जब कभी चाहे अंधेरों में उजाले उसने
कर दिया घर मेरा शोलों के हवाले उसने
उस पे खुल जाती मेरे शौक की शिद्दत सारी
देखे होते जो मेरे पांव के छाले उसने
जिसका हर ऐब ज़माने से छुपाया मैने
मेरे किस्से सर-ए-बाज़ार उछाले उसने
जब उसे मेरी मोहब्बत पर भरोसा ही ना था
क्यों दिये मेरी वफाओं के हवाले उसने
एक मेरा हाथ ही ना थामा उसने फराज़
वरना गिरते हुए तो कितने ही संभाले उसने
--अहमद फराज़
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