चाँद को ओढ़ने के इंतज़ाम कीजिए
वसीयत बच्चों के अब नाम कीजिए
बिस्तर बिछा के कब्र राह तक रही
वक़्त आ गया है कि आराम कीजिए
आसमाँ से तमाम रकीब दोस्त एक
आप सभी से दुआ सलाम कीजिए
दुरुस्त था इश्क़ में बीच का सफ़र
ना चर्चा आगाज़ ओ अंजाम कीजिए
खारा पन बढ़े तो मय से ये लगें
किसी तरह अश्क़ भी जाम कीजिए
कुछ नही तो ये टूटी चूड़ियाँ सही
कुछ तो मासूम के भी नाम कीजिए
--अनिल पराशर
No comments:
Post a Comment