Wednesday, March 11, 2009

ham ko to gardish-e-haalat pe rona aaya

हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया

कैसे मर-मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम
रात भर तारों भरी रात पे रोना आया

कितने बेताब थे रिम झिम में पीयेंगें लेकिन
आई बरसात तो बरसात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और के गम की खातिर
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया

‘सैफ’ ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है
जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया

--सैफुद्दीन सैफ


Source : http://www.urdupoetry.com/saif08.html

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