बातो बातों में बिछड़ने का इशारा कर के
ख़ुद भी रोया वो बहुत हम से किनारा कर के
सोचते रहते हैं तन्हाई में अंजाम-ऐ-सुलूक
फिर उसी जुर्म-ऐ-मोहब्बत को दोबारा कर के
जगमगा दी है उस के शहर की गलियाँ मैं ने
अपने हर आकाश को पलकों पे सितारा कर के
देख लेते हैं चलो हौसला अपने दिल का
और कुछ रोज़ उस के साथ गुज़ारा कर के
एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं
देखते हैं ये अज्जिय्यत भी गवारा कर के
--अज्ञात
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