Saturday, March 28, 2009

चूमते हैं कभी लब को, कभी रुखसारों को तुम्हारे

चूमते हैं कभी लब को, कभी रुखसारों को तुम्हारे
तुमने अपनी ज़ुल्फों को बहुत सर पे चढ़ा रखा है
--अज्ञात

2 comments:

  1. bahut achchhe!
    ab mai samjha unke rukhsar pe til ka matlab,
    daulat e husn pe darwan bitha rakha hai

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