Wednesday, September 2, 2009

अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है

अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
लैला मजनूँ के मिसालों पे हँसी आती है

जब भी तक़मील-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है
मुझको अपने ख़यालों पे हँसी आती है
[तक़मील=completion]

लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं
उन वफ़ा ढूँढने वालों पे हँसी आती है

देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हे तो देखने वालों पे हँसी आती है
[तबस्सुम=smile]

चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी ‘फ़ाकिर’
अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है

--सुदर्शन फाकिर


Source : http://www.urdupoetry.com/faakir23.html

1 comment:

  1. चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी ‘फ़ाकिर’
    अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है
    wah !

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