Wednesday, March 11, 2009

baato baato me bichhaDne ka ishaara kar ke

बातो बातों में बिछड़ने का इशारा कर के
ख़ुद भी रोया वो बहुत हम से किनारा कर के

सोचते रहते हैं तन्हाई में अंजाम-ऐ-सुलूक
फिर उसी जुर्म-ऐ-मोहब्बत को दोबारा कर के

जगमगा दी है उस के शहर की गलियाँ मैं ने
अपने हर आकाश को पलकों पे सितारा कर के

देख लेते हैं चलो हौसला अपने दिल का
और कुछ रोज़ उस के साथ गुज़ारा कर के

एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं
देखते हैं ये अज्जिय्यत भी गवारा कर के

--अज्ञात

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