मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हक़ीक़त ज़िद किये बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
उठाती है जो ख़तरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समंदर में खज़ाना ढूंढ लेती है
ना चिड़िया की कमाई है ना कारोबार है कोई
वो केवल हौंसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
जुनून मंज़िल का राहों में बचता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है
--राजेन्द्र तिवारी
Source : http://akshar.wordpress.com/2007/05/24/meri-khamoshiyon-mein-bhi-fasana-dhoondh-leti-hai/
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