Tuesday, May 26, 2009

चाँद को ओढ़ने के इंतज़ाम कीजिए

चाँद को ओढ़ने के इंतज़ाम कीजिए
वसीयत बच्चों के अब नाम कीजिए

बिस्तर बिछा के कब्र राह तक रही
वक़्त आ गया है कि आराम कीजिए

आसमाँ से तमाम रकीब दोस्त एक
आप सभी से दुआ सलाम कीजिए

दुरुस्त था इश्क़ में बीच का सफ़र
ना चर्चा आगाज़ ओ अंजाम कीजिए

खारा पन बढ़े तो मय से ये लगें
किसी तरह अश्क़ भी जाम कीजिए

कुछ नही तो ये टूटी चूड़ियाँ सही
कुछ तो मासूम के भी नाम कीजिए

--अनिल पराशर

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