Wednesday, March 11, 2009

chand khwaabo ke aata karke ujaale mujhko

चन्द ख्वाबों के आता करके उजाले मुझको
कर दिया वक्त ने दुनिया के हवाले मुझको

जिनको सूरज भी मेरी चौखट से मिला करता था
आज वो खैरात में देता है उजाले मुझको

मैं हूँ कमज़ोर मगर इतना भी कमज़ोर नहीं
टूट जायें न कहीं तोड़ने वाले मुझको

और भी लोग मेरे साथ सफ़र करते हैं
कर न देना किसी मंज़िल के हवाले मुझको

ये मेरी कब्र मेरा आखिरी मसकन है नईम
किस में दम है, जो मेरे घर से निकाले मुझको

--नईम अख्तर

No comments:

Post a Comment