ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
होश की बातें करूंगा, होश में आने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर, मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं, मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन
इक तेरे आने से पहले, इक तेरे जाने के बाद
सुर्ख रूह होता है इंसां, ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे पिस जाने के बाद
--मुमताज़ रशिद
This gazal has been sung by Pankaj Udaas.
Audio is available here
आखरी शेर शायद मस्त कलकत्तवी का है ?
ReplyDeleteNahi bhai, ye gazal mumtaz rashid ki hai..
ReplyDeleteAll these couplets are famous in the sub-continent. But few are aware that these are all ash'aar of Mast Kalkattvi, a unique Urdu poet of Kolkata.
ReplyDeleteमुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है
वही होता है जो मंजूर-ए-खुदा होता है
सुर्खरू होता है इंसान ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद
वो फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गया
इज्ज़त उसे मिली जो वतन से निकल गया
हकीक़त छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से
कि खुश्बू आ नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से
मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहे
कि दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार होता है
मस्त कलकत्तवी
http://www.bestghazals.net/search/label/Mast%20Kalkattvi
इसके शायर ज़नाब ज़फर गोरखपुरी साहब हैं| शायर का नाम एडिट कर लें
ReplyDeleteShayari
Deleteबेहतरीन
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