Saturday, November 21, 2009

मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर

मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने काग़ज़ पर भी देखी हैं बना कर आँखें
--सागर

2 comments:

  1. There is a misconception that it is by FARAZ..

    Complete gazal is as follows:

    मुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
    फिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें

    में उन्हें देखता रहता हों जहाँ तक देखूं
    एक वो हैं के जो देखे ना उठा कर आँखें

    उस जगह आज भी बैठा हूँ अकेला यारो
    जिस जगह छोड़ गये थे वो मिला कर आँखें

    मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
    मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें

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  2. http://yogi-collection.blogspot.com/2010/03/blog-post_2928.html

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