घर में झीने झीने रिश्ते मैने लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव
और इसी गज़ल का एक दूसरा शेर है,
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़सीम हुईं तब,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा
--आलोक श्रीवास्तव
Source : http://subeerin.blogspot.com/2009/05/blog-post_27.html
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Saturday, May 30, 2009
उन्हे नागवारा लगा मेरा यूं रोज़ आना जाना
उन्हे नागवारा लगा मेरा यूं रोज़ आना जाना
मेरे खुदा से मुझे ये उम्मीद न थी
--अज्ञात
मेरे खुदा से मुझे ये उम्मीद न थी
--अज्ञात
हम ता-उम्र सीखते रहे जज़्बातों को ज़ाहिर करना
हम ता-उम्र सीखते रहे जज़्बातों को ज़ाहिर करना
इज़हार-ए-मोहब्बत के वक्त, ज़ुबां ने साथ न दिया
--अज्ञात
इज़हार-ए-मोहब्बत के वक्त, ज़ुबां ने साथ न दिया
--अज्ञात
दिल नाउमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
दिल नाउमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
--फैज़ अहमद फैज़
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
--फैज़ अहमद फैज़
तेरे जज़बातों को लव्ज़ों या लिखावट से न समझा कोई
तेरे जज़्बातों को लव्ज़ों या लिखावट से न समझा कोई
ये तेरी मोहब्बत की खता नहीं, उनका नसीब गर्दिश में है
--अज्ञात
ये तेरी मोहब्बत की खता नहीं, उनका नसीब गर्दिश में है
--अज्ञात
लोगों की शिकायत है कि हम बोलते बहुत हैं
लोगों की शिकायत है कि हम बोलते बहुत हैं
खामोशी का मंज़र उनके सामने देखा करो
--अज्ञात
खामोशी का मंज़र उनके सामने देखा करो
--अज्ञात
हमें ये गुमान रहा कि चाहा हमें दुनिया ने
हमें ये गुमान रहा कि चाहा हमें दुनिया ने
अज़ीज़ तो सबको थे मगर ज़रूरतों की तरह
--अज्ञात
अज़ीज़ तो सबको थे मगर ज़रूरतों की तरह
--अज्ञात
Friday, May 29, 2009
खिज़ाओं में होता है इम्तिहान वफाओं का फराज़
खिज़ाओं में होता है इम्तिहान वफाओं का फराज़
जो हों शजर को प्यारे वो पत्ते नहीं गिरते
--अहमद फराज़
जो हों शजर को प्यारे वो पत्ते नहीं गिरते
--अहमद फराज़
Tuesday, May 26, 2009
आँख से अश्क भले ही न गिराया जाये !
आँख से अश्क भले ही न गिराया जाये !
पर मेरे गम को हँसी में न उड़ाया जाये !!
तू समंदर है मगर मैं तो नहीं हूँ दरिया !
किस तरह फ़िर तेरी देहलीज़ पै आया जाये !!
दो कदम आप चलें तो मैं चलूँ चार कदम !
मिल तो सकते हैं अगर ऐसे निभाया जाये !!
मुझे पसंद है खिलता हुआ ,टहनी पै गुलाब !
उसकी जिद है कि वो , जूड़े में सजाया जाये !!
या तो कहदे कि है जंजीर ,मुकद्दर मेरा !
या मुझे रक्स का अंदाज़ सिखाया जाये !!
मेरे ज़ज़बात ग़लत , मेरी हर इक बात ग़लत !
ये सही तो है मगर कितना जताया जाये !!
लाख अच्छा सही वो फूल मगर मुरदा है !
कब तलक उसको किताबों में दबाया जाये !!
रौशनी तुमको उधारी में भी मिल जायेगी !
पर मज़ा तब है कि , जब घर को जलाया जाये !!
--ललित मोहन (lmtri.02@gmail.com)
पर मेरे गम को हँसी में न उड़ाया जाये !!
तू समंदर है मगर मैं तो नहीं हूँ दरिया !
किस तरह फ़िर तेरी देहलीज़ पै आया जाये !!
दो कदम आप चलें तो मैं चलूँ चार कदम !
मिल तो सकते हैं अगर ऐसे निभाया जाये !!
मुझे पसंद है खिलता हुआ ,टहनी पै गुलाब !
उसकी जिद है कि वो , जूड़े में सजाया जाये !!
या तो कहदे कि है जंजीर ,मुकद्दर मेरा !
या मुझे रक्स का अंदाज़ सिखाया जाये !!
मेरे ज़ज़बात ग़लत , मेरी हर इक बात ग़लत !
ये सही तो है मगर कितना जताया जाये !!
लाख अच्छा सही वो फूल मगर मुरदा है !
कब तलक उसको किताबों में दबाया जाये !!
रौशनी तुमको उधारी में भी मिल जायेगी !
पर मज़ा तब है कि , जब घर को जलाया जाये !!
--ललित मोहन (lmtri.02@gmail.com)
वो जो गीत तुमने सुना नहीं,
वो जो गीत तुमने सुना नहीं, मेरी उम्र भर का रियाज़ था
मेरे दर्द की थी दास्तां, जिसे तुम हंसी में उड़ा गये
--अज्ञात
मेरे दर्द की थी दास्तां, जिसे तुम हंसी में उड़ा गये
--अज्ञात
चाँद को ओढ़ने के इंतज़ाम कीजिए
चाँद को ओढ़ने के इंतज़ाम कीजिए
वसीयत बच्चों के अब नाम कीजिए
बिस्तर बिछा के कब्र राह तक रही
वक़्त आ गया है कि आराम कीजिए
आसमाँ से तमाम रकीब दोस्त एक
आप सभी से दुआ सलाम कीजिए
दुरुस्त था इश्क़ में बीच का सफ़र
ना चर्चा आगाज़ ओ अंजाम कीजिए
खारा पन बढ़े तो मय से ये लगें
किसी तरह अश्क़ भी जाम कीजिए
कुछ नही तो ये टूटी चूड़ियाँ सही
कुछ तो मासूम के भी नाम कीजिए
--अनिल पराशर
वसीयत बच्चों के अब नाम कीजिए
बिस्तर बिछा के कब्र राह तक रही
वक़्त आ गया है कि आराम कीजिए
आसमाँ से तमाम रकीब दोस्त एक
आप सभी से दुआ सलाम कीजिए
दुरुस्त था इश्क़ में बीच का सफ़र
ना चर्चा आगाज़ ओ अंजाम कीजिए
खारा पन बढ़े तो मय से ये लगें
किसी तरह अश्क़ भी जाम कीजिए
कुछ नही तो ये टूटी चूड़ियाँ सही
कुछ तो मासूम के भी नाम कीजिए
--अनिल पराशर
वो मेरे आस पास था क्यूँ था
वो मेरे आस पास था क्यूँ था
और बेहद उदास था क्यूँ था
प्यास थी बेपनाह और मय थी
फ़िर भी खाली गिलास था क्यूँ था
ख्वाब ताबीर हो के आया था
और ये दिल उदास था क्यूँ था.
शोख रंगों का था जो दीवाना
आज सादा लिबास था क्यूँ था
वो उड़ाता था होश लोगों के
आज खुद बद-हवास था क्यूँ था
यूँ तो रिश्ता कोइ ना था लेकिन
मेरि खातिर वो खास था क्यूँ था
दीप्ति मिश्र
और बेहद उदास था क्यूँ था
प्यास थी बेपनाह और मय थी
फ़िर भी खाली गिलास था क्यूँ था
ख्वाब ताबीर हो के आया था
और ये दिल उदास था क्यूँ था.
शोख रंगों का था जो दीवाना
आज सादा लिबास था क्यूँ था
वो उड़ाता था होश लोगों के
आज खुद बद-हवास था क्यूँ था
यूँ तो रिश्ता कोइ ना था लेकिन
मेरि खातिर वो खास था क्यूँ था
दीप्ति मिश्र
Monday, May 25, 2009
मेरी आंखों की ज़ुबान कोई समझता कैसे
मेरी आंखों की ज़ुबान कोई समझता कैसे
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी
--मुज़फ्फर वारसी
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी
--मुज़फ्फर वारसी
Sunday, May 24, 2009
मेरे वजूद में सिमटी है दास्तां तेरी,
मेरे वजूद में सिमटी है दास्तां तेरी,
न रख मुझको दराज में डायरी की तरह
--आचार्य सारथी रूमी
न रख मुझको दराज में डायरी की तरह
--आचार्य सारथी रूमी
दिल ने चाहा बहुत पर मिला कुछ नहीं
दिल ने चाहा बहुत पर मिला कुछ नहीं
ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं
उसने रुस्वा सर-ए-आम मुझको किया
उसके बारे में मैंने कहा कुछ नहीं
इश्क़ ने हमको सौगात में क्या दिया
ज़ख्म ऐसे कि जिनकी दवा कुछ नहीं
पढ़ के देखी किताबें मोहब्बत की सब
आंसुओं के अलावा लिखा कुछ नहीं
हर ख़ुशी मिल भी जाये तो क्या फ़ायदा
ग़म अगर ना मिले तो मज़ा कुछ नहीं
ज़िन्दगी ये बता, तुझसे कैसे मिलें
जीने वालों को तेरा पता कुछ नहीं
--देवमनी पांडे
ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं
उसने रुस्वा सर-ए-आम मुझको किया
उसके बारे में मैंने कहा कुछ नहीं
इश्क़ ने हमको सौगात में क्या दिया
ज़ख्म ऐसे कि जिनकी दवा कुछ नहीं
पढ़ के देखी किताबें मोहब्बत की सब
आंसुओं के अलावा लिखा कुछ नहीं
हर ख़ुशी मिल भी जाये तो क्या फ़ायदा
ग़म अगर ना मिले तो मज़ा कुछ नहीं
ज़िन्दगी ये बता, तुझसे कैसे मिलें
जीने वालों को तेरा पता कुछ नहीं
--देवमनी पांडे
नये कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
नये कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिये शहरों में अब पानी कौन रखता है
--अज्ञात
परिंदों के लिये शहरों में अब पानी कौन रखता है
--अज्ञात
अच्छी सूरत वाले सारे, पत्थर दिल हों मुमकिन है
अच्छी सूरत वाले सारे, पत्थर दिल हों मुमकिन है
हम तो उस दिन राय देंगें, जिस दिन धोखा खायेंगें
--अज्ञात
हम तो उस दिन राय देंगें, जिस दिन धोखा खायेंगें
--अज्ञात
Saturday, May 23, 2009
तू पास भी हो तो दिल बेकरार अपना है
तू पास भी हो तो दिल बेकरार अपना है
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है
--अज्ञात
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है
--अज्ञात
बिन मांगे ही मिल जाती हैं ताबीरें किसी को फ़राज़
बिन मांगे ही मिल जाती हैं ताबीरें किसी को फ़राज़
कोई खाली हाथ रह जाता है हज़ारों दुआओं के बाद
--अहमद फ़राज़
कोई खाली हाथ रह जाता है हज़ारों दुआओं के बाद
--अहमद फ़राज़
Friday, May 22, 2009
बीवी हो, बच्चे हो, प्यारा-सा घर भी हो
अमित अरुण साहू, 25 जून 1980 को जन्मे अमित के दुष्यंत कुमार प्रेरणास्रोत है व पंकज सुबीर ग़ज़ल-गुरु। एम. कॉम., एम. बी. ए. की पढ़ाई कर चुके अमित साहू बापू और विनोबा की कर्मभूमि वर्धा के बाशिंदे है। अकाउंट और अर्थशास्त्र के शिक्षक अमित ने हिन्द-युग्म पर ही सुबीर सर से गजल के प्रारंभिक पाठ पढ़े। इन्हें विशेष रूप से हरिवंश राय बच्चन, दुष्यंत कुमार, बशीर बद्र, निदा फाजली और प्रेमचंद को पढ़ना पसंद है।
आतंकवादियों के नाम
कभी किसी की बात का ऐसा असर भी हो
बदले ख़यालात और खुदा का डर भी हो
आतंकियों के दिल में जगे प्यार की अलख
बीवी हो, बच्चे हो, प्यारा-सा घर भी हो
खुदा के नाम पर लगा रखी है जेहाद
खुदा की पाकीजगी का जरा असर भी हो
निहत्थों और बेगुनाहों पे गोलियां चलाना
हिजड़ों की करामात है, उन्हें खबर भी हो
क्या सोचते हो के खुदा तुम्हें जन्नत देंगा
हैवान होकर सोचते हो के बशर भी हो
करते हो हमेशा ही 'गैर मुसलमाना' हरकत
फिर सोचते हो के दुआ में असर भी हो
मैं कहता हूँ, तुम मुस्लिम हो ही नहीं सकते
बिना धर्म के हो तुम, ये तुमको खबर भी हो
--अमित अरुण साहू
Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/05/biwi-ho-bachche-hon-pyara-sa-ghar-bhi.html
मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूंढ लेती है
मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हक़ीक़त ज़िद किये बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
उठाती है जो ख़तरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समंदर में खज़ाना ढूंढ लेती है
ना चिड़िया की कमाई है ना कारोबार है कोई
वो केवल हौंसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
जुनून मंज़िल का राहों में बचता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है
--राजेन्द्र तिवारी
Source : http://akshar.wordpress.com/2007/05/24/meri-khamoshiyon-mein-bhi-fasana-dhoondh-leti-hai/
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हक़ीक़त ज़िद किये बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
उठाती है जो ख़तरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समंदर में खज़ाना ढूंढ लेती है
ना चिड़िया की कमाई है ना कारोबार है कोई
वो केवल हौंसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
जुनून मंज़िल का राहों में बचता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है
--राजेन्द्र तिवारी
Source : http://akshar.wordpress.com/2007/05/24/meri-khamoshiyon-mein-bhi-fasana-dhoondh-leti-hai/
Tuesday, May 19, 2009
दिल मे चुभ जायेंगे जब हम अपनी ज़ुबान खोलेंगे
दिल मे चुभ जायेंगे जब हम अपनी ज़ुबान खोलेंगे
अब हम भी इस शहर मे कान्टों की दुकान खोलेंगे
--अज्ञात
अब हम भी इस शहर मे कान्टों की दुकान खोलेंगे
--अज्ञात
Monday, May 18, 2009
इस से बढ़ के और क्या हम पर सितम होगा फ़राज़
इस से बढ़ के और क्या हम पर सितम होगा फ़राज़
मश्वरा मांगा था उस ने फ़ैसला करने के बाद
--अहमद फ़राज़
मश्वरा मांगा था उस ने फ़ैसला करने के बाद
--अहमद फ़राज़
Sunday, May 17, 2009
सुना होगा किसी से दर्द की एक हद भी होती है
सुना होगा किसी से दर्द की एक हद भी होती है,
मिलो हम से के हम अकसर ही उस के पार जाते हैं
--अज्ञात
मिलो हम से के हम अकसर ही उस के पार जाते हैं
--अज्ञात
चुपके से भेजा था एक गुलाब उसे मगर
चुपके से भेजा था एक गुलाब उसे मगर
ख़ूशबू ने शहर भर में तमाशा बना दिया
--अज्ञात
ख़ूशबू ने शहर भर में तमाशा बना दिया
--अज्ञात
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीज़ें भी बँधवाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
तंहाई के झूले खूलेंगे हर बात पुरानी भुलेंगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
बेचैनी बड़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
--सईद राही
Source : http://www.urdupoetry.com/srahi08.html
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीज़ें भी बँधवाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
तंहाई के झूले खूलेंगे हर बात पुरानी भुलेंगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
बेचैनी बड़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
--सईद राही
Source : http://www.urdupoetry.com/srahi08.html
तुझ से बिछड़ा तो पसन्द आ गई बेतरतीबी
तुझ से बिछड़ा तो पसन्द आ गई बेतरतीबी
इस से पहले मेरा कमरा भी गज़ल जैसा था
--मुनव्वर राणा
बेतरतीबी=disordered, unarranged
इस से पहले मेरा कमरा भी गज़ल जैसा था
--मुनव्वर राणा
बेतरतीबी=disordered, unarranged
Friday, May 15, 2009
तुम से छूट कर भी, तुम्हे भुलाना आसान न था
तुम से छूट कर भी, तुम्हे भुलाना आसान न था
तुम्हीं को याद किया, तुमको भुलाने के लिये
--निदा फाज़ली
तुम्हीं को याद किया, तुमको भुलाने के लिये
--निदा फाज़ली
उस को तो मेरी हर ग़ज़ल चाहिए
उस को तो मेरी हर ग़ज़ल चाहिए
जिसका मुझे बस एक पल चाहिए
मैं झूठ से भी गुज़र कर लूं मगर
हू-ब-हू तेरी ही इक नकल चाहिए
प्यार तुझ को भी है मुझसे मगर
मुहब्बत में मेरी बस पहल चाहिए
सारा माज़ी दिया तो क्या दे दिया
तेरे इस आज का एक पल चाहिए
तुम वो ना करो जो वो कर चुका
इश्क़ में तो हमेशा असल चाहिए
मेरी तस्वीरें क्यों उस के सामने
पेशानी पे नया एक बल चाहिए?
मन पहले जैसा तो नही रह गया
जाने क्या इसे आज कल चाहिए
मुश्किलें गडीं जीवन के खेत में
हल नही इनका इन्हे हल चाहिए
मन बहुत मैना हो चुका है मेरा
तेरे आँसू या की गंगा जल चाहिए
इधर की उधर की बहुत हो चुकी
मासूमजी अब इक ग़ज़ल चाहिए
--अनिल पराशर
जिसका मुझे बस एक पल चाहिए
मैं झूठ से भी गुज़र कर लूं मगर
हू-ब-हू तेरी ही इक नकल चाहिए
प्यार तुझ को भी है मुझसे मगर
मुहब्बत में मेरी बस पहल चाहिए
सारा माज़ी दिया तो क्या दे दिया
तेरे इस आज का एक पल चाहिए
तुम वो ना करो जो वो कर चुका
इश्क़ में तो हमेशा असल चाहिए
मेरी तस्वीरें क्यों उस के सामने
पेशानी पे नया एक बल चाहिए?
मन पहले जैसा तो नही रह गया
जाने क्या इसे आज कल चाहिए
मुश्किलें गडीं जीवन के खेत में
हल नही इनका इन्हे हल चाहिए
मन बहुत मैना हो चुका है मेरा
तेरे आँसू या की गंगा जल चाहिए
इधर की उधर की बहुत हो चुकी
मासूमजी अब इक ग़ज़ल चाहिए
--अनिल पराशर
Wednesday, May 13, 2009
मेरी किताब-ए-मोहब्बत में उसका ज़िक्र नहीं
मेरी किताब-ए-मोहब्बत में उसका ज़िक्र नहीं
वो खुश खयाल ग़लत फहमियों में रहता है
--अज्ञात
वो खुश खयाल ग़लत फहमियों में रहता है
--अज्ञात
ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ
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ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ
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ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ
ਕਿਂਜ ਲਗਦਾ ਮੇਰੇ ਬਿਨ ਰੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ ਤਾ ਕਦੇ ਕੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
ਕੋਈ ਤਾ ਪੈਗਾਮ ਲਿਖੇ
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ਮੈ ਤਾ ਓਹਦੇ ਮਥੇ ਓਤੇ ਚਂਦ ਧਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਤੋਰ ਤੋਰ ਤਾਰੇ ਓਹਦੀ ਮਾਂਗ ਭਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਮੈ ਤਾ ਓਹਦੇ ਮਥੇ ਓਤੇ ਚਂਦ ਧਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਤੋਰ ਤੋਰ ਤਾਰੇ ਓਹਦੀ ਮਾਂਗ ਭਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਫੇਰ ਦਿਤ੍ਤਾ ਕਿਸੇ ਇਹੋ ਜੇਹਾ ਗੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ ਤਾ ਕਦੇ ਕੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
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ਅਪਣੇ ਵੀ ਓਹਸੇ ਥਾਂ ਤੇ ਪਟ੍ਟੀ ਬਨ੍ਨ ਲੈਂਦੀ ਸੀ
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ਹੁਣ ਆ ਗਯਾ ਕੇ ਨਹੀ ਦੁਖ ਸੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
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ਜੇ ਮਿਲੇ ਓਹ ਕੁੜੀ
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--ਅਮਰਿਂਦਰ ਗਿਲ੍ਲ
ਕਦੇ ਮੇਰੇ ਨਾਮ ਲਿਖੇ
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ਕਿਂਜ ਲਗਦਾ ਮੇਰੇ ਬਿਨ ਰੇਹਣਾ ਓਹਸਨੁ
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ਮੈ ਤਾ ਓਹਦੇ ਮਥੇ ਓਤੇ ਚਂਦ ਧਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
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ਮੈ ਤਾ ਓਹਦੇ ਮਥੇ ਓਤੇ ਚਂਦ ਧਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
ਤੋਰ ਤੋਰ ਤਾਰੇ ਓਹਦੀ ਮਾਂਗ ਭਰ ਦਿਂਦਾ ਸੀ
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--ਅਮਰਿਂਦਰ ਗਿਲ੍ਲ
मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें
मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें
कि माँ के चुल्लू को मेरा गिलास होना पड़े
--मुनव्वर राणा
कि माँ के चुल्लू को मेरा गिलास होना पड़े
--मुनव्वर राणा
Tuesday, May 12, 2009
उसने पुकारा तो लर्ज़ गई दिल की ज़मीन
उसने पुकारा तो लर्ज़ गई दिल की ज़मीन
पीछे मुड़कर देखा तो वो मुखातिब किसी और से था
--अज्ञात
पीछे मुड़कर देखा तो वो मुखातिब किसी और से था
--अज्ञात
हमेशा पास रहते हैं मगर पल भर नहीं मिलते
हमेशा पास रहते हैं मगर पल भर नहीं मिलते
बहुत चाहो जिन्हें दिल से, वही अक्सर नहीं मिलते
ज़रा ये तो बताओ तुम, हुनर कैसे दिखायें वो
यहाँ जिन बुत-तराशों को सही पत्थर नहीं मिलते
हमें ऐसा नहीं लगता यहां पर वार भी होगा
यहां के लोग हमसे तो कभी हंस कर नहीं मिलते
हमारी भी तमन्ना थी उड़ें आकाश में लेकिन
विवश हो कर यही सोचा, सभी को पर नहीं मिलते
गज़ब का खौफ छाया है, हुआ क्या हादसा यारो
घरों से आज कल बच्चे हमें बाहर नहीं मिलते
हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी
जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते
--नित्यानंद तुशार
बहुत चाहो जिन्हें दिल से, वही अक्सर नहीं मिलते
ज़रा ये तो बताओ तुम, हुनर कैसे दिखायें वो
यहाँ जिन बुत-तराशों को सही पत्थर नहीं मिलते
हमें ऐसा नहीं लगता यहां पर वार भी होगा
यहां के लोग हमसे तो कभी हंस कर नहीं मिलते
हमारी भी तमन्ना थी उड़ें आकाश में लेकिन
विवश हो कर यही सोचा, सभी को पर नहीं मिलते
गज़ब का खौफ छाया है, हुआ क्या हादसा यारो
घरों से आज कल बच्चे हमें बाहर नहीं मिलते
हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी
जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते
--नित्यानंद तुशार
Sunday, May 10, 2009
रोयेगा इस कदर वो मेरी लाश से लिपट कर फ़राज़
रोयेगा इस कदर वो मेरी लाश से लिपट कर फ़राज़
अगर इस बात का पता होता तो कब के मर गये होते
--अहमद फराज़
अगर इस बात का पता होता तो कब के मर गये होते
--अहमद फराज़
उसकी बेरुखियों ने छीन ली हर शरारत मेरी
उसकी बेरुखियों ने छीन ली हर शरारत मेरी
लोग समझते हैं कि मैं समझदार हो गया हूँ
--अज्ञात
लोग समझते हैं कि मैं समझदार हो गया हूँ
--अज्ञात
Saturday, May 9, 2009
चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं
चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते हैं
मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आंख का पानी बचा के रखते हैं
बस एक खुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा निभा के रखते हैं
हमें पसन्द नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रखते हैं बता के रखते हैं
कहीं खुलूस, कहीं दोस्ती, कहीं पे वफा
बड़े करीने से, घर को सजा के रखते हैं
आना पसन्द है "हसती" ये सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं
--हसती
आना=ego
खुलूस=Openness
करीने=सलीके (as far as I know)
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते हैं
मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आंख का पानी बचा के रखते हैं
बस एक खुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा निभा के रखते हैं
हमें पसन्द नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रखते हैं बता के रखते हैं
कहीं खुलूस, कहीं दोस्ती, कहीं पे वफा
बड़े करीने से, घर को सजा के रखते हैं
आना पसन्द है "हसती" ये सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं
--हसती
आना=ego
खुलूस=Openness
करीने=सलीके (as far as I know)
साकिया इक नज़र जाम से पहले पहले
साकिया इक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम स पहले पहले
खुश हुआ ऐ दिल के मुहब्बत तो निभा दी तूने
लोग उजड़ जाते हैं अन्जाम से पहले पहले
अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तेरे नाम से पहले पहले
सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले
--अहमद फराज़
रग़बत=Liking, Desire, Interest
Source : http://www.urdupoetry.com/faraz59.html
हम को जाना है कहीं शाम स पहले पहले
खुश हुआ ऐ दिल के मुहब्बत तो निभा दी तूने
लोग उजड़ जाते हैं अन्जाम से पहले पहले
अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तेरे नाम से पहले पहले
सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले
--अहमद फराज़
रग़बत=Liking, Desire, Interest
Source : http://www.urdupoetry.com/faraz59.html
ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
होश की बातें करूंगा, होश में आने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर, मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं, मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन
इक तेरे आने से पहले, इक तेरे जाने के बाद
सुर्ख रूह होता है इंसां, ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे पिस जाने के बाद
--मुमताज़ रशिद
This gazal has been sung by Pankaj Udaas.
Audio is available here
होश की बातें करूंगा, होश में आने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर, मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं, मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन
इक तेरे आने से पहले, इक तेरे जाने के बाद
सुर्ख रूह होता है इंसां, ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे पिस जाने के बाद
--मुमताज़ रशिद
This gazal has been sung by Pankaj Udaas.
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मैं तमाम कोशिशों के बावजूद भी हार गया
मैं तमाम कोशिशों के बावजूद भी हार गया
वो मिल गया उसको जिसने उसे मांगा ही नहीं
--अज्ञात
वो मिल गया उसको जिसने उसे मांगा ही नहीं
--अज्ञात
मेरी तबाहियोँ में तेरा हाथ है मगर
मेरी तबाहियोँ में तेरा हाथ है मगर
मैं सब से कह रहा हूँ, मुकद्दर की बात है
--अज्ञात
मैं सब से कह रहा हूँ, मुकद्दर की बात है
--अज्ञात
उसका मिलना ही मुकद्दर में नहीं था
उसका मिलना ही मुकद्दर में नहीं था
वरना क्या क्या नहीं खोया उसे पाने के लिये
--मोहसिन नक़वी
वरना क्या क्या नहीं खोया उसे पाने के लिये
--मोहसिन नक़वी
Friday, May 8, 2009
अब उसका ईमान बदल गया है
अब उसका ईमान बदल गया है, तो सब लाज़मी सा लगता है
ए काश के कुछ और बदलता, तो हैरान हो लेते
--अज्ञात
ए काश के कुछ और बदलता, तो हैरान हो लेते
--अज्ञात
अब के साल उसे मेरा इन्तज़ार नहीं
अब के साल उसे मेरा इन्तज़ार नहीं
वो जो दिल बेकरार था अब की बार नहीं
उसने मुझे छोड़ दिया बस, बात इतनी सी थी
वो मेरा प्यार था, मैं उसका प्यार नहीं
--अज्ञात
वो जो दिल बेकरार था अब की बार नहीं
उसने मुझे छोड़ दिया बस, बात इतनी सी थी
वो मेरा प्यार था, मैं उसका प्यार नहीं
--अज्ञात
अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता
अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता
मैं उसको राह से जब तक हटा नहीं देता
मुझे भी चाहिये कुछ वक्त खुद से मिलने को
मैं हर किसी को तो अपना पता नहीं देता
ये अपनी मर्ज़ी से अपनी जगह बनाते हैं
समंदरों को कोई रास्ता नहीं देता
ज़रूर है किसी गर्दन पे रौशनी का खून
कोई चिराग तो खुद को बुझा नहीं देता
मेरी निगाह की गुस्ताखियाँ समझता है
वो जाने क्यों मुझे फ़िर भी सज़ा नहीं देता
ये छोटे छोटे दिये साज़िशों में रहते हैं
किसी का घर, कोई सूरज जला नहीं देता
--वसीम बरेलवी
मैं उसको राह से जब तक हटा नहीं देता
मुझे भी चाहिये कुछ वक्त खुद से मिलने को
मैं हर किसी को तो अपना पता नहीं देता
ये अपनी मर्ज़ी से अपनी जगह बनाते हैं
समंदरों को कोई रास्ता नहीं देता
ज़रूर है किसी गर्दन पे रौशनी का खून
कोई चिराग तो खुद को बुझा नहीं देता
मेरी निगाह की गुस्ताखियाँ समझता है
वो जाने क्यों मुझे फ़िर भी सज़ा नहीं देता
ये छोटे छोटे दिये साज़िशों में रहते हैं
किसी का घर, कोई सूरज जला नहीं देता
--वसीम बरेलवी
Tuesday, May 5, 2009
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले
--अलामा इक़बाल
tifl=Baby
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले
--अलामा इक़बाल
tifl=Baby
Monday, May 4, 2009
गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
आंधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा
--कैफ भोपाली
आंधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा
--कैफ भोपाली
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है
तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है
आग का क्या है, पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है
सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हंसता चेहरा एक बहाना लगता है
--कैफ भोपाली
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है
तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है
आग का क्या है, पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है
सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हंसता चेहरा एक बहाना लगता है
--कैफ भोपाली
चन्द लम्हे बचे हैं तेरे मेरे साथ के
चन्द लम्हे बचे हैं तेरे मेरे साथ के
मुमकिन है गुज़र जायें बिना मुलाकात के
--अज्ञात
मुमकिन है गुज़र जायें बिना मुलाकात के
--अज्ञात
Sunday, May 3, 2009
तेरे बख्शे हुए ग़मों की इनायत है के अब
मयार=Standards
तेरे बख्शे हुए ग़मों की इनायत है के अब
मुझे हर ग़म अपने मयार से कम लगता है
--अज्ञात
तेरे बख्शे हुए ग़मों की इनायत है के अब
मुझे हर ग़म अपने मयार से कम लगता है
--अज्ञात
अगर मिल जाती मुझे दो दिन की बादशाही काश
अगर मिल जाती मुझे दो दिन की बादशाही काश
मेरे शहर में तेरी तस्वीर का सिक्का चलता
--अज्ञात
मेरे शहर में तेरी तस्वीर का सिक्का चलता
--अज्ञात
नामाबर तू ही बता तूने तो देखे होंगे
नामाबर तू ही बता तूने तो देखे होंगे
कैसे होते है वो खत जिनके जवाब आते हैं
--अज्ञात
नामाबर=Letter Carrier
कैसे होते है वो खत जिनके जवाब आते हैं
--अज्ञात
नामाबर=Letter Carrier
अपने सिवा बताओ कभी कुछ मिला भी है तुम्हें
अपने सिवा बताओ कभी कुछ मिला भी है तुम्हें
हज़ार बार ली हैं तुमने मेरे दिल की तलाशियाँ
--अज्ञात
हज़ार बार ली हैं तुमने मेरे दिल की तलाशियाँ
--अज्ञात
दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले
दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले
हम को ये तोहफ़े तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले
खुद से मिल जाते तो चाहत क भ्रम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले
कैसे माने के उन्हें भूल गया तु ऐ कैफ
उन के खत आज हमें तेरे सरहाने से मिले
--कैफ भोपाली
हम को ये तोहफ़े तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले
खुद से मिल जाते तो चाहत क भ्रम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले
कैसे माने के उन्हें भूल गया तु ऐ कैफ
उन के खत आज हमें तेरे सरहाने से मिले
--कैफ भोपाली
ये और बात है कि तामीर न होने पाई
ये और बात है कि तामीर न होने पाई
वरना हर दिल में इक ताजमहल होता है
--अज्ञात
वरना हर दिल में इक ताजमहल होता है
--अज्ञात
न आया तुझे सलीका रस्म-ए-मोहब्बत निभाने का
न आया तुझे सलीका रस्म-ए-मोहब्बत निभाने का
न आया हमें भी हुनर तुझे भूल जाने का
--अज्ञात
न आया हमें भी हुनर तुझे भूल जाने का
--अज्ञात
मिट गये हैं सब ज़ख्म, बस निशाँ बाकी रह गया
मिट गये हैं सब ज़ख्म, बस निशाँ बाकी रह गया
सज़ा पूरी हो गयी, करना गुनाह बाकी रह गया
--अज्ञात
सज़ा पूरी हो गयी, करना गुनाह बाकी रह गया
--अज्ञात
ज़माने के सवालों को तो मैं हस कर टाल दूँ फराज़
ज़माने के सवालों को तो मैं हस कर टाल दूँ फराज़
लेकिन नमी आंखो की कहती है, मुझे तुम याद आते हो
--अहमद फराज़
लेकिन नमी आंखो की कहती है, मुझे तुम याद आते हो
--अहमद फराज़
खुशी का दौर भी आयेगा बहुत जल्द फराज़
खुशी का दौर भी आयेगा बहुत जल्द फराज़
ये ग़म भी तो मिले हैं तमन्ना किये बगैर
--अहमद फराज़
ये ग़म भी तो मिले हैं तमन्ना किये बगैर
--अहमद फराज़
निगाहें मिला कर किया दिल को ज़ख्मी
निगाहें मिला कर किया दिल को ज़ख्मी
अदायें दिखा कर सितम ढा रहे हो
वफाओं का क्या खूब बदला दिया है
तड़पता हुआ छोड़ कर जा रहे हो
--अताउल्लाह खान
अदायें दिखा कर सितम ढा रहे हो
वफाओं का क्या खूब बदला दिया है
तड़पता हुआ छोड़ कर जा रहे हो
--अताउल्लाह खान
Saturday, May 2, 2009
दूर रहने से मोहब्बत बढ़ती है फ़राज़
दूर रहने से मोहब्बत बढ़ती है फ़राज़
ये कह कर वो शक्स शहर छोड़ गया
--अहमद फराज़
ये कह कर वो शक्स शहर छोड़ गया
--अहमद फराज़
उस शक्स से वाबस्ता खुश्फ़ेहमी का ये आलम है फ़राज़
उस शक्स से वाबस्ता खुश्फ़ेहमी का ये आलम है फ़राज़
मौत की हिचकी आई तो मै समझा के उसने याद किया
--अहमद फराज़
मौत की हिचकी आई तो मै समझा के उसने याद किया
--अहमद फराज़
मोहब्बत के अन्दाज़ जुदा जुदा है फ़राज़
मोहब्बत के अन्दाज़ जुदा जुदा है फ़राज़
किसी ने टूट कर चाहा, तो कोई चाह कर टूट गया
--अहमद फराज़
किसी ने टूट कर चाहा, तो कोई चाह कर टूट गया
--अहमद फराज़
तुम से तो खैर घड़ी भर की मुलाकात रही
तुम से तो खैर घड़ी भर की मुलाकात रही
लोग सदियों की रफाकत को भुला देते हैं
--अहमद फराज़
लोग सदियों की रफाकत को भुला देते हैं
--अहमद फराज़
मैं उसका हूँ ये राज़ तो वो जान गया है फ़राज़
मैं उसका हूँ ये राज़ तो वो जान गया है फ़राज़
वो किसका है ये एहसास वो होने नहीं देता
--अहमद फराज़
वो किसका है ये एहसास वो होने नहीं देता
--अहमद फराज़
लोग पढ़ लेते हैं मेरी आंखों में दिल की हालत फ़राज़
लोग पढ़ लेते हैं मेरी आंखों में दिल की हालत फ़राज़
मुझ से अब तेरे प्यार कि हिफ़ाज़त नहीं होती
--अहमद फराज़
मुझ से अब तेरे प्यार कि हिफ़ाज़त नहीं होती
--अहमद फराज़
फ़राज़ ग़म भी मिलते हैं नसीब वालों को
फ़राज़ ग़म भी मिलते हैं नसीब वालों को
हर एक के हाथ कहाँ ये खज़ाने लगते हैं
--अहमद फराज़
हर एक के हाथ कहाँ ये खज़ाने लगते हैं
--अहमद फराज़
तुमको नाराज़ ही रहना है तो कुछ बात करो फ़राज़
तुमको नाराज़ ही रहना है तो कुछ बात करो फ़राज़
के चुप रहने से मोहब्बत का गुमान होता है
--अहमद फराज़
के चुप रहने से मोहब्बत का गुमान होता है
--अहमद फराज़
चाँद के मिजाज़ भी तेरे जैसे हैं फराज़
चाँद के मिजाज़ भी तेरे जैसे हैं फराज़
जब देखने की तमन्ना होती है, तो नज़र नहीं आता
--अहमद फराज़
जब देखने की तमन्ना होती है, तो नज़र नहीं आता
--अहमद फराज़
Friday, May 1, 2009
भुला देंगे तुमको सनम धीरे धीरे
भुला देंगे तुमको सनम धीरे धीरे
मोहब्बत के सारे सितम धीरे धीरे
अभी नाज़ है टूटे दिल को वफा पे
के टूटेंगें सारे भरम धीरे धीरे
--अज्ञात
मोहब्बत के सारे सितम धीरे धीरे
अभी नाज़ है टूटे दिल को वफा पे
के टूटेंगें सारे भरम धीरे धीरे
--अज्ञात
भीगती आंखों के ये मंज़र नहीं देखे जाते
भीगती आंखों के ये मंज़र नहीं देखे जाते
हम से इतने समंदर नहीं देखे जाते
उससे मिलना है तो सदा मिजाज़ी से मिलो
आइने भेस बदल कर नहीं देखे जाते
ज़िन्दा रहना है तो हालात से समझौता कैसा
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते
संगसारी मेरा मुकद्दर है मगर
तेरे हाथ में पत्थर नहीं देखे जाते
--अज्ञात
हम से इतने समंदर नहीं देखे जाते
उससे मिलना है तो सदा मिजाज़ी से मिलो
आइने भेस बदल कर नहीं देखे जाते
ज़िन्दा रहना है तो हालात से समझौता कैसा
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते
संगसारी मेरा मुकद्दर है मगर
तेरे हाथ में पत्थर नहीं देखे जाते
--अज्ञात
रिश्तों की कहकशां सर-ए-बाज़ार बेचकर
रिश्तों की कहकशां सर-ए-बाज़ार बेचकर
घर को बचा लिया दर-ओ-दीवार बेचकर
शौहरत की भूख हमको कहाँ ले के आ गयी
हम मोहतरम हुए भी तो किरदार बेचकर
वो शक्स सूरमा है, मगर बाप भी तो है
रोटी खरीद लाया है, तलवार बेचकर
जिसके कलाम ने मुद्दतों बोये हैं इनकलाब
अब पेट पालता है, वो अखबार बेचकर
अब चाहे जो सुलूक करे आपका ये शहर
हम गांव से तो आ गये घर बार बेच कर
--मुनव्वर राणा
घर को बचा लिया दर-ओ-दीवार बेचकर
शौहरत की भूख हमको कहाँ ले के आ गयी
हम मोहतरम हुए भी तो किरदार बेचकर
वो शक्स सूरमा है, मगर बाप भी तो है
रोटी खरीद लाया है, तलवार बेचकर
जिसके कलाम ने मुद्दतों बोये हैं इनकलाब
अब पेट पालता है, वो अखबार बेचकर
अब चाहे जो सुलूक करे आपका ये शहर
हम गांव से तो आ गये घर बार बेच कर
--मुनव्वर राणा
तूने देखे हैं कभी झुलसते सहरा में दरख्त
तूने देखे हैं कभी झुलसते सहरा में दरख्त
ऐसे जलते हैं वफाओं को निभाने वाले
--अज्ञात
ऐसे जलते हैं वफाओं को निभाने वाले
--अज्ञात
उन होंठों की इज़्ज़त का खयाल आता है वरना
उन होंठों की इज़्ज़त का खयाल आता है वरना
फूलों को तो हम सर-ए-आम चूम लिया करते हैं
--अज्ञात
फूलों को तो हम सर-ए-आम चूम लिया करते हैं
--अज्ञात
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