Saturday, May 9, 2009

चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं

चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते हैं

मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आंख का पानी बचा के रखते हैं

बस एक खुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा निभा के रखते हैं

हमें पसन्द नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रखते हैं बता के रखते हैं

कहीं खुलूस, कहीं दोस्ती, कहीं पे वफा
बड़े करीने से, घर को सजा के रखते हैं

आना पसन्द है "हसती" ये सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं

--हसती


आना=ego
खुलूस=Openness
करीने=सलीके (as far as I know)

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