Saturday, May 30, 2009

घर में झीने झीने रिश्ते मैने लाखों बार उधड़ते देखे

घर में झीने झीने रिश्ते मैने लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव

और इसी गज़ल का एक दूसरा शेर है,

बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़सीम हुईं तब,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्‍से आई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव


Source : http://subeerin.blogspot.com/2009/05/blog-post_27.html

1 comment:

  1. ye gazal maine kareeb 5 saal pehle akhbaar me padhi thii
    uske baad aaj isko padhkar bahut acha laga .....

    aap bahut acha kaam kar rahe hain .....

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