तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े ना निबाहे जाते
वरना हम को भी तमन्ना थी के चाहे जाते
--शान उल हक़ हक़ी
Source : http://www.urdupoetry.com/haqi03.html
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Please let me know along with the source if possible.
Sunday, November 29, 2009
दर्द के फूल खिलते हैं, बिखर जाते हैं
दर्द के फूल खिलते हैं, बिखर जाते हैं
ज़ख्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
--जावेद अख्तर
ज़ख्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
--जावेद अख्तर
लोग तेरा जुर्म देखेंगे, सबब देखेगा कौन?
लोग तेरा जुर्म देखेंगे, सबब देखेगा कौन?
यहाँ सब प्यासे हैं, तेरे खुश्क लब देखेगा कौन?
--अज्ञात
यहाँ सब प्यासे हैं, तेरे खुश्क लब देखेगा कौन?
--अज्ञात
कोई बात नहीं
यही वफा का सिला है, तो कोई बात नहीं
ये दर्द तुम से मिला है तो कोई बात नहीं
यही बहुत है तुम देखते हो साहिल से
हम अगर डूब भी रहे हैं तो कोई बात नहीं
रखा छुपा के तुमको आशियाने दिल में
वो अगर छोड़ दिया है तुमने तो कोई बात नहीं
किसकी मजाल कहे कोई मुझको दीवाना
अगर ये तुमने कहा है, तो कोई बात नहीं
--अज्ञात
ये दर्द तुम से मिला है तो कोई बात नहीं
यही बहुत है तुम देखते हो साहिल से
हम अगर डूब भी रहे हैं तो कोई बात नहीं
रखा छुपा के तुमको आशियाने दिल में
वो अगर छोड़ दिया है तुमने तो कोई बात नहीं
किसकी मजाल कहे कोई मुझको दीवाना
अगर ये तुमने कहा है, तो कोई बात नहीं
--अज्ञात
तोड़ना टूटे हुये दिल का बुरा होता है
तोड़ना टूटे हुये दिल का बुरा होता है
जिस का कोई नहीं उस का तो ख़ुदा होता है
माँग कर तुम से ख़ुशी लूँ मुझे मंज़ूर नहीं
किस का माँगी हुई दौलत सेभला होता है
लोग नाहक किसी मजबूर को कहते हैं बुरा
आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है
क्यों मुनीर अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
जितना तक़दीर में लिखा है अदा होता है
--मुनीर नियाज़ी
Source : http://www.urdupoetry.com/mniazi12.html
जिस का कोई नहीं उस का तो ख़ुदा होता है
माँग कर तुम से ख़ुशी लूँ मुझे मंज़ूर नहीं
किस का माँगी हुई दौलत सेभला होता है
लोग नाहक किसी मजबूर को कहते हैं बुरा
आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है
क्यों मुनीर अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
जितना तक़दीर में लिखा है अदा होता है
--मुनीर नियाज़ी
Source : http://www.urdupoetry.com/mniazi12.html
Saturday, November 28, 2009
मैं टूट कर गिरा जहाँ सब वहां देखते हैं
मैं टूट कर गिरा जहाँ सब वहां देखते हैं
किस बुलन्दी से गिरा ये कोई नहीं सोचता
--अज्ञात
किस बुलन्दी से गिरा ये कोई नहीं सोचता
--अज्ञात
बहुत कच्चे थे तेरी दुनिया के रिश्ते ए दोस्त
बहुत कच्चे थे तेरी दुनिया के रिश्ते ए दोस्त
और हमसे अक्सर आज़माइश की भूल हो गयी
--अज्ञात
और हमसे अक्सर आज़माइश की भूल हो गयी
--अज्ञात
रखे हैं खुदा ने दो रास्ते मुझे आज़माने के लिये
रखे हैं खुदा ने दो रास्ते मुझे आज़माने के लिये
वो छोड़ दे मुझे, या मैं छोड़ दूं उसे ज़माने के लिये
के मांग लूँ उसे रब से उसे भूल जाने की दुआ
हाथ उठते नहीं दुआ में उसे भूल जाने के लिये
नहीं की मैने ज़माने में कोई भी नेकी
पर पढ़ी है चुप चाप कुछ नमाज़ें उसे पाने के लिये
नहीं है तो ना सही वो मेरी किस्मत में
पर एक मौका तो दे, उसे ये आंसू दिखाने के लिये
--अज्ञात
वो छोड़ दे मुझे, या मैं छोड़ दूं उसे ज़माने के लिये
के मांग लूँ उसे रब से उसे भूल जाने की दुआ
हाथ उठते नहीं दुआ में उसे भूल जाने के लिये
नहीं की मैने ज़माने में कोई भी नेकी
पर पढ़ी है चुप चाप कुछ नमाज़ें उसे पाने के लिये
नहीं है तो ना सही वो मेरी किस्मत में
पर एक मौका तो दे, उसे ये आंसू दिखाने के लिये
--अज्ञात
Thursday, November 26, 2009
बस एक सादा सा कागज़, ना कोई लव्ज़ ना कोई फूल
बस एक सादा सा कागज़, ना कोई लव्ज़ ना कोई फूल
अज़ब ज़ुबान में इस बार खत लिखा उसने
--राजेश रेड्डी
अज़ब ज़ुबान में इस बार खत लिखा उसने
--राजेश रेड्डी
Monday, November 23, 2009
आहट न कोई कर, के देख लूं जी भर के मैं तुझे
आहट न कोई कर, के देख लूं जी भर के मैं तुझे
ऐसा ना हो के टूट जाये, ये दीवार ख्वाब की
--अज्ञात
ऐसा ना हो के टूट जाये, ये दीवार ख्वाब की
--अज्ञात
Sunday, November 22, 2009
कुछ इस अदा से आज वो पहलू नशीं रहे
कुछ इस अदा से आज वो पहलू नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
--अज्ञात
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
--अज्ञात
Saturday, November 21, 2009
मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने काग़ज़ पर भी देखी हैं बना कर आँखें
--सागर
मैंने काग़ज़ पर भी देखी हैं बना कर आँखें
--सागर
अकल वालों के मुकद्दर में कहाँ ज़ूक-ए-जुनून है फ़राज़
अकल वालों के मुकद्दर में कहाँ ज़ूक-ए-जुनून है फ़राज़
इश्क़ वाले हैं जो हर चीज़ लुटा देते हैं
--अहमद फराज़
इश्क़ वाले हैं जो हर चीज़ लुटा देते हैं
--अहमद फराज़
अपनी नाकामी का इक यह भी सबब है फ़राज़
अपनी नाकामी का इक यह भी सबब है फ़राज़
चीज़ जो मांगते है सबसे जुदा मांगते हैं
--अहमद फराज़
चीज़ जो मांगते है सबसे जुदा मांगते हैं
--अहमद फराज़
तड़पूंगा उम्र भर दिल-ए-महरूम के लिये
तड़पूंगा उम्र भर दिल-ए-महरूम के लिये
कम्बख्त नामुराद लड़खपन का यार था
--अज्ञात
कम्बख्त नामुराद लड़खपन का यार था
--अज्ञात
Friday, November 20, 2009
तेरे किरदार से है तेरा परेशान होना
तेरे किरदार से है तेरा परेशान होना
वरना मुश्किल नहीं, मुश्किल तेरी आसान होना
--अज्ञात
वरना मुश्किल नहीं, मुश्किल तेरी आसान होना
--अज्ञात
Thursday, November 19, 2009
बहुत से नामों का हजूम सही दिल के आस पास
बहुत से नामों का हजूम सही दिल के आस पास
दिल फिर भी एक ही नाम पे धड़कता ज़रूर है
--अज्ञात
दिल फिर भी एक ही नाम पे धड़कता ज़रूर है
--अज्ञात
वो कितना मेहरबान था के हज़ारों ग़म दे गया
वो कितना मेहरबान था के हज़ारों ग़म दे गया
हम कितने खुद गर्ज़ कुछ न दे सके प्यार के सिवा
--अज्ञात
हम कितने खुद गर्ज़ कुछ न दे सके प्यार के सिवा
--अज्ञात
देखा तुझे, सोचा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे
देखा तुझे, सोचा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफा, तेरी खता कुछ भी नहीं
--बशीर बद्र
Source : http://www.urdupoetry.com/singers/JC059.html
Complete gazal : http://yogi-collection.blogspot.com/2010/01/blog-post_9512.html
मेरी ख़ता मेरी वफा, तेरी खता कुछ भी नहीं
--बशीर बद्र
Source : http://www.urdupoetry.com/singers/JC059.html
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Tuesday, November 17, 2009
ठहरी ठहरी सी तबीयत में रवानी आई
ठहरी-ठहरी सी तबीयत में रवानी आई,
आज फिर याद मुहब्बत की कहानी आई।
आज फिर नींद को आंखों से बिछड़ते देखा,
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई।
मुद्दतों बाद पशेमां हुआ दरिया हमसे,
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई।
मुद्दतों बाद चला उनपे हमारा जादू
मुद्दतों बाद हमें बात बनानी आई।
--अज्ञात
आज फिर याद मुहब्बत की कहानी आई।
आज फिर नींद को आंखों से बिछड़ते देखा,
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई।
मुद्दतों बाद पशेमां हुआ दरिया हमसे,
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई।
मुद्दतों बाद चला उनपे हमारा जादू
मुद्दतों बाद हमें बात बनानी आई।
--अज्ञात
Tuesday, November 10, 2009
वो कह के चले इतनी मुलाकात बहुत है
वो कह के चले इतनी मुलाकात बहुत है
मैने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत है
ये बहते हुये आंसू रुक जाये तो जाना
ऐसे में कहाँ जाओगे बरसात बहुत है
--अज्ञात
मैने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत है
ये बहते हुये आंसू रुक जाये तो जाना
ऐसे में कहाँ जाओगे बरसात बहुत है
--अज्ञात
ਇਕ ਨਿੱਕੀ ਜਿਹੀ ਲਕੀਰ ਰੱਬਾ, ਕ੍ਯੋਂ ਬਦਲ ਦੇਵੇ ਤਕਦੀਰ ਰੱਬਾ.
ਇਕ ਨਿੱਕੀ ਜਿਹੀ ਲਕੀਰ ਰੱਬਾ, ਕ੍ਯੋਂ ਬਦਲ ਦੇਵੇ ਤਕਦੀਰ ਰੱਬਾ
ਹੁਣ ਆਪ ਲਕੀਰਾਂ ਖਿਚ ਦੇਵਾਂ ਏਡਾ ਮੈਂ ਕੋਈ ਫਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਜੇ ਓ ਮੇਰੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ, ਮੈਨੂ ਓਹਦੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਯਾ ਕ੍ਯੋਂ.
ਦਿਲ ਵਿਚ ਭਰ ਕੇ ਪ੍ਯਾਰ ਓਹਦਾ, ਦਿਲ ਓਸੇ ਤੋਂ ਤੁਡਵਾਯਾ ਕ੍ਯੋਂ.
ਟੁੱਟੇ ਹੋਏ ਦਿਲ ਬਡੇ ਦੁਖਦੇ ਨੇ, ਤੈਨੂ ਤਾਂ ਹੁੰਦੀ ਪੀੜ ਨਹੀਂ
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਦੇ ਵਾਲ ਕਦੀ ਕੋਈ ਨਾ ਵੇਖੇ, ਮੇਰੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਏਹੋ ਰੇਹੰਦੀ ਹੈ.
ਮੈਂ ਓਹਦੇ ਕਰਕੇ ਲੜਦਾ ਹਾਂ, ਓ ਮੈਨੂ ਗੁੰਡਾ ਕਿਹੰਦੀ ਹੈ.
ਸਾਰਾ ਕਾਲੇਜ ਵੈਰੀ ਬਣ ਗਯਾ ਹੈ, ਐਥੇ ਕੋਈ ਮੇਰਾ ਵੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਹਾਸਿਲ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਵਿਚ, ਮੈਂ ਸਾਰਾ ਕੁਝ ਗਵਾ ਬੈਠਾ.
ਉਹਦੀ ਨਾ ਤੋਂ ਆਕੇ ਤੰਗ ਕਾਲਾ, ਨਾਸ਼ੇਯਾਁ ਦੀ ਆਦਤ ਪਾ ਬੈਠਾ.
ਓਹਦੇ ਪਿਛੇ ਰੋਲ ਲਵਾਂ ਜਿੰਦਗੀ, ਏਡੀ ਵੀ ਓ ਕੋਈ ਹੀਰ ਨਹੀਂ
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ
--ਕੁਲਵੀਰ ਸਿਂਘ ( ਕਾਲਾ )
Read in Hindi
ਹੁਣ ਆਪ ਲਕੀਰਾਂ ਖਿਚ ਦੇਵਾਂ ਏਡਾ ਮੈਂ ਕੋਈ ਫਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਜੇ ਓ ਮੇਰੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ, ਮੈਨੂ ਓਹਦੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਯਾ ਕ੍ਯੋਂ.
ਦਿਲ ਵਿਚ ਭਰ ਕੇ ਪ੍ਯਾਰ ਓਹਦਾ, ਦਿਲ ਓਸੇ ਤੋਂ ਤੁਡਵਾਯਾ ਕ੍ਯੋਂ.
ਟੁੱਟੇ ਹੋਏ ਦਿਲ ਬਡੇ ਦੁਖਦੇ ਨੇ, ਤੈਨੂ ਤਾਂ ਹੁੰਦੀ ਪੀੜ ਨਹੀਂ
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਦੇ ਵਾਲ ਕਦੀ ਕੋਈ ਨਾ ਵੇਖੇ, ਮੇਰੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਏਹੋ ਰੇਹੰਦੀ ਹੈ.
ਮੈਂ ਓਹਦੇ ਕਰਕੇ ਲੜਦਾ ਹਾਂ, ਓ ਮੈਨੂ ਗੁੰਡਾ ਕਿਹੰਦੀ ਹੈ.
ਸਾਰਾ ਕਾਲੇਜ ਵੈਰੀ ਬਣ ਗਯਾ ਹੈ, ਐਥੇ ਕੋਈ ਮੇਰਾ ਵੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਹਾਸਿਲ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਵਿਚ, ਮੈਂ ਸਾਰਾ ਕੁਝ ਗਵਾ ਬੈਠਾ.
ਉਹਦੀ ਨਾ ਤੋਂ ਆਕੇ ਤੰਗ ਕਾਲਾ, ਨਾਸ਼ੇਯਾਁ ਦੀ ਆਦਤ ਪਾ ਬੈਠਾ.
ਓਹਦੇ ਪਿਛੇ ਰੋਲ ਲਵਾਂ ਜਿੰਦਗੀ, ਏਡੀ ਵੀ ਓ ਕੋਈ ਹੀਰ ਨਹੀਂ
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ
--ਕੁਲਵੀਰ ਸਿਂਘ ( ਕਾਲਾ )
Read in Hindi
Sunday, November 8, 2009
उसकी ऐडी परबत चोटी लगती है
उसकी ऐडी परबत चोटी लगती है
माँ के आगे ज़न्नत छोटी लगती है
फाकों ने तस्वीर बना दी आँखों मे
गोल हो कोई चीज तो रोटी लगती है
--अज्ञात
फाकों=भूख
माँ के आगे ज़न्नत छोटी लगती है
फाकों ने तस्वीर बना दी आँखों मे
गोल हो कोई चीज तो रोटी लगती है
--अज्ञात
फाकों=भूख
Saturday, November 7, 2009
सभी जज़्बात,ख्यालात बदल जाते हैं
सभी जज़्बात, ख्यालात बदल जाते हैं
यूँ मुहब्बत में ये दिन रात बदल जाते हैं
प्यार उनको भी हैं हमसे पर जाने क्यूँ
हम बात करें तो वो बात बदल जाते हैं
आरज़ू तो है के इज़हार-ए-मुहब्बत कर दूँ
लफ्ज़ चुनते हैं तो लम्हात बदल जाते हैं
कितने नफ़रत थी कभी अहल-ए-मुहब्बत से हमें
हो मुहब्बत तो ख़यालात बदल जाते हैं
एक सा वक़्त मोहब्बत में कहाँ रहता है
गर्दिश-ए-वक़्त से हालात बदल जाते हैं
--अज्ञात
अहल-ए-मोहब्बत=मोहब्बत में रहने वाले
यूँ मुहब्बत में ये दिन रात बदल जाते हैं
प्यार उनको भी हैं हमसे पर जाने क्यूँ
हम बात करें तो वो बात बदल जाते हैं
आरज़ू तो है के इज़हार-ए-मुहब्बत कर दूँ
लफ्ज़ चुनते हैं तो लम्हात बदल जाते हैं
कितने नफ़रत थी कभी अहल-ए-मुहब्बत से हमें
हो मुहब्बत तो ख़यालात बदल जाते हैं
एक सा वक़्त मोहब्बत में कहाँ रहता है
गर्दिश-ए-वक़्त से हालात बदल जाते हैं
--अज्ञात
अहल-ए-मोहब्बत=मोहब्बत में रहने वाले
ज़रा उदास भी हूँ, लेकिन मसरूर भी हूँ
ज़रा उदास भी हूँ, लेकिन मसरूर भी हूँ
उसके पास हूँ, शायद दूर भी हूँ
यूँ पथरीले रास्ते पे चलना शौक नहीं मेरा
कुछ मामला चाहत का है, कुछ मजबूर भी हूँ
मोहब्बत हो गयी उस से, बस यही खता रही मेरी
माना के मुजरिम हूं, मगर बेकसूर भी हूँ
--अज्ञात
मसरूर=Cheerful, Glad, Jolly, Jovial, Laugh, Lightsome
उसके पास हूँ, शायद दूर भी हूँ
यूँ पथरीले रास्ते पे चलना शौक नहीं मेरा
कुछ मामला चाहत का है, कुछ मजबूर भी हूँ
मोहब्बत हो गयी उस से, बस यही खता रही मेरी
माना के मुजरिम हूं, मगर बेकसूर भी हूँ
--अज्ञात
मसरूर=Cheerful, Glad, Jolly, Jovial, Laugh, Lightsome
दीवाने की कब्र खुदी तो
लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने निकले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने निकले
'श्या्म’ उमंगें लेकर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
--श्याम सखा श्याम
Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/11/blog-post.html
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने निकले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने निकले
'श्या्म’ उमंगें लेकर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
--श्याम सखा श्याम
Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/11/blog-post.html
Thursday, November 5, 2009
तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में
तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में
हम दो ही तो दुखी है इन्सान दिल्ली में
किसी भूके को यहाँ कोई रोटी नहीं देता
दिल छोटे और बड़े है मकान दिल्ली में
रिश्ता बनता नहीं की टूट जाता है पहले
इश्क हो या दोस्ती कुछ नहीं आसान दिल्ली में
आते आते आया ख्याल ये भी तोबा की
मौत है महँगी सस्ती है जान दिल्ली में
यु तो हादसे हर रात होते है बेदिल मगर
बचते नहीं सुबह उनके निशान दिल्ली में
--दीपक बेदिल
हम दो ही तो दुखी है इन्सान दिल्ली में
किसी भूके को यहाँ कोई रोटी नहीं देता
दिल छोटे और बड़े है मकान दिल्ली में
रिश्ता बनता नहीं की टूट जाता है पहले
इश्क हो या दोस्ती कुछ नहीं आसान दिल्ली में
आते आते आया ख्याल ये भी तोबा की
मौत है महँगी सस्ती है जान दिल्ली में
यु तो हादसे हर रात होते है बेदिल मगर
बचते नहीं सुबह उनके निशान दिल्ली में
--दीपक बेदिल
नाखुदा मान के बैठे है जिनकी कश्ती में
नाखुदा मान के बैठे है जिनकी कश्ती में,
वो हमें मौजों में ले आये है डुबाने के लिये,
वो हवाओं की तरह रूख बदल लेते है,
हम नसीबों से लड़तें थे जिन्हे पाने के लिये
सांवरिया फिल्म का शेर है
वो हमें मौजों में ले आये है डुबाने के लिये,
वो हवाओं की तरह रूख बदल लेते है,
हम नसीबों से लड़तें थे जिन्हे पाने के लिये
सांवरिया फिल्म का शेर है
मोहब्बत मुकद्दर है, कोई ख्वाब नहीं
मोहब्बत मुकद्दर है, कोई ख्वाब नहीं
वो अदा है जिसमें सब कामयाब नहीं
जिन्हें इश्क़ की पनाह मिली वे चन्द ही हैं
जो पागल हुए उनका कोई हिसाब नहीं
--अज्ञात
वो अदा है जिसमें सब कामयाब नहीं
जिन्हें इश्क़ की पनाह मिली वे चन्द ही हैं
जो पागल हुए उनका कोई हिसाब नहीं
--अज्ञात
Tuesday, November 3, 2009
मैं खुदा की नज़रों में भी गुनाहगार होता हूँ फ़राज़
मैं खुदा की नज़रों में भी गुनाहगार होता हूँ फ़राज़
के जब सजदों में भी वो शक्स मुझे याद आता है
--अहमद फराज़
के जब सजदों में भी वो शक्स मुझे याद आता है
--अहमद फराज़
Monday, November 2, 2009
नशा किसी के प्यार का है
नदी का शोर नहीं है ये आब शार का है
यहाँ से जो भी सफ़र है वो अब उतार का है
तमाम जिस्म को आँखे बना के राह तको,
तमाम खेल मोहब्बत में इंतज़ार का है
अभी शराब न देना मज़ा न आयेगा ,
अभी तो आंखों में नशा किसी के प्यार का है...
--मुनव्वर राणा
आबशार = Waterfall
Source : http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=5107&Itemid=34
यहाँ से जो भी सफ़र है वो अब उतार का है
तमाम जिस्म को आँखे बना के राह तको,
तमाम खेल मोहब्बत में इंतज़ार का है
अभी शराब न देना मज़ा न आयेगा ,
अभी तो आंखों में नशा किसी के प्यार का है...
--मुनव्वर राणा
आबशार = Waterfall
Source : http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=5107&Itemid=34
ये ज़रूरी तो नही
आँख में कोई सितारा हो, ये ज़रूरी तो नही
प्यार में कोई खासारा हो, ये ज़रूरी तो नही
ये हक़ीक़त है, के मुझे तुझ से मुहब्बत है
पर तेरे साथ गुज़ारा हो, ये ज़रूरी तो नही
ये दरीचे से जो फ़ूलों की महक आती है
तेरी आने का इशारा हो, ये ज़रूरी तो नही
डूबते वक़्त नज़र उस पे भी तो पड़ सकती है
सामने मेरे किनारा हो, ये ज़रूरी तो नही
कूम नही ये भी के शहर है हुमारा लेकिन,
शहर में कोई हमारा हो, ये ज़रूरी तो नहीं
हो सकता है, खता उस का, निशाना ए खुशी!
तीर उस ने मुझे मारा हो, यह ज़रूरी तो नही
--अज्ञात
प्यार में कोई खासारा हो, ये ज़रूरी तो नही
ये हक़ीक़त है, के मुझे तुझ से मुहब्बत है
पर तेरे साथ गुज़ारा हो, ये ज़रूरी तो नही
ये दरीचे से जो फ़ूलों की महक आती है
तेरी आने का इशारा हो, ये ज़रूरी तो नही
डूबते वक़्त नज़र उस पे भी तो पड़ सकती है
सामने मेरे किनारा हो, ये ज़रूरी तो नही
कूम नही ये भी के शहर है हुमारा लेकिन,
शहर में कोई हमारा हो, ये ज़रूरी तो नहीं
हो सकता है, खता उस का, निशाना ए खुशी!
तीर उस ने मुझे मारा हो, यह ज़रूरी तो नही
--अज्ञात
खुदा है कठघरे में
आज इक कत्ल करके खुदा है कठघरे में
क्या मुक़र्रर हो सजा , ज़माना मशवरे में
--कुल्दीप अंजुम
क्या मुक़र्रर हो सजा , ज़माना मशवरे में
--कुल्दीप अंजुम
हर बार मुझे ज़ख़्म-ए-जुदाई ना दिया कर
हर बार मुझे ज़ख़्म-ए-जुदाई ना दिया कर
अगर तू मेरा नही तो दिखाई ना दिया कर
सच झूठ तेरी आँख से हो जाता है ज़ाहिर
क़समें ना उठा, इतनी सफाई ना दिया कर
मालूम है रहता है तू मुझ से गुरेज़ान
पास आ के मुहाबत की दुहाई ना दिया कर
डोर जैन तो लौट के आते नही वापिस
हर बार परिंदों को रिहाई ना दिया कर
--अज्ञात
Urdu: Gurezaan
English: Fleeing, Perverse Mood, To Run Away From, To Escape From
अगर तू मेरा नही तो दिखाई ना दिया कर
सच झूठ तेरी आँख से हो जाता है ज़ाहिर
क़समें ना उठा, इतनी सफाई ना दिया कर
मालूम है रहता है तू मुझ से गुरेज़ान
पास आ के मुहाबत की दुहाई ना दिया कर
डोर जैन तो लौट के आते नही वापिस
हर बार परिंदों को रिहाई ना दिया कर
--अज्ञात
Urdu: Gurezaan
English: Fleeing, Perverse Mood, To Run Away From, To Escape From
Sunday, November 1, 2009
ढूँढने जिस में ज़िन्दगी निकली
ढूँढने जिस में ज़िन्दगी निकली
वो उस शख्स की गली निकली
तेरे लहज़े में क्या नहीं था
सिर्फ़ सच की ज़रा सी कमी निकली
उस हवेली में शाम ढलने पर
हर दरीचे से रौशनी निकली
वो हवा तो नही थी लड़की थी
किस लिए इतनी सिरफिरी निकली
वो तेरे आसमान का क्या करती
जिस की मिट्टी से दोस्ती निकली
--अज्ञात
वो उस शख्स की गली निकली
तेरे लहज़े में क्या नहीं था
सिर्फ़ सच की ज़रा सी कमी निकली
उस हवेली में शाम ढलने पर
हर दरीचे से रौशनी निकली
वो हवा तो नही थी लड़की थी
किस लिए इतनी सिरफिरी निकली
वो तेरे आसमान का क्या करती
जिस की मिट्टी से दोस्ती निकली
--अज्ञात
कुछ खुशी के साए में और कुछ ग़मों के साथ
कुछ खुशी के साए में और कुछ ग़मों के साथ
ज़िंदगी कट गयी है उलझनों के साथ
आज तक उस थकान से दुख रहा है बदन
एक सफ़र मैंने किया था ख़्वाहिशों क साथ
किस तरह खाया है धोखा क्या बताऊँ तुम्हें
दोस्तों के मशवरे थे साज़िशों क साथ
इस दफ़ा सावन में तेरी याद के बादल रहे
इस दफ़ा मैं खूब रोया बारिशों के साथ
शहर में कुछ लोग मेरे चाहने वाले भी थे
फूल भी लग रहे थे पत्थरों के साथ
--अज्ञात
ज़िंदगी कट गयी है उलझनों के साथ
आज तक उस थकान से दुख रहा है बदन
एक सफ़र मैंने किया था ख़्वाहिशों क साथ
किस तरह खाया है धोखा क्या बताऊँ तुम्हें
दोस्तों के मशवरे थे साज़िशों क साथ
इस दफ़ा सावन में तेरी याद के बादल रहे
इस दफ़ा मैं खूब रोया बारिशों के साथ
शहर में कुछ लोग मेरे चाहने वाले भी थे
फूल भी लग रहे थे पत्थरों के साथ
--अज्ञात
अगर वो पूछ ले हमसे, तुम्हें किस बात का ग़म है
अगर वो पूछ ले हमसे, तुम्हें किस बात का ग़म है
तो फिर किस बात का ग़म है, अगर वो पूछ ले हमसे
--अज्ञात
तो फिर किस बात का ग़म है, अगर वो पूछ ले हमसे
--अज्ञात
चंद उलझे हुए बे-रब्त सवालों की तरह
चंद उलझे हुए बे-रब्त सवालों की तरह
ज़िंदगी आज परेशान है ख़यालों की तरह
--अज्ञात
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