जदों मेरी अर्थी उठा के चलण गे
मेरे यार सब हुम हुमा के चलण गे
चलण गे मेरे नाल दुश्मन वी मेरे
एह वखरी है गल, मुस्कुरा के चलण गे
रहियाँ तां लीरां मेरे ज़िन्दगी भर
पर मरण बाद मैनू सजा के चलण गे
जिन्हां दे मैं पैरां च रुल्दा रेहा हां
ओह हथां ते मैनूँ उठा के चलण गे
मेरे यार मोड्डा वटाण बहाने
तेरे दर ते सजदा करा के चलण गे
बिठाया जिन्हाँ नूँ मैं पलकाँ दी छावें
ओह बल्दी होई अग्ग ते बिठा के चलण गे
जदों मेरी अर्थी उठा के चलण गे
मेरे यार सब हुम हुमा के चलण गे
--शिव कुमार बटालवी
bhai is gajal ke liye ..me kya kahu ...bas yehi hi kahuga ..jai ho ...jai ho....bhai ji //aapto hame apna shagird bana lo..bas aahse...apna ans de ...
ReplyDelete@दीपक जी
ReplyDeleteअफ़सोस, कि ये ग़ज़ल जिनकी है वो लगभग तीस वर्ष पूर्व इस दुनिया-ए-फ़ानी को अलविदा कह चुके हैं। हॉं आप एकलव्य की भॉंति उनकी कहन को समक्ष में रखकर जरूर उनके शागिर्द बन सकते हैं।