Monday, March 30, 2009

किसी की आंख से सपने चुरा कर कुछ नहीं मिलता

किसी की आंख से सपने चुरा कर कुछ नहीं मिलता
मंदिरों से चिरागों को बुझा कर कुछ नहीं मिलता

कोई एक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है
हज़ारों ख्वाब आंखों में सजा कर कुछ नहीं मिलता

सुकून उनको नहीं मिलता कभी परदेस भी जा कर
जिन्हें अपने वतन से दिल लगा कर कुछ नहीं मिलता

इसे कहना के पलकों पर ना टांगे ख्वाबों की झालर
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता

ये अच्छा है के आपस का भ्रम ना टूटने पाये
कभी कभी दोस्तों को आज़मा कर कुछ नहीं मिलता

अमल की सूखती रग में ज़रा सा खून शामिल कर
मेरे हमदम फकत बातें बना कर कुछ नहीं मिलता

मुझे अक्सर सितारों से ये आवाज़ आती है
किसी के हिज्र में नींदें गंवा कर कुछ नहीं मिलता

जिगर हो जायेगा छलनी ये आंखें खून रोयेंगी
वैसे बेफ़ैज़ लोगों से निभा कर कुछ नहीं मिलता

--अज्ञात


हिज्र=जुदाई
बेफ़ैज़=That Which Does Not Yield Anything, Unyielding

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