रुक गया आंख से बहता हुआ दरिया कैसे
ग़म का तूफान तो बहुत तेज़ था, ठहरा कैसे
हर घड़ी तेरे खयालों में घिरा रहता हूं
मिलना चाहूँ तो मिलूं खुद से तनहा कैसे
मुझ से जब तर्क-ए-तालुक का किया अहद तो फ़िर
मुड़ के मेरी तरफ आपने देखा कैसे
मुझ को खुद पर ही भरोसा नहीं होने पाता
लोग कर लेते हैं ग़ैरों पर भरोसा कैसे
दोस्तो शुक्र करो, मुझसे मुलाकात हुई
ये ना पूछो कि लुटी है मेरी दुनिया कैसे
देखी होटों की हंसी ज़ख्म ना देखे दिल के
आप दुनिया की तरह खा गये धोखा कैसे
और भी अहल-ए-खिरद अहल-ए-जुनून थे मौजूद
लुट गये हम ही तेरी बज़्म में तनहा कैसे
इस जनम में तो कभी मैं न इधर से गुज़रा
तेरी राहों में मेरे नक्श-ए-कफ-ए-पा कैसे
ज़ुल्फें चेहरे से हटा लो, कि हटा दूं मैं खुद
नूर के होते हुए इतना अंधेरा कैसे
--कृष्ण बिहारी नूर
tark-e-taalluk=sambandh todna
ahad=waada
ahal-e-khirad=intelligent
ahal-e-zunoon=deewaane
bazm=mahfil,sabhaa
naqsh-e-cuff-e-paa=pairon ke nishaan
रुक गया आंख से बहता हुआ दरिया कैसे
ReplyDeleteग़म का तूफान तो बहुत तेज़ था, ठहरा कैसे
हर घड़ी तेरे खयालों में घिरा रहता हूं
मिलना चाहूँ तो मिलूं खुद से तनहा कैसे
मुझ से जब तर्क-ए-तालुक का किया अहद तो फ़िर
मुड़ के मेरी तरफ आपने देखा कैसे
waah waah kya baat hai bahut sundar gajal
makta bhi bahut jaandaar laga
venus kesari
krishn bihari noor is great....
ReplyDeletei like his poetry....
thanks for ur beautiful collection...
shyam s. sarswat
http://www.orkut.co.in/Main#Profile?uid=15058847502136642323