आँख से अश्क भले ही न गिराया जाये !
पर मेरे गम को हँसी में न उड़ाया जाये !!
तू समंदर है मगर मैं तो नहीं हूँ दरिया !
किस तरह फ़िर तेरी देहलीज़ पै आया जाये !!
दो कदम आप चलें तो मैं चलूँ चार कदम !
मिल तो सकते हैं अगर ऐसे निभाया जाये !!
मुझे पसंद है खिलता हुआ ,टहनी पै गुलाब !
उसकी जिद है कि वो , जूड़े में सजाया जाये !!
या तो कहदे कि है जंजीर ,मुकद्दर मेरा !
या मुझे रक्स का अंदाज़ सिखाया जाये !!
मेरे ज़ज़बात ग़लत , मेरी हर इक बात ग़लत !
ये सही तो है मगर कितना जताया जाये !!
लाख अच्छा सही वो फूल मगर मुरदा है !
कब तलक उसको किताबों में दबाया जाये !!
रौशनी तुमको उधारी में भी मिल जायेगी !
पर मज़ा तब है कि , जब घर को जलाया जाये !!
--ललित मोहन (lmtri.02@gmail.com)
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