चन्द ख्वाबों के आता करके उजाले मुझको
कर दिया वक्त ने दुनिया के हवाले मुझको
जिनको सूरज भी मेरी चौखट से मिला करता था
आज वो खैरात में देता है उजाले मुझको
मैं हूँ कमज़ोर मगर इतना भी कमज़ोर नहीं
टूट जायें न कहीं तोड़ने वाले मुझको
और भी लोग मेरे साथ सफ़र करते हैं
कर न देना किसी मंज़िल के हवाले मुझको
ये मेरी कब्र मेरा आखिरी मसकन है नईम
किस में दम है, जो मेरे घर से निकाले मुझको
--नईम अख्तर
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