Friday, May 15, 2009

उस को तो मेरी हर ग़ज़ल चाहिए

उस को तो मेरी हर ग़ज़ल चाहिए
जिसका मुझे बस एक पल चाहिए

मैं झूठ से भी गुज़र कर लूं मगर
हू-ब-हू तेरी ही इक नकल चाहिए

प्यार तुझ को भी है मुझसे मगर
मुहब्बत में मेरी बस पहल चाहिए

सारा माज़ी दिया तो क्या दे दिया
तेरे इस आज का एक पल चाहिए

तुम वो ना करो जो वो कर चुका
इश्क़ में तो हमेशा असल चाहिए

मेरी तस्वीरें क्यों उस के सामने
पेशानी पे नया एक बल चाहिए?

मन पहले जैसा तो नही रह गया
जाने क्या इसे आज कल चाहिए

मुश्किलें गडीं जीवन के खेत में
हल नही इनका इन्हे हल चाहिए

मन बहुत मैना हो चुका है मेरा
तेरे आँसू या की गंगा जल चाहिए

इधर की उधर की बहुत हो चुकी
मासूमजी अब इक ग़ज़ल चाहिए

--अनिल पराशर

3 comments: