Sunday, May 3, 2009

दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले

दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले
हम को ये तोहफ़े तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले

खुद से मिल जाते तो चाहत क भ्रम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले

कैसे माने के उन्हें भूल गया तु ऐ कैफ
उन के खत आज हमें तेरे सरहाने से मिले

--कैफ भोपाली

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