Saturday, May 30, 2009

घर में झीने झीने रिश्ते मैने लाखों बार उधड़ते देखे

घर में झीने झीने रिश्ते मैने लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव

और इसी गज़ल का एक दूसरा शेर है,

बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़सीम हुईं तब,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्‍से आई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव


Source : http://subeerin.blogspot.com/2009/05/blog-post_27.html

उन्हे नागवारा लगा मेरा यूं रोज़ आना जाना

उन्हे नागवारा लगा मेरा यूं रोज़ आना जाना
मेरे खुदा से मुझे ये उम्मीद न थी
--अज्ञात

हम ता-उम्र सीखते रहे जज़्बातों को ज़ाहिर करना

हम ता-उम्र सीखते रहे जज़्बातों को ज़ाहिर करना
इज़हार-ए-मोहब्बत के वक्त, ज़ुबां ने साथ न दिया
--अज्ञात

दिल नाउमीद तो नहीं नाकाम ही तो है

दिल नाउमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
--फैज़ अहमद फैज़

वो मुझे भूलने की फिक्र में हैं

वो मुझे भूलने की फिक्र में हैं
ये मेरी फतह है शिकस्त नहीं
--अज्ञात

तेरे जज़बातों को लव्ज़ों या लिखावट से न समझा कोई

तेरे जज़्बातों को लव्ज़ों या लिखावट से न समझा कोई
ये तेरी मोहब्बत की खता नहीं, उनका नसीब गर्दिश में है
--अज्ञात

लोगों की शिकायत है कि हम बोलते बहुत हैं

लोगों की शिकायत है कि हम बोलते बहुत हैं
खामोशी का मंज़र उनके सामने देखा करो
--अज्ञात

हमें ये गुमान रहा कि चाहा हमें दुनिया ने

हमें ये गुमान रहा कि चाहा हमें दुनिया ने
अज़ीज़ तो सबको थे मगर ज़रूरतों की तरह
--अज्ञात

Friday, May 29, 2009

खिज़ाओं में होता है इम्तिहान वफाओं का फराज़

खिज़ाओं में होता है इम्तिहान वफाओं का फराज़
जो हों शजर को प्यारे वो पत्ते नहीं गिरते
--अहमद फराज़

Tuesday, May 26, 2009

आँख से अश्क भले ही न गिराया जाये !

आँख से अश्क भले ही न गिराया जाये !
पर मेरे गम को हँसी में न उड़ाया जाये !!

तू समंदर है मगर मैं तो नहीं हूँ दरिया !
किस तरह फ़िर तेरी देहलीज़ पै आया जाये !!

दो कदम आप चलें तो मैं चलूँ चार कदम !
मिल तो सकते हैं अगर ऐसे निभाया जाये !!

मुझे पसंद है खिलता हुआ ,टहनी पै गुलाब !
उसकी जिद है कि वो , जूड़े में सजाया जाये !!

या तो कहदे कि है जंजीर ,मुकद्दर मेरा !
या मुझे रक्स का अंदाज़ सिखाया जाये !!

मेरे ज़ज़बात ग़लत , मेरी हर इक बात ग़लत !
ये सही तो है मगर कितना जताया जाये !!

लाख अच्छा सही वो फूल मगर मुरदा है !
कब तलक उसको किताबों में दबाया जाये !!

रौशनी तुमको उधारी में भी मिल जायेगी !
पर मज़ा तब है कि , जब घर को जलाया जाये !!

--ललित मोहन (lmtri.02@gmail.com)

वो जो गीत तुमने सुना नहीं,

वो जो गीत तुमने सुना नहीं, मेरी उम्र भर का रियाज़ था

मेरे दर्द की थी दास्तां, जिसे तुम हंसी में उड़ा गये

--अज्ञात

चाँद को ओढ़ने के इंतज़ाम कीजिए

चाँद को ओढ़ने के इंतज़ाम कीजिए
वसीयत बच्चों के अब नाम कीजिए

बिस्तर बिछा के कब्र राह तक रही
वक़्त आ गया है कि आराम कीजिए

आसमाँ से तमाम रकीब दोस्त एक
आप सभी से दुआ सलाम कीजिए

दुरुस्त था इश्क़ में बीच का सफ़र
ना चर्चा आगाज़ ओ अंजाम कीजिए

खारा पन बढ़े तो मय से ये लगें
किसी तरह अश्क़ भी जाम कीजिए

कुछ नही तो ये टूटी चूड़ियाँ सही
कुछ तो मासूम के भी नाम कीजिए

--अनिल पराशर

वापसी का उनका कोई सवाल ही नहीं

वापसी का उनका कोई सवाल ही नहीं
निकल गये हैं जो आंसुओं की तरह
--अज्ञात

वो मेरे आस पास था क्यूँ था

वो मेरे आस पास था क्यूँ था
और बेहद उदास था क्यूँ था

प्यास थी बेपनाह और मय थी
फ़िर भी खाली गिलास था क्यूँ था

ख्वाब ताबीर हो के आया था
और ये दिल उदास था क्यूँ था.

शोख रंगों का था जो दीवाना
आज सादा लिबास था क्यूँ था

वो उड़ाता था होश लोगों के
आज खुद बद-हवास था क्यूँ था

यूँ तो रिश्ता कोइ ना था लेकिन
मेरि खातिर वो खास था क्यूँ था

दीप्ति मिश्र

Monday, May 25, 2009

मेरी आंखों की ज़ुबान कोई समझता कैसे

मेरी आंखों की ज़ुबान कोई समझता कैसे
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी
--मुज़फ्फर वारसी

Sunday, May 24, 2009

मेरे वजूद में सिमटी है दास्तां तेरी,

मेरे वजूद में सिमटी है दास्तां तेरी,
न रख मुझको दराज में डायरी की तरह
--आचार्य सारथी रूमी

दिल ने चाहा बहुत पर मिला कुछ नहीं

दिल ने चाहा बहुत पर मिला कुछ नहीं
ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं

उसने रुस्वा सर-ए-आम मुझको किया
उसके बारे में मैंने कहा कुछ नहीं

इश्क़ ने हमको सौगात में क्या दिया
ज़ख्म ऐसे कि जिनकी दवा कुछ नहीं

पढ़ के देखी किताबें मोहब्बत की सब
आंसुओं के अलावा लिखा कुछ नहीं

हर ख़ुशी मिल भी जाये तो क्या फ़ायदा
ग़म अगर ना मिले तो मज़ा कुछ नहीं

ज़िन्दगी ये बता, तुझसे कैसे मिलें
जीने वालों को तेरा पता कुछ नहीं

--देवमनी पांडे

नये कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है

नये कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिये शहरों में अब पानी कौन रखता है
--अज्ञात

अच्छी सूरत वाले सारे, पत्थर दिल हों मुमकिन है

अच्छी सूरत वाले सारे, पत्थर दिल हों मुमकिन है
हम तो उस दिन राय देंगें, जिस दिन धोखा खायेंगें
--अज्ञात

Saturday, May 23, 2009

तू पास भी हो तो दिल बेकरार अपना है

तू पास भी हो तो दिल बेकरार अपना है
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है
--अज्ञात

बिन मांगे ही मिल जाती हैं ताबीरें किसी को फ़राज़

बिन मांगे ही मिल जाती हैं ताबीरें किसी को फ़राज़
कोई खाली हाथ रह जाता है हज़ारों दुआओं के बाद
--अहमद फ़राज़

तू है तो तेरा फिक्र क्या

तू है तो तेरा फिक्र क्या
तू नहीं तो तेरा ज़िक्र क्या
--अज्ञात

Friday, May 22, 2009

बीवी हो, बच्चे हो, प्यारा-सा घर भी हो


अमित अरुण साहू, 25 जून 1980 को जन्मे अमित के दुष्यंत कुमार प्रेरणास्रोत है व पंकज सुबीर ग़ज़ल-गुरु। एम. कॉम., एम. बी. ए. की पढ़ाई कर चुके अमित साहू बापू और विनोबा की कर्मभूमि वर्धा के बाशिंदे है। अकाउंट और अर्थशास्त्र के शिक्षक अमित ने हिन्द-युग्म पर ही सुबीर सर से गजल के प्रारंभिक पाठ पढ़े। इन्हें विशेष रूप से हरिवंश राय बच्चन, दुष्यंत कुमार, बशीर बद्र, निदा फाजली और प्रेमचंद को पढ़ना पसंद है।

आतंकवादियों के नाम

कभी किसी की बात का ऐसा असर भी हो
बदले ख़यालात और खुदा का डर भी हो

आतंकियों के दिल में जगे प्यार की अलख
बीवी हो, बच्चे हो, प्यारा-सा घर भी हो

खुदा के नाम पर लगा रखी है जेहाद
खुदा की पाकीजगी का जरा असर भी हो

निहत्थों और बेगुनाहों पे गोलियां चलाना
हिजड़ों की करामात है, उन्हें खबर भी हो

क्या सोचते हो के खुदा तुम्हें जन्नत देंगा
हैवान होकर सोचते हो के बशर भी हो

करते हो हमेशा ही 'गैर मुसलमाना' हरकत
फिर सोचते हो के दुआ में असर भी हो

मैं कहता हूँ, तुम मुस्लिम हो ही नहीं सकते
बिना धर्म के हो तुम, ये तुमको खबर भी हो

--अमित अरुण साहू


Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/05/biwi-ho-bachche-hon-pyara-sa-ghar-bhi.html

मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूंढ लेती है

मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है

हक़ीक़त ज़िद किये बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है

उठाती है जो ख़तरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समंदर में खज़ाना ढूंढ लेती है

ना चिड़िया की कमाई है ना कारोबार है कोई
वो केवल हौंसले से आबोदाना ढूंढ लेती है

जुनून मंज़िल का राहों में बचता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है

--राजेन्द्र तिवारी


Source : http://akshar.wordpress.com/2007/05/24/meri-khamoshiyon-mein-bhi-fasana-dhoondh-leti-hai/

Tuesday, May 19, 2009

दिल मे चुभ जायेंगे जब हम अपनी ज़ुबान खोलेंगे

दिल मे चुभ जायेंगे जब हम अपनी ज़ुबान खोलेंगे
अब हम भी इस शहर मे कान्टों की दुकान खोलेंगे
--अज्ञात

Monday, May 18, 2009

इस से बढ़ के और क्या हम पर सितम होगा फ़राज़

इस से बढ़ के और क्या हम पर सितम होगा फ़राज़
मश्वरा मांगा था उस ने फ़ैसला करने के बाद
--अहमद फ़राज़

Sunday, May 17, 2009

सुना होगा किसी से दर्द की एक हद भी होती है

सुना होगा किसी से दर्द की एक हद भी होती है,
मिलो हम से के हम अकसर ही उस के पार जाते हैं
--अज्ञात

चुपके से भेजा था एक गुलाब उसे मगर

चुपके से भेजा था एक गुलाब उसे मगर
ख़ूशबू ने शहर भर में तमाशा बना दिया
--अज्ञात

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीज़ें भी बँधवाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

तंहाई के झूले खूलेंगे हर बात पुरानी भुलेंगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

बेचैनी बड़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

--सईद राही


Source : http://www.urdupoetry.com/srahi08.html

तुझ से बिछड़ा तो पसन्द आ गई बेतरतीबी

तुझ से बिछड़ा तो पसन्द आ गई बेतरतीबी
इस से पहले मेरा कमरा भी गज़ल जैसा था
--मुनव्वर राणा

बेतरतीबी=disordered, unarranged

Friday, May 15, 2009

तुम से छूट कर भी, तुम्हे भुलाना आसान न था

तुम से छूट कर भी, तुम्हे भुलाना आसान न था
तुम्हीं को याद किया, तुमको भुलाने के लिये
--निदा फाज़ली

उस को तो मेरी हर ग़ज़ल चाहिए

उस को तो मेरी हर ग़ज़ल चाहिए
जिसका मुझे बस एक पल चाहिए

मैं झूठ से भी गुज़र कर लूं मगर
हू-ब-हू तेरी ही इक नकल चाहिए

प्यार तुझ को भी है मुझसे मगर
मुहब्बत में मेरी बस पहल चाहिए

सारा माज़ी दिया तो क्या दे दिया
तेरे इस आज का एक पल चाहिए

तुम वो ना करो जो वो कर चुका
इश्क़ में तो हमेशा असल चाहिए

मेरी तस्वीरें क्यों उस के सामने
पेशानी पे नया एक बल चाहिए?

मन पहले जैसा तो नही रह गया
जाने क्या इसे आज कल चाहिए

मुश्किलें गडीं जीवन के खेत में
हल नही इनका इन्हे हल चाहिए

मन बहुत मैना हो चुका है मेरा
तेरे आँसू या की गंगा जल चाहिए

इधर की उधर की बहुत हो चुकी
मासूमजी अब इक ग़ज़ल चाहिए

--अनिल पराशर

Wednesday, May 13, 2009

मेरी किताब-ए-मोहब्बत में उसका ज़िक्र नहीं

मेरी किताब-ए-मोहब्बत में उसका ज़िक्र नहीं
वो खुश खयाल ग़लत फहमियों में रहता है
--अज्ञात

ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ

ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ
ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ
ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ
ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ

ਕਿਂਜ ਲਗਦਾ ਮੇਰੇ ਬਿਨ ਰੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ

ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ ਤਾ ਕਦੇ ਕੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ

ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ
ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ

ਮੈ ਤਾ ਓਹਦੇ ਮਥੇ ਓਤੇ ਚਂਦ ਧਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਤੋਰ ਤੋਰ ਤਾਰੇ ਓਹਦੀ ਮਾਂਗ ਭਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਮੈ ਤਾ ਓਹਦੇ ਮਥੇ ਓਤੇ ਚਂਦ ਧਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਤੋਰ ਤੋਰ ਤਾਰੇ ਓਹਦੀ ਮਾਂਗ ਭਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ

ਫੇਰ ਦਿਤ੍ਤਾ ਕਿਸੇ ਇਹੋ ਜੇਹਾ ਗੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ


ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ ਤਾ ਕਦੇ ਕੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ

ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ
ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ

ਮੇਰੇ ਲਗ੍ਗੀ ਸਾਟ੍ਟ੍ ਵੇਖ ਤਾਹੀ ਰੋਹ ਪੈਂਦੀ ਸੀ
ਅਪਣੇ ਵੀ ਓਹਸੇ ਥਾਂ ਤੇ ਪਟ੍ਟੀ ਬਨ੍ਨ ਲੈਂਦੀ ਸੀ
ਮੇਰੇ ਲਗ੍ਗੀ ਸਾਟ੍ਟ੍ ਵੇਖ ਤਾਹੀ ਰੋਹ ਪੈਂਦੀ ਸੀ
ਅਪਣੇ ਵੀ ਓਹਸੇ ਥਾਂ ਤੇ ਪਟ੍ਟੀ ਬਨ੍ਨ ਲੈਂਦੀ ਸੀ

ਹੁਣ ਆ ਗਯਾ ਕੇ ਨਹੀ ਦੁਖ ਸੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ

ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ ਤਾ ਕਦੇ ਕੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ

ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ
ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ

--ਅਮਰਿਂਦਰ ਗਿਲ੍ਲ

मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें

मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें
कि माँ के चुल्लू को मेरा गिलास होना पड़े
--मुनव्वर राणा

Tuesday, May 12, 2009

उसने पुकारा तो लर्ज़ गई दिल की ज़मीन

उसने पुकारा तो लर्ज़ गई दिल की ज़मीन
पीछे मुड़कर देखा तो वो मुखातिब किसी और से था
--अज्ञात

हमेशा पास रहते हैं मगर पल भर नहीं मिलते

हमेशा पास रहते हैं मगर पल भर नहीं मिलते
बहुत चाहो जिन्हें दिल से, वही अक्सर नहीं मिलते

ज़रा ये तो बताओ तुम, हुनर कैसे दिखायें वो
यहाँ जिन बुत-तराशों को सही पत्थर नहीं मिलते

हमें ऐसा नहीं लगता यहां पर वार भी होगा
यहां के लोग हमसे तो कभी हंस कर नहीं मिलते

हमारी भी तमन्ना थी उड़ें आकाश में लेकिन
विवश हो कर यही सोचा, सभी को पर नहीं मिलते

गज़ब का खौफ छाया है, हुआ क्या हादसा यारो
घरों से आज कल बच्चे हमें बाहर नहीं मिलते

हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी
जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते

--नित्यानंद तुशार

Sunday, May 10, 2009

रोयेगा इस कदर वो मेरी लाश से लिपट कर फ़राज़

रोयेगा इस कदर वो मेरी लाश से लिपट कर फ़राज़
अगर इस बात का पता होता तो कब के मर गये होते
--अहमद फराज़

उसकी बेरुखियों ने छीन ली हर शरारत मेरी

उसकी बेरुखियों ने छीन ली हर शरारत मेरी
लोग समझते हैं कि मैं समझदार हो गया हूँ
--अज्ञात

Saturday, May 9, 2009

चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं

चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते हैं

मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आंख का पानी बचा के रखते हैं

बस एक खुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा निभा के रखते हैं

हमें पसन्द नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रखते हैं बता के रखते हैं

कहीं खुलूस, कहीं दोस्ती, कहीं पे वफा
बड़े करीने से, घर को सजा के रखते हैं

आना पसन्द है "हसती" ये सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं

--हसती


आना=ego
खुलूस=Openness
करीने=सलीके (as far as I know)

साकिया इक नज़र जाम से पहले पहले

साकिया इक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम स पहले पहले

खुश हुआ ऐ दिल के मुहब्बत तो निभा दी तूने
लोग उजड़ जाते हैं अन्जाम से पहले पहले

अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तेरे नाम से पहले पहले

सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले

--अहमद फराज़


रग़बत=Liking, Desire, Interest

Source : http://www.urdupoetry.com/faraz59.html

ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद

ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
होश की बातें करूंगा, होश में आने के बाद

दिल मेरा लेने की खातिर, मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं, मतलब निकल जाने के बाद

वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन
इक तेरे आने से पहले, इक तेरे जाने के बाद

सुर्ख रूह होता है इंसां, ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे पिस जाने के बाद

--मुमताज़ रशिद

This gazal has been sung by Pankaj Udaas.
Audio is available here

मैं तमाम कोशिशों के बावजूद भी हार गया

मैं तमाम कोशिशों के बावजूद भी हार गया
वो मिल गया उसको जिसने उसे मांगा ही नहीं
--अज्ञात

मेरी तबाहियोँ में तेरा हाथ है मगर

मेरी तबाहियोँ में तेरा हाथ है मगर
मैं सब से कह रहा हूँ, मुकद्दर की बात है
--अज्ञात

उसका मिलना ही मुकद्दर में नहीं था

उसका मिलना ही मुकद्दर में नहीं था
वरना क्या क्या नहीं खोया उसे पाने के लिये
--मोहसिन नक़वी

Friday, May 8, 2009

अब उसका ईमान बदल गया है

अब उसका ईमान बदल गया है, तो सब लाज़मी सा लगता है
ए काश के कुछ और बदलता, तो हैरान हो लेते
--अज्ञात

अब के साल उसे मेरा इन्तज़ार नहीं

अब के साल उसे मेरा इन्तज़ार नहीं
वो जो दिल बेकरार था अब की बार नहीं
उसने मुझे छोड़ दिया बस, बात इतनी सी थी
वो मेरा प्यार था, मैं उसका प्यार नहीं
--अज्ञात

अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता

अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता
मैं उसको राह से जब तक हटा नहीं देता

मुझे भी चाहिये कुछ वक्त खुद से मिलने को
मैं हर किसी को तो अपना पता नहीं देता

ये अपनी मर्ज़ी से अपनी जगह बनाते हैं
समंदरों को कोई रास्ता नहीं देता

ज़रूर है किसी गर्दन पे रौशनी का खून
कोई चिराग तो खुद को बुझा नहीं देता

मेरी निगाह की गुस्ताखियाँ समझता है
वो जाने क्यों मुझे फ़िर भी सज़ा नहीं देता

ये छोटे छोटे दिये साज़िशों में रहते हैं
किसी का घर, कोई सूरज जला नहीं देता

--वसीम बरेलवी

सहरा की तरह खुश्क थी आंखें

सहरा की तरह खुश्क थी आंखें
बारिश कहीं दिल में हो रही थी
--परवीन शाकिर

Tuesday, May 5, 2009

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले
--अलामा इक़बाल

tifl=Baby

Monday, May 4, 2009

गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो

गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
आंधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा
--कैफ भोपाली

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है

तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है

आग का क्या है, पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है

सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हंसता चेहरा एक बहाना लगता है

--कैफ भोपाली

चन्द लम्हे बचे हैं तेरे मेरे साथ के

चन्द लम्हे बचे हैं तेरे मेरे साथ के
मुमकिन है गुज़र जायें बिना मुलाकात के
--अज्ञात

Sunday, May 3, 2009

तेरे बख्शे हुए ग़मों की इनायत है के अब

मयार=Standards
तेरे बख्शे हुए ग़मों की इनायत है के अब
मुझे हर ग़म अपने मयार से कम लगता है
--अज्ञात

अगर मिल जाती मुझे दो दिन की बादशाही काश

अगर मिल जाती मुझे दो दिन की बादशाही काश
मेरे शहर में तेरी तस्वीर का सिक्का चलता
--अज्ञात

नामाबर तू ही बता तूने तो देखे होंगे

नामाबर तू ही बता तूने तो देखे होंगे
कैसे होते है वो खत जिनके जवाब आते हैं
--अज्ञात
नामाबर=Letter Carrier

अपने सिवा बताओ कभी कुछ मिला भी है तुम्हें

अपने सिवा बताओ कभी कुछ मिला भी है तुम्हें
हज़ार बार ली हैं तुमने मेरे दिल की तलाशियाँ
--अज्ञात

दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले

दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले
हम को ये तोहफ़े तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले

खुद से मिल जाते तो चाहत क भ्रम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले

कैसे माने के उन्हें भूल गया तु ऐ कैफ
उन के खत आज हमें तेरे सरहाने से मिले

--कैफ भोपाली

ये और बात है कि तामीर न होने पाई

ये और बात है कि तामीर न होने पाई
वरना हर दिल में इक ताजमहल होता है
--अज्ञात

न आया तुझे सलीका रस्म-ए-मोहब्बत निभाने का

न आया तुझे सलीका रस्म-ए-मोहब्बत निभाने का
न आया हमें भी हुनर तुझे भूल जाने का
--अज्ञात

मिट गये हैं सब ज़ख्म, बस निशाँ बाकी रह गया

मिट गये हैं सब ज़ख्म, बस निशाँ बाकी रह गया
सज़ा पूरी हो गयी, करना गुनाह बाकी रह गया
--अज्ञात

ज़माने के सवालों को तो मैं हस कर टाल दूँ फराज़

ज़माने के सवालों को तो मैं हस कर टाल दूँ फराज़
लेकिन नमी आंखो की कहती है, मुझे तुम याद आते हो
--अहमद फराज़

खुशी का दौर भी आयेगा बहुत जल्द फराज़

खुशी का दौर भी आयेगा बहुत जल्द फराज़
ये ग़म भी तो मिले हैं तमन्ना किये बगैर
--अहमद फराज़

निगाहें मिला कर किया दिल को ज़ख्मी

निगाहें मिला कर किया दिल को ज़ख्मी
अदायें दिखा कर सितम ढा रहे हो
वफाओं का क्या खूब बदला दिया है
तड़पता हुआ छोड़ कर जा रहे हो
--अताउल्लाह खान

Saturday, May 2, 2009

दूर रहने से मोहब्बत बढ़ती है फ़राज़

दूर रहने से मोहब्बत बढ़ती है फ़राज़
ये कह कर वो शक्स शहर छोड़ गया
--अहमद फराज़

उस शक्स से वाबस्ता खुश्फ़ेहमी का ये आलम है फ़राज़

उस शक्स से वाबस्ता खुश्फ़ेहमी का ये आलम है फ़राज़
मौत की हिचकी आई तो मै समझा के उसने याद किया
--अहमद फराज़

मोहब्बत के अन्दाज़ जुदा जुदा है फ़राज़

मोहब्बत के अन्दाज़ जुदा जुदा है फ़राज़
किसी ने टूट कर चाहा, तो कोई चाह कर टूट गया
--अहमद फराज़

तुम से तो खैर घड़ी भर की मुलाकात रही

तुम से तो खैर घड़ी भर की मुलाकात रही
लोग सदियों की रफाकत को भुला देते हैं
--अहमद फराज़

मैं उसका हूँ ये राज़ तो वो जान गया है फ़राज़

मैं उसका हूँ ये राज़ तो वो जान गया है फ़राज़
वो किसका है ये एहसास वो होने नहीं देता
--अहमद फराज़

लोग पढ़ लेते हैं मेरी आंखों में दिल की हालत फ़राज़

लोग पढ़ लेते हैं मेरी आंखों में दिल की हालत फ़राज़
मुझ से अब तेरे प्यार कि हिफ़ाज़त नहीं होती
--अहमद फराज़

फ़राज़ ग़म भी मिलते हैं नसीब वालों को

फ़राज़ ग़म भी मिलते हैं नसीब वालों को
हर एक के हाथ कहाँ ये खज़ाने लगते हैं
--अहमद फराज़

तुमको नाराज़ ही रहना है तो कुछ बात करो फ़राज़

तुमको नाराज़ ही रहना है तो कुछ बात करो फ़राज़
के चुप रहने से मोहब्बत का गुमान होता है
--अहमद फराज़

चाँद के मिजाज़ भी तेरे जैसे हैं फराज़

चाँद के मिजाज़ भी तेरे जैसे हैं फराज़
जब देखने की तमन्ना होती है, तो नज़र नहीं आता
--अहमद फराज़

Friday, May 1, 2009

भुला देंगे तुमको सनम धीरे धीरे

भुला देंगे तुमको सनम धीरे धीरे
मोहब्बत के सारे सितम धीरे धीरे
अभी नाज़ है टूटे दिल को वफा पे
के टूटेंगें सारे भरम धीरे धीरे
--अज्ञात



भीगती आंखों के ये मंज़र नहीं देखे जाते

भीगती आंखों के ये मंज़र नहीं देखे जाते
हम से इतने समंदर नहीं देखे जाते

उससे मिलना है तो सदा मिजाज़ी से मिलो
आइने भेस बदल कर नहीं देखे जाते

ज़िन्दा रहना है तो हालात से समझौता कैसा
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते

संगसारी मेरा मुकद्दर है मगर
तेरे हाथ में पत्थर नहीं देखे जाते

--अज्ञात

रिश्तों की कहकशां सर-ए-बाज़ार बेचकर

रिश्तों की कहकशां सर-ए-बाज़ार बेचकर
घर को बचा लिया दर-ओ-दीवार बेचकर

शौहरत की भूख हमको कहाँ ले के आ गयी
हम मोहतरम हुए भी तो किरदार बेचकर

वो शक्स सूरमा है, मगर बाप भी तो है
रोटी खरीद लाया है, तलवार बेचकर

जिसके कलाम ने मुद्दतों बोये हैं इनकलाब
अब पेट पालता है, वो अखबार बेचकर

अब चाहे जो सुलूक करे आपका ये शहर
हम गांव से तो आ गये घर बार बेच कर

--मुनव्वर राणा

तनहाईयाँ: आपका क्या कहना है?

तनहाईयाँ: आपका क्या कहना है?

तूने देखे हैं कभी झुलसते सहरा में दरख्त

तूने देखे हैं कभी झुलसते सहरा में दरख्त
ऐसे जलते हैं वफाओं को निभाने वाले
--अज्ञात

उन होंठों की इज़्ज़त का खयाल आता है वरना

उन होंठों की इज़्ज़त का खयाल आता है वरना
फूलों को तो हम सर-ए-आम चूम लिया करते हैं
--अज्ञात