घर में झीने झीने रिश्ते मैने लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव
और इसी गज़ल का एक दूसरा शेर है,
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़सीम हुईं तब,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव
Source : http://subeerin.blogspot.com/2009/05/blog-post_27.html
ye gazal maine kareeb 5 saal pehle akhbaar me padhi thii
ReplyDeleteuske baad aaj isko padhkar bahut acha laga .....
aap bahut acha kaam kar rahe hain .....