तो दूसरा तैयार मिला है
मेरे दामन को खुशियों का नहीं मलाल
गम का खज़ाना जो इसको बेशुमार मिला है
वो कमनसीब है जिन्हे महबूब मिल गया
मैं खुशनसीब हू¡ मुझे इंतज़ार मिला है
गम नहीं मुझे दुश्मन हुआ ये ज़माना
जब दोस्त हाथों में लिये तलवार मिला है
सब कुछ खुदा ने तुम को भला कैसे दे दिया
मुझे तो उसके दर से सिर्फ इन्कार मिला है
--अज्ञात
vo paani ki lehron pe kya likh raha tha
वो पानी की लहरों पे क्या लिख रहा था
खुदा जाने हर्फ-ए-दुआ लिख रहा था
लिखे थे जिसने वफा के मानी अधूरे
वो शक्स प्यार की इंतहां लिख रहा था
ज़रा उसकी आ¡ख से एक आ¡सू न निकला
वो जिस वक्त लव्ज-ए-सज़ा लिख रहा था
मोहब्बत में नफरत मिली थी उसे
वो हर एक शक्स को बेवफा लिख रहा था
इस कदर जमाने वालो ने सताया उसको
वो प्यार के जज़बे को गुनाह लिख रहा था
--अज्ञात
खुदा जाने हर्फ-ए-दुआ लिख रहा था
लिखे थे जिसने वफा के मानी अधूरे
वो शक्स प्यार की इंतहां लिख रहा था
ज़रा उसकी आ¡ख से एक आ¡सू न निकला
वो जिस वक्त लव्ज-ए-सज़ा लिख रहा था
मोहब्बत में नफरत मिली थी उसे
वो हर एक शक्स को बेवफा लिख रहा था
इस कदर जमाने वालो ने सताया उसको
वो प्यार के जज़बे को गुनाह लिख रहा था
--अज्ञात
rukhsat huaa to baat merii maan kar gaya
रुखसत हुआ तो बात मेरी मान कर गया
जो उसके पास था वो मुझे दान कर गया
बिछड़ा कुछ इस अदा से के रुत ही बदल गई
इक शक्स सारे शहर को वीरान कर गया
दिलचस्प वाक्या है के कल इक अज़ीज़ दोस्त
अपने मुफात पर मुझे कुरबान कर गया
कितनी सुधर गई है जुदाई में ज़िन्दगी
हा¡ वो ज़फा से मुझपे तो एहसान कर गया
खालिद मैं बात बात पे कहता था जिसको जान
वो शक्स आकारात मुझे बेजान कर गया
-- खालिद शरीफ
जो उसके पास था वो मुझे दान कर गया
बिछड़ा कुछ इस अदा से के रुत ही बदल गई
इक शक्स सारे शहर को वीरान कर गया
दिलचस्प वाक्या है के कल इक अज़ीज़ दोस्त
अपने मुफात पर मुझे कुरबान कर गया
कितनी सुधर गई है जुदाई में ज़िन्दगी
हा¡ वो ज़फा से मुझपे तो एहसान कर गया
खालिद मैं बात बात पे कहता था जिसको जान
वो शक्स आकारात मुझे बेजान कर गया
-- खालिद शरीफ
baato baato me bichhaDne ka ishaara kar ke
बातो बातों में बिछड़ने का इशारा कर के
ख़ुद भी रोया वो बहुत हम से किनारा कर के
सोचते रहते हैं तन्हाई में अंजाम-ऐ-सुलूक
फिर उसी जुर्म-ऐ-मोहब्बत को दोबारा कर के
जगमगा दी है उस के शहर की गलियाँ मैं ने
अपने हर आकाश को पलकों पे सितारा कर के
देख लेते हैं चलो हौसला अपने दिल का
और कुछ रोज़ उस के साथ गुज़ारा कर के
एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं
देखते हैं ये अज्जिय्यत भी गवारा कर के
--अज्ञात
ख़ुद भी रोया वो बहुत हम से किनारा कर के
सोचते रहते हैं तन्हाई में अंजाम-ऐ-सुलूक
फिर उसी जुर्म-ऐ-मोहब्बत को दोबारा कर के
जगमगा दी है उस के शहर की गलियाँ मैं ने
अपने हर आकाश को पलकों पे सितारा कर के
देख लेते हैं चलो हौसला अपने दिल का
और कुछ रोज़ उस के साथ गुज़ारा कर के
एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं
देखते हैं ये अज्जिय्यत भी गवारा कर के
--अज्ञात
mohabbat ka iraada ab badal jaana bhii mushkil hai
मोहब्बत का इरादा अब बदल जाना भी मुश्किल है,
तुझे खोना भी मुश्किल है, तुझे पाना भी मुश्किल है.
जरा सी बात पर आंखें भिगो के बैठ जाते हो,
तुझे अब अपने दिल का हाल बताना भी मुश्किल है,
उदासी तेरे चहरे पे गवारा भी नहीं लेकिन,
तेरी खातिर सितारे तोड़ कर लाना भी मुश्किल है,
यहाँ लोगों ने खुद पे परदे इतने डाल रखे हैं,
किस के दिल में क्या है नज़र आना भी मुश्किल है,
तुझे ज़िन्दगी भर याद रखने की कसम तो नहीं ली,
पर एक पल के लिए तुझे भुलाना भी मुश्किल है .....
--अज्ञात
तुझे खोना भी मुश्किल है, तुझे पाना भी मुश्किल है.
जरा सी बात पर आंखें भिगो के बैठ जाते हो,
तुझे अब अपने दिल का हाल बताना भी मुश्किल है,
उदासी तेरे चहरे पे गवारा भी नहीं लेकिन,
तेरी खातिर सितारे तोड़ कर लाना भी मुश्किल है,
यहाँ लोगों ने खुद पे परदे इतने डाल रखे हैं,
किस के दिल में क्या है नज़र आना भी मुश्किल है,
तुझे ज़िन्दगी भर याद रखने की कसम तो नहीं ली,
पर एक पल के लिए तुझे भुलाना भी मुश्किल है .....
--अज्ञात
sharaab chhoR di tumne, kamaal hai Thakur
शराब छोड़ दी तुमने ,कमाल है ठाकुर
मगर ये हाथ में क्या लाल लाल है ठाकुर
किसी गरीब दुपट्टे का कर्ज़ है इस पर ,
तुम्हारे पास जो रेशम कि शाल है ठाकुर
तुम्हारी लाल हवेली छुपा न पाएगी ,
हमे ख़बर है कहाँ कितना माल है ठाकुर
दुआ को नन्हे गुलाबों ने हाथ उठाये है,
बस अब यहाँ से तुम्हारा जवाल है ठाकुर
--राहत इंदोरी
मगर ये हाथ में क्या लाल लाल है ठाकुर
किसी गरीब दुपट्टे का कर्ज़ है इस पर ,
तुम्हारे पास जो रेशम कि शाल है ठाकुर
तुम्हारी लाल हवेली छुपा न पाएगी ,
हमे ख़बर है कहाँ कितना माल है ठाकुर
दुआ को नन्हे गुलाबों ने हाथ उठाये है,
बस अब यहाँ से तुम्हारा जवाल है ठाकुर
--राहत इंदोरी
kisii kii aankho.n me mohabbat ka sitaara hoga
किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा
कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा
काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा
किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा
देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा
और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा
कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा
ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा
जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल पर उम्मीद है कि
दूसरी ओर ज़िन्दगी का कोई और ही किनारा होगा
--अज्ञात
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा
कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा
काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा
किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा
देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा
और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा
कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा
ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा
जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल पर उम्मीद है कि
दूसरी ओर ज़िन्दगी का कोई और ही किनारा होगा
--अज्ञात
तेरे हो भी नही सकते
ना तुझे छोड़ सकते हैं, तेरे हो भी नही सकते
ये कैसी बे-बसी है आज हम रो भी नही सकते
ये कैसा दर्द है पल पल हमें तड़पाये रखता है
तुम्हारी याद आती है, तो फिर सो भी नही सकते
छुपा सकते है, और ना हम दिखा सकते हैं लोगो को
कुछ ऐसे दाग है दिल पर जो हम धो भी नही सकते
कहा था छोड़ देंगें ये नगर फिर रुक गये लेकिन
तुम्हे पा तो नही सकते, मगर खो भी नही सकते
हमारा एक होना भी मुमकिन नही रहा अब तो
जीये कैसे के तुम से दूर अब हो भी नही सकते
--अज्ञात
ये कैसी बे-बसी है आज हम रो भी नही सकते
ये कैसा दर्द है पल पल हमें तड़पाये रखता है
तुम्हारी याद आती है, तो फिर सो भी नही सकते
छुपा सकते है, और ना हम दिखा सकते हैं लोगो को
कुछ ऐसे दाग है दिल पर जो हम धो भी नही सकते
कहा था छोड़ देंगें ये नगर फिर रुक गये लेकिन
तुम्हे पा तो नही सकते, मगर खो भी नही सकते
हमारा एक होना भी मुमकिन नही रहा अब तो
जीये कैसे के तुम से दूर अब हो भी नही सकते
--अज्ञात
chand khwaabo ke aata karke ujaale mujhko
चन्द ख्वाबों के आता करके उजाले मुझको
कर दिया वक्त ने दुनिया के हवाले मुझको
जिनको सूरज भी मेरी चौखट से मिला करता था
आज वो खैरात में देता है उजाले मुझको
मैं हूँ कमज़ोर मगर इतना भी कमज़ोर नहीं
टूट जायें न कहीं तोड़ने वाले मुझको
और भी लोग मेरे साथ सफ़र करते हैं
कर न देना किसी मंज़िल के हवाले मुझको
ये मेरी कब्र मेरा आखिरी मसकन है नईम
किस में दम है, जो मेरे घर से निकाले मुझको
--नईम अख्तर
कर दिया वक्त ने दुनिया के हवाले मुझको
जिनको सूरज भी मेरी चौखट से मिला करता था
आज वो खैरात में देता है उजाले मुझको
मैं हूँ कमज़ोर मगर इतना भी कमज़ोर नहीं
टूट जायें न कहीं तोड़ने वाले मुझको
और भी लोग मेरे साथ सफ़र करते हैं
कर न देना किसी मंज़िल के हवाले मुझको
ये मेरी कब्र मेरा आखिरी मसकन है नईम
किस में दम है, जो मेरे घर से निकाले मुझको
--नईम अख्तर
nahin achha koi ishaara saaf keh do na
नहीं अच्छा कोई इशारा साफ़ कह दो ना
कहाँ तक साथ दोगे हमारा साफ कह दो ना
जुदाई की तरह दरिया भी अपने साथ चलता है
नहीं मिलता किनारे से किनारा साफ कह दो ना
बहाने अपनी मजबूरी के क्यूँ आ कर सुनाते हो
कसूर इस में नहीं कोई तुम्हारा साफ कह दो ना
हमें तन्हाई के ताने तुम मत दो गैर के सामने
के हम भी ढूँढ लें कोई सहारा साफ कह दो ना
हमारे हाथ की अक्सर लकीरें मिलती जुलती हैं
मगर मिलता नही अपना सितारा साफ कह दो ना
--अज्ञात
कहाँ तक साथ दोगे हमारा साफ कह दो ना
जुदाई की तरह दरिया भी अपने साथ चलता है
नहीं मिलता किनारे से किनारा साफ कह दो ना
बहाने अपनी मजबूरी के क्यूँ आ कर सुनाते हो
कसूर इस में नहीं कोई तुम्हारा साफ कह दो ना
हमें तन्हाई के ताने तुम मत दो गैर के सामने
के हम भी ढूँढ लें कोई सहारा साफ कह दो ना
हमारे हाथ की अक्सर लकीरें मिलती जुलती हैं
मगर मिलता नही अपना सितारा साफ कह दो ना
--अज्ञात
aankhon se meri is liye laalii nahin jaati
आंखों से मेरी इस लिये लाली नहीं जाती
यादों से कोई रात जो खाली नहीं जाती
अब उम्र न मौसम, न वो रास्ते के वो पत्ते
इस दिल की मगर खाम-ख्याली नहीं जाती
मांगे तू अगर जान भी तो हस कर तुझे दे दें
तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती
है कोई आ कर ये दर्द सम्भाले
हम से तो ये जागीर सम्भाली नहीं जाती
हम जान से जायेंगे तब ही कोई बात बनेगी
तुम से तो कोई राह अब निकाली नहीं जाती
--अज्ञात
यादों से कोई रात जो खाली नहीं जाती
अब उम्र न मौसम, न वो रास्ते के वो पत्ते
इस दिल की मगर खाम-ख्याली नहीं जाती
मांगे तू अगर जान भी तो हस कर तुझे दे दें
तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती
है कोई आ कर ये दर्द सम्भाले
हम से तो ये जागीर सम्भाली नहीं जाती
हम जान से जायेंगे तब ही कोई बात बनेगी
तुम से तो कोई राह अब निकाली नहीं जाती
--अज्ञात
agar ham se mohabbat thi hamaara maan to rakhte
अगर हम से मोहब्बत थी हमारा मान तो रखते
तुम अपने लौट आने का कोई इमकान तो रखते
सितारे टांग देते आसुओं से तेरे आंचल पर
तेरी रातें हैं रौशन इतना इत्मिनान तो रखते
मिसाल में कमी तो खैर क्या होती मगर फिर भी
मरस्सिम ज़िन्दगी की उल्झनें आसान तो रखते
हमारी याद का महताब तुम से गुफ्तगू करता
कुशादा अपने दिल का कोई रोशनदान तो रखते
तुम्हारी हर शक्सियत की तलाफी नामुमकिन थी
मगर अपने पराये की मगर पहचान तो रखते
तुम्हें मालूम हो जाता के मैं दिल सोखता क्यों हूँ
तुम अपने सामने एक दिन मेरे दीवान तो रखते
--अज्ञात
तुम अपने लौट आने का कोई इमकान तो रखते
सितारे टांग देते आसुओं से तेरे आंचल पर
तेरी रातें हैं रौशन इतना इत्मिनान तो रखते
मिसाल में कमी तो खैर क्या होती मगर फिर भी
मरस्सिम ज़िन्दगी की उल्झनें आसान तो रखते
हमारी याद का महताब तुम से गुफ्तगू करता
कुशादा अपने दिल का कोई रोशनदान तो रखते
तुम्हारी हर शक्सियत की तलाफी नामुमकिन थी
मगर अपने पराये की मगर पहचान तो रखते
तुम्हें मालूम हो जाता के मैं दिल सोखता क्यों हूँ
तुम अपने सामने एक दिन मेरे दीवान तो रखते
--अज्ञात
bahut der ke baad...
हम को जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद
ज़िन्दगी, हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद
यूँ तो मिलने को मिले लोग हज़ारों लेकिन
जिसको मिलना था, वही आया बहुत देर के बाद
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद
दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबान आप ने फरमाया बहुत देर के बाद
बात अशआर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद
--दोस्त मोहम्मद खान
ज़िन्दगी, हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद
यूँ तो मिलने को मिले लोग हज़ारों लेकिन
जिसको मिलना था, वही आया बहुत देर के बाद
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद
दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबान आप ने फरमाया बहुत देर के बाद
बात अशआर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद
--दोस्त मोहम्मद खान
ham ko to gardish-e-haalat pe rona aaya
हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
कैसे मर-मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम
रात भर तारों भरी रात पे रोना आया
कितने बेताब थे रिम झिम में पीयेंगें लेकिन
आई बरसात तो बरसात पे रोना आया
कौन रोता है किसी और के गम की खातिर
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
‘सैफ’ ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है
जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया
--सैफुद्दीन सैफ
Source : http://www.urdupoetry.com/saif08.html
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
कैसे मर-मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम
रात भर तारों भरी रात पे रोना आया
कितने बेताब थे रिम झिम में पीयेंगें लेकिन
आई बरसात तो बरसात पे रोना आया
कौन रोता है किसी और के गम की खातिर
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
‘सैफ’ ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है
जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया
--सैफुद्दीन सैफ
Source : http://www.urdupoetry.com/saif08.html
hamesha vo meri ummeed se badhkar nikalta hai
हमेशा वो मेरी उम्मीद से बढ़कर निकलता है
मेरे घर में अब अक्सर मेरा दफ्तर निकलता है
कहाँ ले जा के छोड़ेगा न जाने काफिला मुझको
जिसे रहबर समझता हूँ वही जोकर निकलता है
मेरे इन आंसुओं को देखकर हैरान क्यों हो तुम
मेरा ये दर्द का दरिया तो अब अक्सर निकलता है
तुझे मैं भूल जाने की करूं कोशिश भी तो कैसे
तेरा अहसास इस दिल को अभी छूकर निकलता है
अब उसकी बेबसी का मोल दुनिया क्या लगायेगी
वो अपने आंसुओं को घर से ही पीकर निकलता है
निकलता ही नहीं अद्भुत किसी पर भी मेरा गुस्सा
मगर ख़ुद पर निकलता है तो फ़िर जी भर निकलता है
--अरूण मित्तल अद्धुत
मेरे घर में अब अक्सर मेरा दफ्तर निकलता है
कहाँ ले जा के छोड़ेगा न जाने काफिला मुझको
जिसे रहबर समझता हूँ वही जोकर निकलता है
मेरे इन आंसुओं को देखकर हैरान क्यों हो तुम
मेरा ये दर्द का दरिया तो अब अक्सर निकलता है
तुझे मैं भूल जाने की करूं कोशिश भी तो कैसे
तेरा अहसास इस दिल को अभी छूकर निकलता है
अब उसकी बेबसी का मोल दुनिया क्या लगायेगी
वो अपने आंसुओं को घर से ही पीकर निकलता है
निकलता ही नहीं अद्भुत किसी पर भी मेरा गुस्सा
मगर ख़ुद पर निकलता है तो फ़िर जी भर निकलता है
--अरूण मित्तल अद्धुत
जदों मेरी अर्थी उठा के चलण गे
जदों मेरी अर्थी उठा के चलण गे
मेरे यार सब हुम हुमा के चलण गे
चलण गे मेरे नाल दुश्मन वी मेरे
एह वखरी है गल, मुस्कुरा के चलण गे
रहियाँ तां लीरां मेरे ज़िन्दगी भर
पर मरण बाद मैनू सजा के चलण गे
जिन्हां दे मैं पैरां च रुल्दा रेहा हां
ओह हथां ते मैनूँ उठा के चलण गे
मेरे यार मोड्डा वटाण बहाने
तेरे दर ते सजदा करा के चलण गे
बिठाया जिन्हाँ नूँ मैं पलकाँ दी छावें
ओह बल्दी होई अग्ग ते बिठा के चलण गे
जदों मेरी अर्थी उठा के चलण गे
मेरे यार सब हुम हुमा के चलण गे
--शिव कुमार बटालवी
मेरे यार सब हुम हुमा के चलण गे
चलण गे मेरे नाल दुश्मन वी मेरे
एह वखरी है गल, मुस्कुरा के चलण गे
रहियाँ तां लीरां मेरे ज़िन्दगी भर
पर मरण बाद मैनू सजा के चलण गे
जिन्हां दे मैं पैरां च रुल्दा रेहा हां
ओह हथां ते मैनूँ उठा के चलण गे
मेरे यार मोड्डा वटाण बहाने
तेरे दर ते सजदा करा के चलण गे
बिठाया जिन्हाँ नूँ मैं पलकाँ दी छावें
ओह बल्दी होई अग्ग ते बिठा के चलण गे
जदों मेरी अर्थी उठा के चलण गे
मेरे यार सब हुम हुमा के चलण गे
--शिव कुमार बटालवी
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